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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra कृष्णकर्णामृतम् - ले. बिल्वमंगल । कृष्ण की लीलाओं का 112 श्लोकों में वर्णन है। चैतन्यप्रभु इसका नित्य पाठ करते थे। इसमें हरिदर्शन की उत्कण्ठा, मन की कृष्णरूप अवस्था, हरि से साक्षात्कार तथा संवाद आदि विषय हैं। जयदेव के गीतगोविन्द के समान ही कृष्णकर्णामृत श्रेष्ठ काव्यगुणों से युक्त है। अंतर केवल इतना है कि जयदेव रसिक थे, बिल्वमंगल भक्त थे। इस खण्ड काव्य पर गोपाल, जीव गोस्वामी, वृन्दावनदास, शंकर, पालक ब्रह्मभद्र, पुरुपतिपापयल्लय सूरि और अवंच रामचन्द्र इन लेखकों ने टीकाएं लिखी हैं। इन के अतिरिक्त कर्णानन्द तथा शृंगाररंगदा नामक दो टीकाओं के लेखकों के नाम अज्ञात हैं। कृष्णकर्णामृतम् ले कृष्णलीलांशुक। पिता दामोदर मातानीली। 12 तरंगों का यह गीति काव्य अनुपम सौन्दर्ययुक्त गीतमाधुर्य के कारण अत्यंत प्रसिद्ध है । विषय- कृष्णलीला । अधिकतर कल्पनाएं हावभाव से तथा अभिनय से प्रदर्शित । हाव-नृत्यकारों में यह काव्य विशेष प्रचलित है। - कृष्णक्रीडा (अपरनाम कृष्णभावनामृतम्) - ले. केशवार्क । कृष्णकेलिमाला (नाटिका) ले नन्दीपति ई. 18 वीं शती । अंकसंख्या चार कृष्ण के जन्म तथा लीलाओं का वर्णन इस नाटिका का विषय है। - - www.kobatirth.org श्रीनिवास । ले. परशुराम । - कृष्णकेलि सुधाकर ले. रघुनन्दन गोस्वामी ई. 18 वीं शती। कृष्णगीता - ले. वेंकटरमण | कृष्णचन्द्रोदय कवि गोविन्द । पिता कृष्णचम्पू 1) ले. शेष सुधी । 2) कृष्णचरितम् ले मानदेव कवि कृष्णचरित (कृष्णविनोद) कवि मोतीराम । कृष्णचरित्रम् ले अगस्त्य ई. 14 वीं शती । । कृष्णनाटकम् ले. मानवेद । रचनाकाल ई. 1652। इसमें रूपक-परम्परा की अभिनव दिशा की प्रतिनिधि कृति । गीतिनाट्य । इसमें आख्यान तत्त्व पद्यों में और भावविशिष्ट तत्त्व गीतों में है। गुरुवायूर मन्दिर में प्रतिवर्ष इस गीतिनाट्य का अभिनय होता है । त्रिचूर के मंगलोदय कम्पनी द्वारा सन 1914 में प्रकाशित । कृष्णपदामृतम् (स्तोत्र ) ले. कृष्णनाथ सार्वभौम भट्टाचार्य ई. 17-18 वीं शती । · - - कृष्णभक्तिकाव्यम्ले अनन्तदेव । / । कृष्णभक्तिचंद्रिका ले अनंतदेव ई. 17 वीं शती पिताआपदेव । कृष्णभावनामृतम् ले. विश्वनाथ । कृष्ण यजुर्वेद - चार वेदों में यजुर्वेद द्वितीय वेद है। वेद व्यास के शिष्य वैशंपायन यजुर्वेद के प्रथम आचार्य है। उन्होंने यह वेद अपने शिष्यों को सिखलाया। इस सम्बन्ध में एक कथा बतलाई जाती है कि इनके शिष्यों में याज्ञवल्क्य नामक एक शिष्य था, जिसका अपने गुरु के साथ झगडा हो जाने पर वैशंपायन ने उससे यह वेद उगल डालने के लिये कहा। याज्ञवल्क्य द्वारा उगला हुआ वेद व्यर्थ न जाए इस हेतु अन्य शिष्यों ने तित्तिरी पक्षियों के रूप में उसे पचा लिया। यही " तैत्तिरीय" नामक यजुर्वेद की शाखा की उत्पत्ति बताई जाती है । याज्ञवल्क्य ने आगे चलकर सूर्योपासना कर सूर्य से नये वेद की प्राप्ति की जिसे "शुक्ल यजुर्वेद" कहा गया। अर्थात् पूर्ववर्ती तैत्तिरीय शाखा को "कृष्ण यजुर्वेद" माना गया। पातंजल महाभाष्य के अनुसार यजुर्वेद की 101 शाखाएं थीं। चरणव्यूह में 86 शाखाओं (यजुर्वेदस्य षडशीति भेदा भवन्ति) का उल्लेख है किन्तु कृष्ण यजुर्वेद की 1) तैत्तिरीय 2 2) मैत्रायणी, 3) काठक और 4) कपिष्ठल यह केवल चार शाखाएं ही उपलब्ध हैं । श्वेताश्वतर भी इसकी एक शाखा है, किन्तु अब केवल उसका उपनिषद् ही उपलब्ध है । आनंदसंहिता के अनुसार कृष्ण यजुर्वेद की कौडिण्य अथवा अग्निवेश नामक शाखा भी थी किन्तु इस शाखा का अब केवल गृह्यसूत्र ही उपलब्ध है। तैत्तिरीय शाखा के संहिता, ब्राह्मण, आरण्यक और उपनिषद् ग्रंथ उपलब्ध हैं। कठ और कपिष्ठल संहिताओं को चरकसंहिता भी कहा जाता है। चरक यह वैशम्पायन का ही नाम माना जाता है। कृष्णयामलम् - श्लोक 460 | व्यास नारद संवादरूप। इसमें कृष्ण की महिमा का प्रतिपादन किया गया है जिसमें वृन्दावन का आरोहण, विद्याधर आदि का प्रत्यागमन, विद्याधरी को कृष्ण का शाप, विद्याधर के साथ नारदजी का निर्गमन, कृष्ण के किंकर की उत्पत्ति, मदालसा का उपाख्यान, ऋतुध्वज का पितृपुर में प्रवेश, कालयवन का भस्म होना आदि विषय वर्णित हैं। कृष्णराजकलोदय- चम्पू ले. यदुगिरि अनन्ताचार्य । विषय मैसूर नरेश कृष्णराज वोडियर का चरित्र कृष्णराजगुणाल कृष्णराज वोडियर का कृष्णराजप्रभावोदय ले. श्रीनिवास विषय मैसूर नरेश कृष्णराज वोडियर का चरित्र । कृष्णराजयशोडिण्डिम ले. अनन्ताचार्य । For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ले. त्रिविक्रमशास्त्री । विषय- मैसूर नरेश चरित्र । कृष्णराजाभ्युदय कवि - भागवतरत्न । विषय- मैसूर नरेश कृष्णराज वोडियर का चरित्र - - | कृष्णराजेन्द्रयशोविलास चम्पू ले.एस. नरसिंहाचार्य विषयमैसूर नरेश कृष्णराज वोडियर का चरित्र । कृष्णराजोदय-चम्पू ले. गीताचार्य । विषय- मैसूर नरेश कृष्णराज वोडियर का चरित्र । कृष्णलहरी ( सटीक ) कृष्णलीला - - - ले. वासुदेवानन्द सरस्वती। 1) ले. मदन । ई. 17 वीं शती घटखर्पर संस्कृत वाङ्मय कोश ग्रंथ खण्ड / 81
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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