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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परिशिष्ट (19) देशभक्तिनिष्ठसाहित्य भारतीय समाज के अन्तःकरण में भूमाता, गोमाता, देववाणी, सनातन धर्मपरंपरा, मानवोद्धारक ऋषिमुनि, साधुसंत एवं साधुओं का परित्राण तथा दुर्जनों का विनाश करने में अपना और्य चरितार्थ करनेवाले वीरों के प्रति अपार भक्तिभावना एवं परम आदरभाव वेदकाल से अखण्ड रहा। इस भावना का आविष्कार वैदिक सूक्तों-मंत्रों में, पुराणों के अनेक आख्यानों में, रामायण (महाभारतादि महनीय उपजीव्य ग्रंथों के ऊर्जस्वल संवादों में, तीर्थक्षेत्रों के महात्म्यवर्णनों में यथास्थान प्रकट हुआ है। पुण्य श्लोक शिवाजी महाराज को स्वातंत्र्यार्थ प्रखर रणसंग्राम करने की जाज्वल्यमान प्रेरणा रामायण महाभारत के हितोपदेश द्वारा ही उनकी माता जिजाबाई ने उद्दीपित की थी इस विषय में इतिहासकारों में एकमत है। ___ अंग्रेजी साम्राज्य का निर्मूलन करने की प्रेरणा जनता में उद्दीपित करने के लिए सभी देशभक्तों ने वेदवचनों के साथ पुराण-इतिहास वाङ्मय के आख्यानों-उपाख्यानों का सतत उपयोग किया था। प्राचीन वाङ्मय में विद्यमान, स्वदेश, स्वधर्म एवं स्वसंस्कृति के भक्तिभावना और श्रद्धा का आवेशपूर्ण आविष्कार भारत की हिन्दी, बंगाली, मराठी प्रभृति प्रादेशिक भाषाओं के साहित्य में 1857 के स्वातंत्र्ययुद्ध के बाद भूरि मात्रा में अभिव्यक्त हुई। उसी कालावधि से लेकर आज तक संस्कृत साहित्य के अखिल प्रदेशवासी साहित्यिकों की खण्डकाव्य, महाकाव्य, नाटक, गीतिकाव्य आदि रचनाओं में स्वदेशभक्ति, स्वधर्माभिमान, राष्ट्रीय संस्कृति के अंगोपांगों के प्रति अभिमान इतनी अधिक मात्रा में व्यक्त होने लगा कि, संस्कृत साहित्य के क्षेत्र में एक नवयुग सा अवतीर्ण हुआ। इन रचनाओं की विचारधारा एवं भावकल्लेल, कालिदास-भवभूति बाण-दण्डी प्रभृति स्वनामधन्य प्राचीन एवं मध्ययुगीन साहित्यिकों के साहित्य में नहीं दिखाई देते। आधुनिक युग के संस्कृत साहित्य के स्वरतरंगों में रणवाद्यों के ध्वनितरंग तथा वीरगर्जना का भैरव निनाद सुनाई देता है जिसका पूर्वकालीन साहित्य में अभाव था। ये नए ध्वनितरंग एवं भैरव निनाद संस्कृत साहित्य की सजीवता के इतने बलवत्तर प्रमाण है कि, जिनके द्वारा "मृतभाषावादी" लोगों के मृषा और मिथ्या आरोप का निर्मूलन हो जाता है। प्रस्तुत परिशिष्ट में देशभक्तिनिष्ठा साहित्य तथा उसके निर्माताओं की प्रदीर्घ सूची दी है। इसी सूची के द्वारा आधुनिक संस्कृत साहित्यिकों का नामतः परिचय हो सकेगा। कोश के मुख्यांग में इन साहित्यिकों में से अनेकों का तथा उनके अनेक ग्रंथों का यथोचित मात्रा में परिचय उपलब्ध होगा। [संपादक] ग्रंथ ग्रंथकार अजेयभारतम्(रूपक): शिवप्रसाद भारद्वाज अध्यात्मशिवायनम् : डॉ. श्री.भा. वर्णेकर अन्तरिक्षनादः : द्वारकाप्रसाद त्रिपाठी अन्वर्थको : वि.के. छत्रे लालबहादुरोऽभूत् अपूर्वः : वि.के. छत्रे शान्तिसंग्राम (रूपक) अब्दुलमर्दनम् : सहस्रबुद्धे शास्त्री (रूपक) अमरमंगलम् : पंचानन तर्करत्न आर्योदयम् : गंगाप्रसाद उपाध्याय इन्दिराकीर्तिशतकम् : श्रीकृष्ण सेमवाल इन्दिरा-यशास्तिलकम् : डॉ. रमेशचन्द्र शुक्ल इन्दिराविजयम् : वेंकटरत्न ऊर्वीस्वनः : डॉ. कृष्णलाल (नादान) कटुविपाक :(रूपक): लीलाराव दयाल कल्याण कोष श्री.भि.वेलणकर काश्मीरसंधान- : नीजे भीमभट्ट समुद्यमः (नाटक) कृषकाणां नागपाशः : डॉ. भगीरथप्रसाद त्रिपाठी कनकवंशम् : बालकृष्ण भट्ट क्षत्रपतिचरितम् : डॉ. उमाशंकर त्रिपाठी (महाकाव्य) केरलोदयम् : के.एन. एलुतच्छन् (महाकाव्य) केसरिचंक्रमणम् : शिवप्रसाद भारद्वाज (रूपक) (लाला लाजपतराय चरित्र) क्रान्तियुद्धम् : वासुदेवशास्त्री बागोवाडीकर 518 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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