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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra " निबंध । सन 1944 तथा मैसूर वि. वि. द्वारा सन 1950 में प्रकाशित । कर्मदहनपूजा - ले. शुभचन्द्र (जैनाचार्य) ई. 16-17 वीं शती । कर्मनिर्णय -ले. मध्वाचार्य ई. 12-13 वीं शती । द्वैत मत विषयक ग्रंथ । www.kobatirth.org कर्मप्रकृति - ले. अभयचन्द्र जैनाचार्य ई. 13 वीं शती । कर्मप्रदीप धर्मशास्त्रविषयक गोभिल गृह्यसूत्र पर कात्ययन द्वारा लिखा गया परिशिष्ट । कर्मप्राभृतटीका - ले. समन्तभद्र जैनाचार्य। ई. प्रथम अंतिम भाग। पिता शांतिवर्मा । कर्मफलम् (प्रहसन ) - ले. रमानाथ मिश्र । रचना सन 1955 में, सम्भवतः सन 1961 में प्रकाशित। विषय भारतीय समाज की विषमताओं का चित्रण । कर्मविपाक ले कलकीर्ति जैनाचार्य ई. 14 वीं शती पिता कर्णसिंह । माता शोभा । कर्मविपाकार्कः ले. शंकरभट्ट । ई. 17 वीं शती । कर्मसारमहातन्त्रम् शलेक 9500 कुल 28 उल्लासों में विभक्त है। ग्रंथकार श्रीकण्ठपुत्र मुक्तक (मुज्जका मुख्यक) ने अपने गुरु श्रीकण्ठ के अनुग्रह से शिवात्मक तत्त्व का ज्ञान प्राप्त कर सब तन्त्रों का सार इस में प्रतिपादित किया है। इस में कहा गया है कि वेदान्त से शैव शास्त्र, शैव से दक्षिणाप्राय और दक्षिणाप्राय से पक्षिमाप्राय श्रेष्ठतम है। कर्णानन्दम् ले कृष्णदास विषय छन्दःशास्त्र । - कर्णानन्दचम्पू-ले. कृष्णदास कर्नाटकशब्दानुशासनम् ले भट्ट अंकलदेव ई. 17 वीं । शती। कर्नाटकवासी जैन विजयनगर के राजा का आश्रय प्राप्त । प्रस्तुत ग्रंथ कन्नड भाषा का संस्कृत भाषीय व्याकरण ग्रंथ है। इसमें उदाहरण कन्नड साहित्य से दिये गये है। यह कन्नड साहित्य में सम्मानित ग्रंथ हैं। । कर्णामृतम् ले गोविन्द व्यास (ई. 16 वीं शती) । कर्णार्जुनीयम् ले. कवीन्द्र परमानन्द ऋषिकुल (लक्ष्मणगढ) निवासी, ई. 20 वीं शती । 1 कलंकमोचनम् -से. पंचानन तर्करल भट्टाचार्य (जन्म 1866 ) सूर्योदय पत्रिका में प्रकाशित। विषय- राधाकृष्ण का आध्यात्मिक स्वरूप विशद कर राधा पर लगा कलंक मिटाना। कलश ले मुनि अमृतचंद्रसूरि ई. 9 वीं शती जैन मुनि कुंदकुंदाचार्य के प्राकृत में लिखे गये अध्यात्म विषयक जैनपंथी ग्रंथ पर संस्कृत पद्य में लिखी गई यह टीका है। कलशचन्द्रिका - श्लोक 4200। इसमें हरि, हर, दुर्गा, स्कन्द, गणेश, प्रजापति, काली आदि की कलश विधि, अंकुशरोपण तथा हवन आदि के साथ कहीं गयी है । कलांकुरनिबन्ध ( रागमालिका) ले. पुरुषोत्तम कविरत्न । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लेखक की अन्य रचनाएं रामचन्द्रोदय, रामाभ्युदय और बालरामायणम् कलाकौमुदीचम्पू -ले. चक्रपाणि । कलादीक्षा -ले. मनोदत्त । यह ग्रंथ शिवस्वामी द्वारा परिवर्द्धित कलादीक्षा रहस्यचर्चा - श्लोक 6889 यह गद्य और पद्य में लिखित ग्रंथ तान्त्रिक मंत्रों में दीक्षित कराने की विधि का प्रतिपादक है। विषय- विशेष दीक्षाविधि, दीक्षासम्बन्धी प्रयोग, तथा तांत्रिक दीक्षा की आवश्यकता। षोडश उपचारों के मन्त्र, होमविधि, कलादीक्षाविधि, शान्त्यतीत कला की शुद्धि, आत्मविद्या तथा शिवतत्त्व के विभागादि का प्रतिपादन । कलानन्दकम् (नाटक) - ले. रामचन्द्र शेखर 18 वीं शती । कथासार नायक नन्दक भद्राचल पर तप करने वाले राजदम्पति का पुत्र है। नायिका कलावती दिल्लीश्वर की कन्या है। दोनों परस्परों की गुणचर्चा सुन अनुरक्त होते हैं नन्दक गुप्त वेश में नायिका से मिलने जाता है। वह गौरीपूजा के बहाने उसका साहचर्य पाती है। त्रिकालवेदी नामक योगी की तपस्या में विघ्न आता है जिसे नन्दक दूर करता है। अत एव योगी कृतज्ञता से नंदक की सहायता करता है। कलावती का पिता नन्दक को कन्या देना नहीं चाहता, परन्तु त्रिकालवेदी की सहायता से उनका मिलन होता है । कलाप-तत्त्वार्णव - ले. रघुनन्दन आचार्य शिरोमणि । कलाप - दीपिका - ले. रामचरण तर्कवागीश (ई. 17 वीं शती) अमरकोश पर भाष्य । कलापव्याकरणम् (उत्पत्ति की कथा) - शिवशर्मा ने सातवाहन को छह माह में विद्वान् बनाने की प्रतिज्ञा की और वह कार्तिक स्वामी की उपासना करने जंगल को प्रस्थित हुआ। कडी तपस्या से उसने स्वामी को प्रसन्न किया। उन्होने "सिद्धो वर्णसमाम्नायः " इस सूत्र का उच्चार किया तब शिवशर्मा ने अपनी बुद्धि से आगे का सूत्र पढा । स्वामी ने कहा की शिवशर्मा ने बीच में ही स्वतः सूत्रोच्चार किया, इस लिये इस शास्त्र की महत्ता घट गई है और उन्होंने नया सुलभ व्याकरण शिवशर्मा को दिया। यह पाणिनि के व्याकरण के कम महत्त्व का तथा अल्पतन्त्र का होने से "कातन्त्र" तथा "कालाप" इन नामों से प्रसिद्ध हुआ। कलापसार - ले. रामकुमार न्यायभूषण । कलापिका ले.डॉ. वीरेन्द्रकुमार भट्टाचार्य पाक्षात्य पद्धति के सॉनेट (सुनीत) छंद में रचे हुए काव्यों का संकलन । कलावती- -कामरूपम् (रूपक) ले नवकृष्णदास (ई. 18 वीं शती) कथासार नायिका कलावती का अपहरण होता है और काशी के राजकुमार कामरूप उसे छुड़ाते हैं । अन्ततः दोनों प्रणय सूत्रों में बंधते हैं। For Private and Personal Use Only संस्कृत वाङ्मय कोश ग्रंथ खण्ड / 51
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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