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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पाण्डुत्व है उसीके अयोग अर्थात् असम्बन्धकी निवृत्तिका बोधक एवकार यहां 'शङ्खः पाण्डुः एव' पर लगाया गया है ॥ विशेष्यसङ्गतैवकारोऽन्ययोगव्यवच्छेदबोधकः । यथा-पार्थ एव धनुर्धर इति । अन्ययोगव्यवच्छेदो नाम विशेष्यभिन्नतादात्म्यादिव्यवच्छेदः । तत्रैवकारेण पार्थान्यतादात्म्याभावो धनुर्धरे बोध्यते । तथा च पार्थान्यतादात्म्याभाववद्धनुर्धराभिन्नः पार्थ इति बोधः ॥ और विशेष्यके साथ सङ्गत जो एवकार है वह अन्ययोगव्यवच्छेदरूप अर्थका बोध कराता है जैसे 'पार्थ एव धनुर्धरः' धनुर्धर पार्थ ही है इस उदाहरणमें एवकार अन्य योगके व्यवच्छेदका बोधक है विशेष्यसे अन्यमें रहनेवाले जो तादात्म्य आदि उनकी व्यावृत्तिका जो बोधक उसको अन्ययोगव्यवच्छेदबोधक कहते हैं । इस पूर्वोक्त उदाहरणमें एवकार शब्दसे पार्थसे अन्य पुरुषमें रहनेवाला जो तादात्म्यका अभाव वह धनुधरमें बोधित होता है । इस रीतिसे पार्थसे अन्य व्यक्तिमें रहनेवाला जो तादात्म्य उसके अभावसहित जो धनुर्धर तदभिन्न पार्थ है अर्थात् पार्थसे अतिरिक्तमें धनुर्धरत्व नहीं है ऐसा 'पार्थ एव धनुर्धरः' इस उदाहरणका अर्थ होता है । यहांपर धनुर्धरत्वका पार्थसे अन्यमें सम्बन्धके व्यवच्छेदका बोधक पार्थ इस विशेष्यपदके आगे एव शब्द लगाया गया है । क्रियासङ्गतैवकारोत्यन्तायोगव्यवच्छेदबोधकः, यथा नीलं सरोजं भवत्येवेति । अत्यन्तायोगव्यवच्छेदो नाम-उद्देश्यतावच्छेदकव्यापकाभावाप्रतियोगित्वम् । प्रकृते चोद्देश्यतावच्छेदकं सरोजत्वम् , तद्धर्मावच्छिन्ने नीलाभेदरूपधात्वर्थस्य विधानात् । सरोजत्वव्यापको योऽत्यन्ताभावः, न तावन्नीलाभेदाभावः, कस्मिंश्चित्सरोजे नीलाभेदस्यापि सत्त्वात्, अपि त्वन्याभावः, तदप्रतियोगित्वं नीलाभेदे वर्तत इति सरोजत्वव्यापकात्यन्ताभावाप्रतियोगि नीलाभेदवत्सरोजमित्युक्तस्थले बोधः । __ और क्रियाके साथ सङ्गत जो एवकार है वह अत्यन्त अयोगके व्यवच्छेदका बोधक है जैसे 'नीलं सरोज भवत्येव' कमल नील भी होता है उद्देश्यतावच्छेदक धर्मका व्यापक जो अभाव उस अभावका जो अप्रतियोगी उसको अत्यन्तायोगव्यवच्छेद कहते हैं । प्रकृत प्रसङ्गमें गृहीत 'नीलं सरोजं भवत्येव' इस उदाहरणमें उद्देश्यतावच्छेदक धर्म सरोजत्व है क्योंकि उसीसे अवच्छिन्न कमलको उद्देश्य करके नीलत्वका विधान है सो सरोजत्वरूप धर्मसे अवच्छिन्न सरोजमें नीलसे अभेदरूप धातुके अर्थका विधान यहांपर अभीष्ट है अतः सरोजत्वका व्यापक जो अभाव है वह नीलके अभेदका अभाव नहीं हो सकता क्योंकि किसी न किसी सरोजमें नीलका अभेद भी है जब किसी. सरोजमें नीलका अभेद है तब नीलके अभेदका अभाव सरोजत्वका व्यापक नहीं है १ अन्वयको प्राप्त २ अन्यके साथ सम्बन्धकी निवृत्ति. ३ अभेद. ४ अर्जुन. ५ अभेद. ६ अन्ययोग. ७ व्यावृत्ति. ८ अन्वित. ९ व्यावृत्ति. १० सरोजको अन्यसे पृथक् करनेवाला. ११ सहित. १२ व्याप्त होके कमलमात्रमें रहनेवाला. १३ कमल. For Private And Personal Use Only
SR No.020654
Book TitleSaptabhangi Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimaldas, Pandit Thakurprasad Sharma
PublisherNirnaysagar Yantralaya Mumbai
Publication Year
Total Pages98
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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