SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 49
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अथवा-घटत्वावच्छिन्नेषु मध्ये यादृशघटः परिगृह्यते, तन्निष्ठस्थौल्यादिधर्मः स्वरूपं, इतरघटादिव्यक्तिवृत्तिधर्म एव पररूपम् । तत्र तादृशस्वरूपेणास्ति, पररूपेण नास्ति । स्वरूपेणाप्यस्तित्वानङ्गीकारेऽसत्त्वप्रसङ्गः पूर्ववत् । एवमग्रेऽपि । तादृशो घटो यदि निरुक्तपररूपेणाप्यस्ति, तदा सर्वघटानामैक्यप्रसङ्गात्सामान्याश्रयव्यवहारविलोपापत्तिः ।। __ अथवा घटत्वसे अवच्छिन्न, अर्थात् घटत्वधर्मसे अन्य पदार्थोंसे पृथक् किये सब घटोंमेंसे विवक्षित प्रसङ्गमें गृहीत जिस प्रकारका घट अनुभूत होता है उस घटमें रहनेवाले जो स्थूलता आदि धर्म हैं वही उस घटका स्वकीयरूप है और उस घटसे अन्य जो घट आदि पदार्थमें रहनेवाला धर्म है वह उसका पररूप है वहांका भी अपने स्वरूपनिष्ठ जो स्थूलतादि धर्मरूप है उस स्वरूपसे अस्तित्व और अन्य घट आदिके रूपसे नास्तित्वका आश्रय घट है, क्योंकि अपने रूपसे भी यदि अस्तित्वका आश्रय नहीं अङ्गीकार करोगे तो पूर्वके सदृश घटके असत्वका प्रसङ्ग हो जायगा । इसी प्रकार आगे भी समझलेना अर्थात् जो घट अनुभूत होता है उस घटका अन्य घटके रूपसे भी यदि अस्तित्व हि मानो तो सब घटोंकी एकता हो जायगी, क्योंकि सबके स्वरूपसे सबमें अस्तिता है तो कोई भेद न रहा, और इस रीतिसे सामान्यके आश्रय जो व्यवहार है उसका लोप ही हो जायगा, जब सब एक ही है तो अनेकमें अनुगत धर्म भी न रहा । अथवा-तस्मिन्नेव घटविशेषे कालान्तरावस्थायिनि पूर्वोत्तरकुसूलान्तकपालाद्यवस्थाकलापः पररूपं, तदन्तरालवृत्तिघटपर्यायस्स्वरूपं, तेन रूपेणास्ति । इतररूपेण नास्ति । यदि कुसूलान्तकपालाद्यात्मनापि घटोऽस्ति, तदा घटावस्थायां घटपर्यायस्येव कुसूलादिपर्यायस्याप्युपलब्धिप्रसङ्गः । कुसूलाद्यवस्थायामपि घटसत्त्वे घटपर्यायोत्पत्तिविनाशार्थ गुरुप्रयत्नवैफल्यं च । एवं-अन्तरालवृत्तिघटपर्यायात्मनापि यदि घटो नास्ति, तदा तत्काले जलाहरणादिरूपं तत्कार्य नोपलभ्यते । ___ अथवा कालान्तरमें भी रहनेवाले उसी घंटमें पूर्व तथा उत्तर कालमें जो पिण्ड कुशूल तथा कपाल आदि अवस्था समुदाय है वह सब घटका पररूप है, और पूर्व तथा उत्तर कालमें रहनेवाला जो पिण्ड कपाल आदि समुदाय है उस समुदायमें रहनेवाला जो केवल घट पर्याय है वह घटका स्वरूप है । उस अपने रूपसे अस्ति तथा अन्य पूर्वोत्तर कालवर्ती पिण्डादि पर्यायोंसे नास्ति घटका स्वरूप है । और यदि कपालसे आदि लेके कुशूलान्तसमुदायरूपसे भी अस्ति ही घटकी मानोगे तो जैसे घट दशामें घटकी प्राप्ति है ऐसे ही पिण्ड कपाल आदि पर्याओंकी प्राप्तिका प्रसङ्ग होगा अर्थात् जैसे घट दशामें घट १ भासता है. २ जो घट जाननेको इष्ट है वही घट, हर एक वस्तुमें विजातीय सजातीय तथा खगत भेद रहता है, उनमेंसे प्रथम विजातीय पट आदिको पररूप मानके भेद सिद्ध किया, अनन्तर समान जातिवाले अन्य घटोंसे, अब अपने ही में जो अन्य पर्याय हैं उनको पररूपके भेद सिद्ध करते हैं. ३ घटदशा प्रथम गीली मृत्तिकामें पिण्ड पर्याय पुनः लम्बासा कुशूल पर्याय पुनः घट पर्याय. ४ घटके दो भाग जो घटमें जुड़े रहते हैं. For Private And Personal Use Only
SR No.020654
Book TitleSaptabhangi Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimaldas, Pandit Thakurprasad Sharma
PublisherNirnaysagar Yantralaya Mumbai
Publication Year
Total Pages98
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy