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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यहांपर 'घटः स्यादस्त्येव वा नवा' यह घट विषयक सत्त्व तथा उसके अभावविषयक प्रथम संशय है ॥ ननु च-कथञ्चित्सत्त्वस्याभावः कथञ्चिदसत्त्वम् , तस्य न संशयविषयत्वसम्भवः, कथञ्चित्सत्त्वेन साकं विरोधाभावात् । एक धर्मिकविरुद्धनानाधर्मप्रकारकज्ञानं हि संशयः नत्वेकधर्मिकनानाधर्मप्रकारकज्ञानमात्रं, तथा सति अयं घटोद्रव्यमित्यादीदन्त्वावच्छिन्नविशेष्यकघटत्वद्रव्यत्वरूपनानाधर्मप्रकारकज्ञानस्यापि संशयत्वापत्तेः । तथा च कथं घटस्स्यादस्त्येव न वेति संशयः इति चेत् ? उच्यते;-दर्शितसंशये कथञ्चिदस्तित्वसर्वथास्तित्वयोरेवकोटिता; तथा च नोक्तानुपपत्तिः, तयोश्च परस्परम् विरुद्धत्वात् । शङ्का-कथंचित् सत्त्वका अभाव कथंचित् असत्त्वरूप ही है वह संशयका विषय नहीं हो सकता क्योंकि कथंचित् सत्त्वके साथ उसका विरोध नहीं है कथंचित् सत्त्व और कथंचित् असत्त्व इनका विरोध नहीं है किसी विवक्षासे सत्ता और किसी विवक्षासे असत्ता भी रह सकती है। क्योंकि एक धर्मिक एक पदार्थविषयक परस्पर विरुद्ध नानाधर्म प्रकारक ज्ञानको संशय कहते हैं । जैसे एक वृक्षके ढूंठको देखकर 'स्थाणुर्वा पुरुषो वा' ऐसे विरुद्ध नाना ज्ञानको संशय कहते हैं । स्थाणुत्व और पुरुषत्व ये दोनों विरुद्ध धर्म एक विषयमें हुये इस हेतुसे यह संशय ज्ञान है । न कि एक पदार्थविषयक नानाधर्म प्रकारक ज्ञानमात्रको संशय कहते हैं। क्योंकि परस्पर नानाधर्मों के विरोधके अभावमें एक पदार्थमें नानाधर्ममात्रको यदि संशय ज्ञान मानोगे तो 'अयं घटो द्रव्यम्' इत्यादि वाक्यमें इदन्तावच्छिन्न विशेष्यक घटत्व तथा द्रव्यत्वरूप नानाधर्म प्रकारक ज्ञान भी संशयरूप ज्ञान हो जायगा. क्योंकि इसमें घटत्व और द्रव्यत्व ये नानाधर्म हैं. परन्तु घटत्व और द्रव्यत्व इन दोनों धर्मोंका विरोध नहीं. ऐसे ही कथंचित् सत्त्व असत्त्वका विरोध नही हैं तो इस रीतिसे 'घटः स्यादस्त्येव न वा' इस ज्ञानको संशयरूपता कैसे होगी ? यदि ऐसा कहो तो इसका उत्तर कहते हैं-पूर्वदर्शित विषयमें कथंचित् अस्तिता और सर्वथा अस्तित्व ये दो कोटि हैं । इस कारणसे पूर्वोक्त शङ्का युक्त नहीं हैं । क्योंकि घट विषयक कथञ्चित् अस्तिता और सर्व प्रकारावच्छिन्न अर्थात् सर्व प्रकारसे अस्तिता इन दोनों धर्मोंका परस्पर विरोध प्रसिद्ध ही है एक कोटिमें कथंचित् अस्तिता है और दूसरी कोटिमें सर्वथा अस्तिता है. जैसे जीव विषयमें दो कोटि हो सकती हैं. कथञ्चित् साकारता और सर्वथा साकारता । यह संशय दो भावकोटिको लेकर प्रवृत्त है इसीसे 'अयं स्थाणुर्वा पुरुषो वा' यह स्थाणु है वा पुरुष है यहां दोनोमें स्थाणु तथा पुरुषमें दीर्घादि गुण समान ज्ञात होनेसे तथा पुरुषके हस्त पाद अवयव और स्थाणुके कोटर आदि आकार ज्ञात न होनेसे संशय १ घट है या नहीं. २ सत्ता. ३ असत्ता. ४ यह स्थाणु (ठूठ) है वा पुरुष है. ५ सन्देहात्मक. ६ अविरुद्ध धर्म. ७ यह घट द्रव्य है. ८ घट कथञ्चित् है या नहीं. ९ घटः स्यादस्त्येवनवा. १० किसी अपेक्षासे सत्ता. ११ सर्व प्रकारकसे सत्ता. १२ वृक्षका ढूंठ. १३ खोखल. For Private And Personal Use Only
SR No.020654
Book TitleSaptabhangi Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimaldas, Pandit Thakurprasad Sharma
PublisherNirnaysagar Yantralaya Mumbai
Publication Year
Total Pages98
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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