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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir म्लेच्छ राज्य का काल, गौड देश गर्गपुर में कल्कि अवतार, उनके विवाह, बाह्यशुद्धिनिरूपण, जगन्नाथ के प्रसाद का माहात्म्य, गंगामाहात्म्य, ब्रह्मादि देवों के जन्म-विवाह, पांच प्रकार की मुक्ति, गोलोक, शिवलोक, सत्यलोकादि का वर्णन, कालिका निर्वाणदायिनी है यह कथन, बाणलिंग का प्रमाण आदि।। उत्तररंगमाहात्म्य - ले. श्रीकृष्णब्रह्मतन्त्र परकालस्वामी। (ई. 19 वीं शती)। उत्तररामचरितचंपू - ले. वेंकटाध्वरी । रचना-काल'1627 ई. । उत्तर-रामचरित-टीका - ले. घनश्याम। ई. 18 वीं शती। भवभूतिकृत नाटक की टीका। उत्तररामचरितम् - ले. महाकवि भवभूति। इस नाटक की गणना संस्कृत के श्रेष्ठ नाट्य ग्रंथों में होती है। इस नाटक में भवभूति ने राम के राज्याभिषेक के पश्चात् का अवशिष्ट जीवन वृत्तांत 7 अंकों में चित्रित किया है। __इस नाटक के कथानक का उपजीव्य वाल्मीकि रामायण पर आधारित है परंतु कवि ने मूल कथा मे अनेक परिवर्तन किये है। वाल्मीकि रामायण में यह कथा दुःखांत है और सीता अपने चरित्र के प्रति उठाए गए संदेह को अपना अपमान मान कर, पृथ्वी में प्रवेश कर जाती है। पर प्रस्तुत 'उत्तररामचरित' - नाटक में कवि ने राम-सीता का पुनर्मिलाप दिखा कर, अपने नाटक को यथासंभव सुखांत बना दिया है। संक्षिप्त कथा - रामायण के उत्तरकाण्ड पर आधारित इस नाटक के प्रथम अंक में राम, दुर्मुख नामक दूत से सीताविषयक लोकनिंदा की सूचना प्राप्त करते हैं। तब सीता के परित्याग का निश्चय कर, राम लक्ष्मण के साथ सीता को भागीरथी दर्शन के बहाने भेज देते हैं। द्वितीय अंक में राम दण्डकारण्य में जाकर शंबूक का वध करते हैं और जनस्थान के पूर्वपरिचित स्थानों को देखकर दुःखी होते हैं तथा अगस्त्याश्रम में जाते हैं। तृतीय अंक में पंचवटी में राम और वनदेवता वासंती का संवाद है। पूर्वानुभूत स्थानों को देखकर राम मूर्च्छित हो जाते हैं। वहीं अदृश्य रूप में उपस्थित सीता स्पर्श करके उन्हें सचेत करती है। चतुर्थ अंक में वाल्मीकि आश्रम में जनक कौशल्या और वसिष्ठ का लव के साथ वार्तालाप है। राजपुरुष से अश्वमेधीय अश्व के बारे में जानकर चन्द्रकेतु के साथ युद्ध करने लव चला जाता है। पंचम अंक में अश्वरक्षक चन्द्रकेतु और लव का वादविवाद है। षष्ठ अंक में उन दोनों के युद्ध को रामचन्द्र आकर बंद करवाते हैं। युद्ध का समाचार पाकर आये हुए कुश तथा लव को देखकर उनके प्रति राम का प्रेम उमडता है। सप्तम अंक में राम को सीता परित्याग के बाद कठोरगर्भा सीता को पुत्रप्राप्ति होना, पृथ्वी द्वारा उसे ले जाना आदि घटनाएं गर्भीक द्वारा बतायी गयी है। बाद में भागीरथी और गंगा प्रकट होकर राम और सीता का मिलन कराती हैं। उत्तररामचरित में अर्थोपक्षेपकों की संख्या 20 है। इनमें 4 विष्कम्भक और 16 चूलिकाएं हैं। प्रथम अंक में चित्रशाला की योजना, भवभूति की मौलिक कल्पना है। इसके द्वारा नाटककार की सहृदयता, भावुकता एवं कलात्मक नैपुण्य का परिचय प्राप्त होता है। इस दृष्य के द्वारा सीता के विरह को तीव्र बनाने के लिये सुंदर पीठिका प्रस्तुत की गई है और इसमें भावी घटनाओं के बीजांकुरों का आभास भी दिखाया गया है। द्वितीय अंक में शबूंक वध की घटना के द्वारा जनस्थान (दंडकारण्य) का मनोरम चित्र उपस्थित किया है। तृतीय अंक में छाया-सीता की उपस्थिति, इस नाटक की अपूर्व कल्पना है। राम की करुण दशा को देखकर सीता का अनुताप मिट जाता है और राम के प्रति उनका प्रेम और भी दृढ हो जाता है। 7 वें अंक के ग क के अंतर्गत एक अन्य नाटक की योजना कवि की सर्वथा मौलिक कृति है। इसके द्वारा वाल्मीकि रामायण की दुःखांत कथा को सुखांत बनाया गया है। प्रस्तुत नाटक में पात्रों के शील-निरूपण में अत्यंत कौशल्य प्रदर्शित हुआ है। इस नाटक के नायक श्रीरामचंद्र हैं। सद्यः राज्याभिषेक महोत्सव होते हुए भी उन्हें प्रजा-पालन एवं लोकानुरंजन का ही अत्यधिक ध्यान है। वे राजा के कर्तव्य के प्रति पूर्ण सचेष्ट हैं। अष्टावक्र द्वारा वसिष्ठ का संदेश प्राप्त कर वे कहते हैं : "स्नेहं दयां च सौख्यं च यदि वा जानकीमपि । आराधनाय लोकस्य मुंचतो नास्ति में व्यथा" ।। लोकानुरंजन के लिये वे प्रेम, दया, सुख और यहां तक कि जानकी को भी त्याग सकते हैं। प्रकृति-रंजन को वे राजा का प्रधान कर्तव्य मानते हैं। सीता के प्रति प्राणोपम स्नेह होने पर तथा उसके गर्भवती होने पर भी वे लोकानुरंजन के लिये उसका परित्याग कर देते हैं। राम की सहधर्मचारिणी सीता इस नाटक की नायिका है। रामचंद्र द्वारा परित्याग करने पर भी (अश्वमेध) में अपनी स्वर्ण-प्रतिमा की पत्नी स्थान पर स्थापना की बात सुन कर उनकी सारी वेदना नष्ट हो जाती है और वह संतोषपूर्वक कहती हैं- 'अहमेवैतस्य हृदयं जानामि, ममैष :- मैं उनका (राम का) हृदय जानती हूं और वे भी मेरा हृदय जानते हैं। प्रस्तुत नाटक में लगभग 24 पात्रों का चित्रण किया गया है किंतु उनमें महत्त्वपूर्ण व्यक्तितत्व राम और सीता का ही है। अन्य चरित्रों में लव, चंद्रकेतु (लक्ष्मण-पुत्र), जनक, कौसल्या, वासंती महर्षि वाल्मीकि भी कथावस्तु के विकास में महत्त्वपूर्ण श्रृंखला उपस्थित करते हैं। ___'उत्तर रामचरित' का अंगी रस करुण हैं। कवि ने करुणरस को प्रधान मानते हुए, इसे निमित्त-भेद से अन्य रसों में परिवर्तित होते हुए दिखाया है। (उ.रा, 3-47)। प्रधान रस संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड / 37 For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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