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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७२ पृथक् तथा मिलित द्रव्य और पर्यायका अवलम्बन करके अन्तिम तीन भङ्गोंकी व्याख्या करनी चाहिये, तथा हि जैसे पृथक्भूत द्रव्य और मिलित द्रव्य पर्याय इनका आश्रय करके "स्यादस्ति च अवक्तव्यश्च घटः” इस पंचम भङ्गकी प्रवृत्ति होती है । घट आदिरूप धर्मी विशेष्यक और सत्त्व सहित अवक्तव्यत्व विशेषणवाले ज्ञानका जनक वाक्यत्व, यह इस भङ्गका लक्षण है, अर्थात् जिस ज्ञानमें घट आदि धर्मी पदार्थ विशेष्य हों, और सत्त्व सहित अवक्तव्यत्व विशेषणीभूत हो ऐसे ज्ञानको उत्पन्न करानेवाला वाक्यत्व, यही इस पंचम भङ्गका लक्षण है, क्योंकि इस भंगमें द्रव्यत्वकी योजनासे तो अस्तित्व और एक कालमें ही द्रव्य पर्याय दोनोंको मिलाके योजना करनेसे अवक्तव्यत्वरूप अविवक्षित है । तात्पर्य यह है कि द्रव्यरूपसे तो घटका सत्त्व अर्थात् द्रव्यरूपसे घट है और एक कालमें ही प्रधानभूत द्रव्य पर्यायरूपसे नहीं है। तथा व्यस्तं पर्यायं समस्तौ द्रव्यपर्यायौ चाश्रित्य स्यान्नास्ति चावक्तव्य एवं घट इति षष्ठः । तल्लक्षणं च घटादिरूपैकधर्मिविशेष्यकनास्तित्वविशिष्टावक्तव्यत्वप्रकारकबोधजनकवाक्यत्वम् । ___ और ऐसे ही पृथक्भूत पर्याय और मिलित द्रव्यपर्यायका आश्रय करके "स्यान्नास्ति च अवक्तव्यश्च घटः" किसी अपेक्षासे घट नहीं है तथा अवक्तव्य है, इस षष्ठ भङ्गकी प्रवृत्ति होती है, घट आदिरूप एक पदार्थ विशेष्यक और असत्त्व सहित अवक्तव्यत्व विशेषणवाले ज्ञानका जनक वाक्यत्व, यह इसका लक्षण है अर्थात् जिस ज्ञानमें घट आदि पदार्थ विशेष्य हों और असत्त्व अथवा नास्तित्व सहित अवक्तव्यत्व विशेषणीभूत हो ऐसे ज्ञानको उत्पन्न करनेवाला वाक्य, यही इस षष्ठ भङ्गका लक्षण है, पृथक्भूत पर्यायकी योजनासे नास्तित्व और मिलित द्रव्य पर्याय दोनोंकी योजनासे अवक्तव्यत्व इस षष्ठ भंगमें विवक्षित है । पर्यायकी अपेक्षासे नास्तित्व तथा प्रधानभूत द्रव्य पर्याय उभयकी अपेक्षासे अवक्तव्यत्वका आश्रय घटः यह इस भंगका अर्थ है । एवं व्यस्तौ क्रमार्पितौ समस्तौ सहार्पितौ च द्रव्यपर्यायावाश्रित्य स्यादस्ति नास्ति चावक्तव्य एव घट इति सप्तमभंगः। घटादिरूपैकवस्तुविशेष्यकसत्त्वासत्त्वविशिष्टाववक्तव्यत्वप्रकारकबोधजनकवाक्यत्वं तल्लक्षणम् । इति संक्षेपः ॥ इसी प्रकार अलग २ क्रमसे योजित, तथा मिलेहुये (साथ योजित) द्रव्य तथा पर्यायका आश्रय करके "स्यात् अस्ति नास्ति च अवक्तव्यश्च घटः" किसी अपेक्षासे सत्त्व असत्त्व सहित अवक्तव्यत्वका आश्रय घट, इस सप्तम भंगकी प्रवृत्ति होती है, घट आदिरूप एक पदार्थ विशेष्यक और सत्त्व असत्त्व सहित अबक्तव्यत्व विशेषणवाले ज्ञानका जनक १ स्यादस्ति च अवक्तव्यश्च घटः, स्यान्नास्ति च अवक्तव्यश्च घटः, स्यादस्ति च नास्ति च अवक्तव्यश्च घटः, द्रव्यको पृथक मानके द्रव्यपर्यायको मिलाके पंचम भंगकी, पायको पृथक, द्रव्यपायको मिलाके षष्ठकी, योजित द्रव्यपर्यायको मानके सप्तम भगकी प्रवृत्ति होती है और पृथक्भूत क्रमसे योजित द्रव्यपर्यायको मिलाके षष्ठकी । यही सप्तम तथा षष्ठमें भेद हैं. For Private And Personal Use Only
SR No.020654
Book TitleSaptabhangi Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimaldas, Pandit Thakurprasad Sharma
PublisherNirnaysagar Yantralaya Mumbai
Publication Year
Total Pages98
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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