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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir झांसी । ५३ परगना बलबेहट । जाखलौन और धौर्रा होकर धौरा स्टेशन से पश्चिम में ४ ॥ मील हैं। इसके उत्तरीय भाग को हर्षपुर कहते है । यहां तीन मन्दिर ब्रह्मादि के हैं जिनमें दुधई के छह शिलालेख हैं, जिनसे मालूम होता है कि इनको यशोवर्मा चंदेल के पोते दवलब्धि ने करीब १००० सन् ई० में बनवाया था और यह निश्चय होता है कि दुधई चंदेला राज्य में माननीय जगह थी । दक्षिण पश्चिम श्राध मील आकर जैन मंदिरों का समुदाय है जिसको बनिया का वरात कहते हैं। इनके विषय में यह प्रसिद्ध है कि इनको भी देवपत ग्वेवपत ने बनवाया था। परंतु अब ये बहुत ही भग्न हैं । उत्तर की तरफ एक पहाड़ी पर जो घने जंगल से छाई हुई है बड़ी दुधई का स्थान मिलता है। इसके और छोटी दुधई के मध्य में एक भग्न जैन मंदिर है -- यह स्थान अखाड़ा कहलाता है । इस अखाड़े की बनावट गोल है जिसमें कोठरियां बनी हुई हैं। मालूम होता है पहले यहां ४० कोठरियां थीं परन्तु अब केवल १७ ही रह गई हैं। इस टीले के खंडहरों के पश्चिम जहां बड़ी दुधई की जगह है वहां एक चट्टान के ऊपर एक बड़ी मूर्ति १५ फुट ऊंची खुदी है जिसका नरसिंहजी की मूर्ति कहते हैं ( नोट - इसे अवश्य देखना चाहिये शायद यह सिंह चिह्नसहित श्री महावीर स्वामी की For Private And Personal Use Only
SR No.020653
Book TitleSanyukta Prant Ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad Bramhachari
PublisherJain Hostel Prayag
Publication Year1923
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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