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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ई के पिता) श्री आशुतोष मुखर्जी का चरित्र इसमें वर्णित है। कलकत्ता के पद्यवाणी में प्रकाशित । आशुबोध - ले.- रामकिंकर । आशुबोध व्याकरणम् - ले.- तारानाथ तर्कवाचस्पति । पाणिनीय पद्धति पर आधारित लघु व्याकरण। 1822-1825 ई.। आश्चर्य-चूडामणि - ले.- शक्तिभद्र। संक्षिप्त कथा :- इस नाटक के प्रथम अंक में लक्ष्मण पंचवटी में राम और सीता के लिए पर्णकुटी बनाते हैं। शूर्पणखा वहां आकर उनसे प्रणय निवेदन करती है। लक्ष्मण उसे राम के पास भेजते हैं। द्वितीय अंक में राम द्वारा अस्वीकृत शूर्पणखा के नाक, कान लक्ष्मण काट देते हैं। कृद्ध शूर्पणखा अपने अपमान के बारे में अपने भाई खर और दूषण को बताने जाती है। तृतीय अंक में लक्ष्मण ऋषियों को राक्षसों के भय से निश्चिन्त करके ऋषियों द्वारा प्रदत्त वस्तुएं लाते हैं जिनमें लक्ष्मण के लिए कवच, राम और सीता के लिए अंगूठी और चूडामणि हैं। इन रत्नों को धारण करने वाले का स्पर्श होने पर राक्षसों की माया दूर हो जाती है। रावण स्वर्णमृग के माध्यम से राम को वन भेजकर स्वयं राम का और उसका सारथि लक्ष्मण का रूप धारण कर सीता का अपहरण करता है। उधर शूर्पणखा सीता का रूप धारण करती है। किन्तु राम का स्पर्श होते ही वह अपने राक्षसी रूप को प्राप्त करती है। चतुर्थ अंक में रावण द्वारा सीता का स्पर्श करने पर रावण अपने स्वरूप को प्राप्त करता है। तब जटायु सीतामुक्ति के लिए रावण से युद्ध करता है किन्तु वीरगति पाता है। पंचम अंक में रावण के प्रणय निवेदन को सीता अस्वीकार कर राम की प्रशंसा करती है, तब रावण उसे तलवार से मारना चाहता है पर मन्दोदरी आकर उसे रोकती है। षष्ठ अंक में हनुमान और सीता का संवाद है, सप्तम अंक में राक्षसकुल का संहार और बिभीषण का राज्याभिषेक होने पर अग्निपरीक्षा से विशुद्ध सीता सहित राम पुष्पक विमान से अयोध्या लौटते है। ___ आश्चर्यचूडामणि में कुल 14 अर्थोपक्षेपक हैं। इनमें 2 विष्कम्भक 1 प्रवेशक और 10 चूलिकाएं हैं। आश्चर्ययोगमाला - (1) ले.- नागार्जुन । श्लोकसंख्या- ४५० । नामान्तर योगरत्नावली या योगरत्नमाला। इस पर श्वेताम्बर जैन मुनि गुणाकर कृत विवृति है। रचनाकाल 1240 ई.। यह आश्चर्ययोगमाला अनुभवसिद्ध तथा सब लोगों के हृदय को प्रिय लगने वाली तथा सूत्रों से समर्थित है इसमें वशीकरण, स्तम्भन, शत्रुमारण, स्त्रियों के आकर्षण की विविध विधियां सिद्ध करने के अनेक उपाय बतलाए गये हैं। आश्मरथ्य - काशिकावृत्ति (4-3-105) भारद्वाज श्रौतसूत्र (1-16-7) वेदान्तसूत्र (1-4-20) तथा चरकसूत्र स्थान (1-10) इन ग्रंथों में आश्मरश्य का निर्देश है। यह किस वेद की शाखा है यह कहना असंभव है। आश्लेषाशतकम् - ले.- नारायण पंडित । विषय-निसर्गवर्णन। आश्वलायन-गुह्यसूत्र-वृत्ति - ले.- आनन्दराय मखी। ई. 17 वीं शती (उत्तरार्ध) आश्वलायन-श्रौतसूत्रम् - ऋग्वेद की आश्वलायन शाखा की संहिता यद्यपि उपलब्ध नहीं तथापि उसके गृह्य एवं श्रौत सूत्र उपलब्ध हैं। ऐतरेय ब्राह्मण से आश्वलायन का निकट का संबंध है। अश्वल ऋषि विदेहराज जनक के यहां थे। वे ही इन सूत्रों के प्रवर्तक हैं। ऐतरेय आरण्यक के चौथे कांड के प्रवर्तक आश्वलायन, शौनक ऋषि के शिष्य थे। ऐतरेय ब्राह्मण तथा ऐतरेय आरण्यक में जो श्रौतयज्ञ विस्तृत रूप में बताये गये हैं, उन्हें संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत करना ही इस सूत्र का उद्देश्य है। इसमें 12 अध्याय हैं। आषाढस्य प्रथमदिवसे - ले.- डॉ. वेंकटराम राघवन्। मद्रास की आकाशवाणी से प्रसारित प्रेक्षणक (ओपेरा)। विषयकालिदास के यक्ष के रामगिरि पर मिलने की कल्पित कथा। आषाढस्य प्रथमदिवसे - ले.- श्रीराम वेलणकर। 20 वीं शती। सुरभारती, भोपाल से सन 1972 में प्रकाशित । मेघदूत की पूर्ववर्ती कथा । पूर्वमेघ का अनुसरण । मेघदूत पर आधारित 17 गीतों का यह आकाशवाणी-नाटक है। आसुरीकल्प - (1) श्लोक संख्या 80। रचनाकाल ई. 1827। इसमें आसुरी देवी के मंत्रों से मारण, मोहन, स्तम्भन आदि तांत्रिक षट्कर्मों की सिद्धि का प्रतिपादन है। (2) श्लोकसंख्या 2201 इसमें तांत्रिक षट्कर्मों की सिद्धि आसुरी मंत्रों से प्रतिरपादित है। विभिन्न ग्रंथों से संग्रहीत चार आसुरी कल्प हैं। आसुरी विधान, राजवशीकरण, वन्ध्या का पुत्रजनन, देहन्यास आदि के साथ आसुरी मंत्र का प्रतिपादन । इसमें चतुर्थ कल्प शिव-कार्तिकेय संवाद रूप है। आसुरीकल्पविधि - आसुरीकल्पसमुच्चय में प्रतिपादित वशीकरण आदि षट्कर्मों की पद्धति इसमें प्रतिपादित है। आसुरीतंत्रसमुच्चय - श्लोकसंख्या 100। शिव- कार्तिकेय संवाद रूप। विषय- ऋतु, वर्ष, मास, तिथि, वार, नक्षत्र, बेला आदि तथा ध्यान आदि आसुरीकल्प की विधि इसमें प्रतिपादित है। आसुरी तंत्र के मुख्य विषय मारण, मोहन आदि हैं। आहिक श्लोकसंख्या 601 प्रातःकाल से सायंकाल पर्यन्त के और सायंकाल से प्रातःकाल पर्यन्त के धार्मिक कृत्यों का इसमें वर्णन है। आस्तिकस्मृति - ले.- पं. शिवदत्त त्रिपाठी। आहिताग्निदाहादिपद्धति - ले. नारायण भट्ट। ई. 16 वीं शती। पिता- रामेश्वरभट्ट।। आह्निकचन्द्रिका - केशवपुत्र धनराज द्वारा विरचित । श्लोकसंख्या 700। तांत्रिक पूजा में अधिकार प्राप्ति के लिए प्रातःकाल के कृत्य तथा न्यास आदि इसमें वर्णित हैं। शिवपूजा की विधि 32 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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