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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १.१ यदि घटादावस्तित्वप्रमुखास्सप्त धर्माः प्रामाणिकास्स्युः, तदा तद्विषयसंशयातिक्रमेण सप्तभङ्गी सिद्धयेत् । तदेव न, सत्त्वासत्त्वयोर्भेदाभावात् । यत्स्वरूपण सत्त्वं तदेव पररूपेणासत्त्वं । तथा च न प्रथमद्वितीयभङ्गो घटेते । तयोरन्यतरेणैव गतार्थत्वात् । एवं च तृतीयादिभङ्गाभावात्कुतस्सप्तभङ्गी?-इति चेत् । कदाचित् यह शङ्का करोकि-इस रीतिसे सप्त संख्यासे अधिक संख्याका व्यवच्छेद सिद्ध होनेपरभी न्यून संख्याका निराकरण कैसे हो सकता है ? इस शङ्काका निरूपण ऐसे है कि यदि घट आदि पदार्थों में सप्त धर्म प्रामाणिक हों तो उनके विषयभूत संशय आदिके अतिक्रमसे सप्तभङ्गी सिद्ध हो? परन्तु यही नहीं सिद्ध होता. अर्थात् सप्तधर्म प्रमाणिक नहीं होते । क्योंकि सत्त्व तथा असत्त्वका भेद नहीं है। इसका कारण यह है कि जो पदार्थ जैसे घट, अपने रूपसे सत्त्वरूप है वही पैर पट आदि रूपसे असत्त्वभी है । इस प्रकार प्रथम 'स्यादस्त्येव' तथा द्वितीय 'स्यानास्त्येव' दो धर्म नहीं घटित हो सकते । इन दोनोंमेसें अर्थात् सत्त्व अथवा असत्त्व एकमें दूसरा गतार्थ है । सत्त्व मानो तो असत्त्वकी आवश्यकता नहीं है और असत्त्व मानो तो सत्त्वकी आवश्यकता नहीं है इस प्रकारसे तृतीय ऑदि भङ्गोंके अभावसे सप्तभङ्गी कैसे और कहांसे सिद्ध हो सकती है ? क्योंकि जब खरूपसे जो सत्ता है वही अन्यरूपसे असत्ता है तब 'स्यादस्ति नास्ति च' कथंचित् सत्त्व कथंचित् असत्त्व कहनेकी क्या आवश्यकता है ? यदि ऐसी शङ्का करो तो अत्रोच्यते । स्वरूपाद्यवच्छिन्नमसत्त्वमित्यवच्छेदकभेदात्तयोर्भेदसिद्धेः। अन्यथा स्वरूपेणेव पररूपेणापि सत्त्वप्रसङ्गात् । पररूपेणेव स्वरूपेणाप्यसत्त्वप्रसङ्गाच्च । __इसका उत्तर यह है:-क्योंकि स्वरूप आदि अवच्छिन्न सत्त्व है और पररूप आदि अवच्छिन्न असत्त्व पदार्थ यहां सत्त्व असत्त्वसे विवक्षित हैं । इस प्रकार स्वरूपादित्व और पररूपादित्व इन दोनों अवच्छेदक धर्मों के भेदसे सत्त्व तथा असत्त्व इनका भेद सिद्ध है । यदि ऐसा न हो तो स्वरूपसे सदृश पररूपसे सत्त्वका प्रसङ्ग हो जायगा । और इसी रीतिसे पर रूपके असत्त्वके तुल्य स्वरूपसेभी असत्त्वका प्रसङ्ग हो जायगा. और अवच्छेदक भेद माननेसे दोनोंका भेद स्पष्ट ही है। किं च सत्त्वं हि वृत्तिमत्त्वं, भूतले घटोऽस्तीत्यादौ भूतलनिरूपितवृत्तित्ववान्धट इति बोधात् । असत्त्वं चाभावप्रतियोगित्वम्, भूतले घटो नास्तीत्यादौ भूतलनिष्ठाभावप्रतियोगी घट इति बोधात् । तथा च सत्त्वासत्त्वयोस्स्वरूपभेदोऽक्षत एव । __ और यह भी है कि सत्त्व वृत्तिमत्त्वरूप होता है । जैसे 'भूतले घटोऽस्ति' यहांपर भूतल निरूपित जो वृत्तिता तादृश वृत्तितावान् घटः ऐसा शाब्दबोध होता है । और असत्त्वके अभावका प्रतियोगित्वरूप होता है. जैसे 'भूतले घटो नास्ति' पृथ्वीपर घट नहीं १ निराकरण वा दूरीकरण. २ सात. ३ प्रमाणसिद्ध. ४ अन्य. ५ स्यादस्तिनास्ति. ६ पृथक् करनेवाले. ७ अपने रूप. ८ वृत्तितासम्बन्धसे पदार्थमें अन्वयवाला. ९ पृथ्वीपर घट है. १० वृत्तितासहित. ११ न्यायशास्त्रकी रीतिसे जिस पदार्थका अभाव वा असत्त्व कहते हैं वह पदार्थ उस अभावका प्रतियोगी होता है. For Private And Personal Use Only
SR No.020654
Book TitleSaptabhangi Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimaldas, Pandit Thakurprasad Sharma
PublisherNirnaysagar Yantralaya Mumbai
Publication Year
Total Pages98
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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