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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २० - खेरी ( गज़ेटियर छपा १६०५ ) इसकी चौहद्दी यह हैं:- पूर्व में बहरायच ज़िला । दक्षिण में सीतापुर और हरदोई जिला । पश्चिम में शाहजहांपुर और पीलीभीत। उत्तर में नेपाल । इसमें २६६३ वर्ग मील स्थान है । यहां बहुत से प्राचीन स्थान हैं जिनकी खुदाई होनी वाकी है। खैरीगढ़ के पास कुंडलपुर एक वह स्थान है जहां पर से श्री कृष्ण रुक्मणी को ले गये थे । थोड़ी सी पुरातत्त्व विभाग द्वारा खुदाई होने से यह प्रगट होता है कि कुछ काल तक यह बौद्धों के हाथ में था । सब से प्राचीन वस्तु एक पत्थर का घोड़ा है जो खेरागढ़ किले से २ मील जंगल में खड़ा हुआ था । वह अब लखनऊ के अजायब घर में रक्खा है । इस घोड़े का चिन्ह उस चिह्न से मिलता है जो समुद्रगुप्त के सिक्कों पर है, जो चौथी शताब्दी में हो गया है । (१) गोला - पर्गना हैदराबाद- तहसील मुहमदी । वह जगह बहुत ही प्राचीन है । यह बौद्धों की पूजा का केन्द्र था । मूर्ति मिली है। (२) पैला - पर्गना व तहसील लखीमपुर से पश्चिम १२ मील, निमगांव से दक्षिण २ मील । यह स्थान पुराने समय में For Private And Personal Use Only
SR No.020653
Book TitleSanyukta Prant Ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad Bramhachari
PublisherJain Hostel Prayag
Publication Year1923
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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