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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir में सन 1878 से पुणे में संस्कृत-मराठी में इस मासिक पत्रिका का प्रकाशन होता था। काव्येन्दुप्रकाश - ले. सामराज दीक्षित। मथुरा के निवासी। ई. 17 वीं शती। काव्योपोद्घात - ले. मुडुम्बी नरसिंहाचार्य । विषय- काव्यशास्त्र । काशकृत्स्न धातुपाठ -(शब्दकलाप) पुणे के डेक्कन कॉलेज द्वारा यह ग्रंथ चन्नवीर कृत कनड टीका सहित कत्रड लिपि में प्रकाशित हुआ। इसका रोमन लिपि में भी एक संस्करण प्रकाशित हुआ है। इस धातुपाठ और कन्नड टीका में लगभग 137 काशकृत्स्न सूत्र उपलब्ध हो जाने से व्याकरण शास्त्र के पूर्व इतिहास पर नया प्रकाश पडा है। काशकृत्स्न धातुपाठ के मुखपृष्ठ पर "काशकृत्स्न शब्दकलाप धातुपाठ" नाम निर्दिष्ट होने से "शब्दकलाप" यह काशकृत्स्रीय धातुपाठ का नामांतर माना जाता है। इस धातुपाठ में 9 ही गण हैं। जुहोत्यादि (तृतीय) गण का अदादि (द्वितीय) गण में अन्तर्भाव किया है। प्रायः इस कारण "नवगणी धातुपाठ" यह वाक्प्रचार रूढ हुआ होगा। इस धातुपाठ के प्रत्येक गण में परस्मैपदी, आत्मनेपदी और उभयपदी इस क्रम से धातुओं का संकलन है। पाणिनीय धातुपाठ में ऐसी व्यवस्था नहीं है। इस धातुपाठ के भ्वादि (प्रथम) गण में पाणिनीय धातुपाठ से 450 धातुएं अधिक हैं। इस की लगभग 800 धातुएं पाणिनीय धातुपाठ से उपलब्ध नहीं होती और पाणिनीय धातुपाठ की भी बहुत सी धातुएं काशकृत्स्न धातुपाठ में उपलब्ध नहीं होती। पाणिनि । द्वारा अपठित परंतु लौकिक एवं वैदिक भाषा में उपलब्ध ऐसी बहुत सी धातुएं इस में उपलब्ध होती हैं। काशकृत्स्रधातुव्याख्यानम् - चन्नवीर ने कन्नड भाषा में धातुपाठ की टीका लिखी थी। इस टीका का युधिष्ठिर मीमांसक द्वारा अनुवाद प्रस्तुत नाम से प्रकाशित हुआ है। काशिकावृत्ति - ले. जयादित्य और वामन । व्याकरण विषयक एक प्राचीन कृति। पाणिनीय अष्टाध्यायी के आठ अध्यायों में प्रथम पांच की वृत्ति जयादित्यकृत तथा शेष तीन की वामनकृत है। प्रथम दोनों ने स्वतंत्रतया पूर्ण अष्टाध्यायी पर वृत्ति रचना की थी, परंतु आगे चलकर ये दोनों सम्मिलित हो गईं। यह संयोग किसने और क्यों किया यह ज्ञात नहीं है। रचना का स्थान काशी होने से वृत्ति नाम काशिका रखा हो। जयादित्य की अपेक्षा वामन की लेखनशैली अधिक प्रौढ है। यह ग्रंथ विशेष महत्त्वपूर्ण होने का कारण 1) गणपाठ का यथास्थान सनिवेश 2) अष्टाध्यायी के प्राचीन और विलुप्त वृत्तिकारों के मत इसमें उद्धृत हैं। ये मत अन्यत्र अप्राप्य है। 3) अनेक सूत्रों की वृत्ति, प्राचीन वृत्तियों के आधार पर होने से प्राचीन मतों का ज्ञान होता है। 4) अनेक उदाहरण और प्रत्युदाहरण प्राचीन वृत्तियों के अनुसार हैं। प्राचीन काशिका का रूप अनेक अशुद्धियों से व्याप्त है। वामन - जयादित्य कृत काशिका सी टीकाएं अनेक विद्वानों ने लिखी हैं। उनमें कई अप्राप्य हैं। बहुतों के नाम भी ज्ञात नहीं हैं। काशिकातिलक-चम्पू - ले.- नीलकण्ठ। पिता- रामभट्ट। विषय- प्रवास के माध्यम से शैव क्षेत्रों का वर्णन । काशिकाविवरण-पंजिका - ले. जिनेन्द्रबुद्धि। ई. 8 वीं शती। पाणिनीय परंपरा का यह ग्रंथ "न्यास" नाम से विख्यात है। काशी-कुतूहलम् - ले. रामानन्द । ई. 17 वीं शती। काशीतिहास - ले. भाऊ शास्त्री वझे। आप विद्वान प्रवचनकार थे। ई. 20 वीं शती। वेदकाल से स्वातंत्र्य प्राप्ति तक का उत्तर प्रदेश का वैशिष्ट्य पूर्ण संक्षिप्त इतिहास इस ग्रंथ में समाविष्ट है। वझे शास्त्री का निवास दीर्घकाल तक नागपुर में रहा। काशीप्रकाश - ले. नंदपडित। ई. 16 वीं शती। काशीमरणमुक्तिविवेक - ले. नारायण भट्ट । पिता- रामेश्वरभट्ट । ई. 16 वीं शती। काशीविद्यासुधानिधि - इस मासिक पत्रिका का प्रकाशन 1 जून, 1866 से प्रारम्भ हुआ तथा यह सन १९१७ तक लगातार प्रकाशित होती रही। इसका दूसरा नाम “पण्डित" था। प्रकाशन स्थल राजकीय संस्कृत विद्यालय वाराणसी था। अप्रकाशित और अप्राप्य पुस्तकों का प्रकाशन इसका प्रमुख उद्देश्य था। कुछ पाश्चात्य संस्कृत ग्रंथों के अनुवाद यथा बर्कले के "प्रिंसिपल्स ऑफ ह्युमन नॉलेज" ग्रंथ का अनुवाद, "ज्ञान -सिद्धान्त चन्द्रिका' नाम से तथा लॉक के एसेज कन्सर्निग ह्युमन अन्डरस्टॅन्डिंग' ग्रंथ का अनुवाद “मानवीय-ज्ञान-विषयक शास्त्र नाम से इसमें प्रकाशित किया गया। लगभग 50 वर्षों के कालखण्ड में इस मासिक पत्रिका में रामायण, साहित्य-दर्पण, मेघदूत आदि अनेक संस्कृत ग्रंथों के अंग्रेजी अनुवाद, संस्कृत का प्रथम निबन्ध बापुदेव शास्त्री का "मानमन्दिरादिवेधालयवर्णन" के अतिरिक्त रामभट्ट का "गोपाललीला" काव्य, अमरचन्द्र, कृत "बालभारत" काव्य तथा मथुरादास की "वृषभानुजा" नाटिका भी प्रकाशित हुई। पौरस्त्य और पाश्चात्य दोनों दृष्टिकोणों का इसमें समन्वय था । काशीशतकम् - ले. बाणेश्वर विद्यालंकार । ई. 17-18 वीं शती। काश्मीर-सन्धान-समुद्यम (नाटक) - ले. नीर्पाजे भीमभट्ट । जन्म 1903 | "अमृतवाणी' 1952-53 के अंक 11-12 में तथा पुस्तक रूप में प्रकाशित। आठ दृश्यों में विभाजित । नान्दी नहीं। एकोक्तियों का प्रयोग अधिक मात्रा में है। कथासार - श्यामा प्रसाद मुखर्जी काश्मीर विभाजन के विरोधी हैं। विश्व राष्ट्रसंघ की ओर से ग्राहम काश्मीर समस्या सुलझाने आते हैं। नेहरू अहिंसा के पक्षधर हैं। नेहरू तथा शेख अब्दुल्ला से वार्तालाप करने पर ग्राहम निष्कर्ष निकालते हैं कि काश्मीर भारत के साथ सम्बन्ध रखना चाहता है। श्यामाप्रसाद समझते हैं कि शेख अब्दुल्ला भारत को धोखा संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड/71. For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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