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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यामलाष्टक में अन्यतम है। उमासहस्रम् - ले.- वसिष्ठ गणपति मुनि। ई. 19-20 वीं शती। पिता-नरसिंहशास्त्री। माता-नरसीबा। लेखक के शिष्य ब्रह्मश्री कपालीशास्त्री की उमासहस्रप्रभा नामक मार्मिक टीका इस स्तोत्र पर है। उमास्वाती-भाष्यम् - ले.- सिद्धसेनगणी: विषय- मैत्रेयरक्षित कृत धातुप्रदीप का भाष्य। ऊरुभंगम् - ले.- भास। इस रूपक में कौरव-पाण्डवों के युद्ध में कौरव पक्ष के सभी वीरों के मारे जाने के बाद भीम-दुर्योधन के गदायुद्ध के वध का वर्णन है। नाटक की विशेषता इसके दुःखांत होने के कारण है। इसमें एक ही अंक है और उसमें समय व स्थान की अन्विति का पूर्ण रूप से पालन किया गया है। कुरुराज दुर्योधन व भीमसेन के गदायुद्ध के वर्णन में वीर व गांधारी, धृतराष्ट्र आदि के विलापों में करुण रस की व्याप्ति है। इस नाटक में दोधन के चरित्र को अधिक प्रखर व उज्ज्वल चित्रित किया गया है। उसके चरित्र में वीरता के साथ विनयशीलता भी दिखाई पड़ती है। यह नाटककार भास की नवीन कल्पना है। दुर्योधन व भीम के गदा-युद्ध पर ही इस नाटक की कथावस्तु केंद्रित होने से इसका नाम भी सार्थक है। इस नाटक का नायक दुर्योधन है। रंगमंच पर नायक की मृत्यु दिखलाई गई है। पारंपारिक शास्त्रीय दृष्टि से यह घटना । अनौचित्यपूर्ण मानी जाती है। ऊर्ध्वपुंडउपनिषद् - यह वैष्णव उपनिषदों में से एक है। वराहरूपी विष्णु द्वारा सनत्कुमार को दिये गये इस उपदेश में ऊर्ध्वपुंड्धारण की विधि समझायी गयी है। प्रथम श्वेतमृत्तिका की प्रार्थना, उस मृत्तिका से कपाल पर तीन खडी रेखाएं आंकना, इस प्रकार की यह विधि है। ये तीन रेखाएं तीन विष्णुपदों की निदर्शक हैं। ऊर्ध्वपुंड्र धारण करने से विष्णु के परमपद की प्राप्ति होती है। ऊर्ध्वाम्नायसंहिता - (1) श्लोकसंख्या 300। नारद-व्यास संवादरूप यह अर्वाचीन तन्त्र-ग्रन्थ 12 अध्यायों में पूर्ण है। इसमें बंगाल के महावैष्णव गौरांग चैतन्य का (बुद्धदेव के स्थान पर) अवतार के रूप में उल्लेख है और इसमें उनकी पूजा के मन्त्र भी प्रतिपादित हैं। विषय है- गुरुभक्ति, अवतारवर्णन, गौरमन्त्र का उद्धार, तुलसीमाहात्म्य, गंगामाहात्म्य, गुरु की पूजा, नारायणस्तुति, गयामाहात्म्य, कार्तिकमास का माहात्म्य, वैष्णव सन्तों की पूजा तथा अपराध कथन इत्यादि। ऊर्वशी-सार्वभौमम् (ईहामृग) - ले.- प्रधान वेङ्कप्प। 18 वीं शती। श्रीरामपुरवासी। श्रीरामपुर के श्रीनिवास राम के महोत्सव में अभिनीत । अंकसंख्या चार। संविधान में प्रख्यात के साथ कल्पित कथा भी है। प्रधान रस शृंगार, वीर रस से संवलित है। कथासार - इन्द्र उर्वशी पर लुब्ध है। नायक पुरुरवा भी ऊर्वशी को चाहता है। अपने दो सखाओं में स्पर्धा देखकर ऊर्वशी अन्तर्धान कर सुमेरु पर्वत पर चली जाती है। एक दिन जब वह मन्दार वन में बैठी पुरुरवा का ध्यान कर रही है, तब इन्द्र पुरुरवा के वेष में उसके पास पहुंचता है। उसी समय वास्तविक पुरुरवा भी वहीं आता है। ऊर्वशी किंकर्तव्यमूढ होती है, क्यों कि दोनों स्वयं को वास्तव पुरुरवा और दुसरे को छद्मवेशी बताते हैं। दोनों वागयुद्ध के पश्चात् शस्त्रयुद्ध पर उतरते हैं। दोनों में घनघोर युद्ध होता है। तब इन्द्र अपने वास्तविक रूप में प्रकट होते हैं। उसी समय नारद उपस्थित होकर कहते हैं कि युद्ध बन्द करे। ऊर्वशी का अधिकारी वही होगा जिसे वह चाहेगी। ऊर्वशी पुरुरवा को वरती है। उषा - 1889 में कलकत्ता के 16-1 घोष लेन, सत्यप्रेस से.. प्रियव्रत भट्टाचार्य द्वारा इस मासिक पत्रिका का प्रकाशन प्रारंभ किया गया। संपादक सत्यव्रत सामश्रमी भट्टाचार्य थे। बंगाल में वेदों का प्रचार करना इसका उद्देश्य था। इस पत्रिका मेंप्रत्नकालस्य धर्मः, प्रत्नकालस्य सामाजिकी रीतिः, प्रत्नकालस्य नीत्युपदेशः, प्रनकालस्य विज्ञानोदयः, लुप्तकल्पवेदाङ्गानि, लुप्तकल्पवेदाः, लुप्तकल्पदर्शनादयः पुराणतत्त्वम् तथा पारमार्थिकम् आदि प्रकार के विषयों का प्रकाशन होता था। 19 वीं शती की यही एकमात्र पत्रिका ऐसी थी जिसे ब्रिटेन, जर्मनी आदि देशों में भी लोकप्रियता प्राप्त हुई थी। अनेक पाश्चात्य विद्वानों ने इसमें प्रकाशित सामग्री तथा उसके स्तर की सराहना की है। इसे संस्कृत के जागरण युग की "उषा'' कहा जाता है। उषा - सन 1913 में गुरुकुल कांगडी (हरिद्वार) से पं.हरिश्चन्द्र विद्यालंकार के सम्पादकत्व में इस पत्रिका का प्रकाशन आरंभ हुआ। तीन वर्षों बाद प्रकाशन स्थगित हो गया, किन्तु 1918 में पुनः पं.शशिभूषण विद्यालंकार के सम्पादकत्व में यह पत्रिका 1920 तक छपती रही। ___ इस पत्रिका में काव्य, गीत, समीक्षा, शास्त्र चर्चा ऐतिहासिक, धार्मिक व सांस्कृतिक निबंध और "समाचार-पूर्तियां' आदि प्रकाशित होती थीं उषानिरुद्धम् (काव्य) - ले.- राम पाणिवाद । ई. 18 वीं शती। उषापरिणयम् (रूपक) - ले.- कृष्णदेवराय। उषापरिणयचम्पू - ले.- शेषकृष्ण। ई. 16 वीं शती। उषाहरणम् (नाटक) - ले.- देवनाथ उपाध्याय ई. 18 वीं शती। अंकसंख्या 6। गीतों का बाहुल्य । उषा-अनिरुद्ध परिणय की कथा किरतनिया पद्धति से चित्रित है।। उषाहरणम् - ले.- त्रिविक्रम पंडित। ई. 13 वीं शती। पिता-सुब्रह्मण्यभट्ट। उलूककल्प (नामान्तर उलूकतन्त्रम्) - श्लोक 72। भैरव संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड/43 For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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