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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देवता व वनाटपति हेमांग की पुत्री कनकांगी का परिणय वर्णित है। भुवनदीपक - विषय- वास्तुशास्त्र । प्राप्तिस्थान - खेलाडीलाल संस्कृत बुकडेपो, कचौडी गल्ली, वाराणसी। मंगलापूजाविधि - श्लोक - 1805 । मंजुल-रामायणम्- श्रीरामदास गौड के अनुसार इसमें 1 लाख 20 हजार श्लोक हैं। परंपरा के अनुसार सुतीक्ष्ण नामक ऋषि ने स्वारोचिष मन्वन्तर के 14 वें त्रेता में इसकी रचना की। इसमें 7 सोपान हैं। भानुप्रताप-अरिमर्दन की कथा इसकी विशेषता है। मणिरत्न-रामायणम् - इसमें 36 हजार श्लोक हैं। परंपरा के अनुसार स्वारोचिष मन्वंतर के 14 वें त्रेता में इसकी रचना हुई। वसिष्ठ- अरुंधती संवाद के रूप में राम-कथा का गुंफन है। इसके 7 सोपान है। मधुमण्डनम् - काव्य। मनुष्यालयचंद्रिका - विद्याभिवर्धिनी प्रेस, क्विलोन (केरल) से प्रकाशित। विषय- वास्तुशास्त्र । मयमतम् - शिल्पशास्त्र विषयक ग्रंथ । महान्यास - इसके उद्धरण उज्ज्वलदत्त की उणादिवृत्ति में तथा सर्वानन्द की अमरटीका सर्वस्व में प्राप्त। रचना वि.सं. 1216 से पूर्व। महान्यास- जिनेन्द्रबुद्धि के न्यास पर आधारित व्याकरण ग्रंथ। बारहवीं शती से पूर्व लिखित। मातंगलीला - विषय- पशुविद्या। त्रिवेंद्रम संस्कृत सिरीज द्वारा प्रकाशित। मानवश्राद्धकल्प - हेमाद्रि द्वारा वर्णित । मासतत्त्वविवेचनम् - विषय- मासों एवं उनमें किये जाने वाले उपवास भोज एवं धार्मिक कृत्यों का विवेचन। मानसपूजनम् - श्रीशंकराचार्य विरचित मानसपूजास्तोत्र से मिलता जुलता है। श्लोक (या मन्त्र)- 52 । मानसार - शिल्पशास्त्रविषयक ग्रंथ । मुकुन्दमुक्तावली- श्रीकृष्ण विषयक काव्य । मुक्तिमहानन्दकथा - श्लोक- 878 । मृदंगलक्षणम् - विषय- संगीत । मेलाधिकारलक्षणम् - विषय-संगीतशास्त्र । यतिधर्मसंग्रह - आद्य शंकराचार्य के अनन्तर आचार्य परम्परा एवं मठाम्नाय का और यतिधर्म का वर्णन । युक्तिकल्पतरु - विषय- वास्तुशास्त्र एवं नौकाशास्त्र । कलकत्ता ओरिएण्टल सीरीज द्वारा प्रकाशित। योगरत्नाकर - विषय- आयुर्वेद। ई. 18 वीं शती। लंकावतारसूत्रम् - महायान सिद्धान्तों का ग्रंथ । रघुपतिरहस्यदीपिका - रंगराट्छन्दरत्नावदानमाला - रत्नों के समान बहुमूल्य अवदानों का संग्रह, महायान सम्प्रदाय की रचना ई. 6 वीं शती। रसरत्नसमुच्चय - विषय- खनिशास्त्र। इसमें सोना, चांदी, तांबा, लोहा, सीसा, कथिल, पितल और वृत्त नामक नौ धातु के प्रकार बताए हैं। खनिशास्त्र विषयक, रत्नपरीक्षा, लोहार्णव, धातुकल्प, लोहप्रदीप, महावज्र, भैरवतंत्र, पाषाणविचार और धातुकल्प नामक मूल ग्रंथों का निर्देश शिल्पसंसार मासिका पत्रिका के अप्रेल 1955 के अंक में श्री. गो.ग. जोशी ने किया है। रसवती - शतकम्। रत्नशतकम् - रागचन्द्रिका - विषय- संगीतशास्त्र । रागध्यानादिकथनाध्याय - विषय- संगीतशास्त्र । रागप्रदीप - विषय- संगीतशास्त्र। रागलक्षणम् - विषय- संगीतशास्त्र । रागवर्णनिरूपणम् - विषय- संगीतशास्त्र । रागसागरम् - पुराण पद्धति से नारद-दत्तिल संवादात्मक 3 अध्यायों की रचना । भिन्न राग, उनकी रचना तथा अंग वर्णित । अनन्तर काल के परिवर्तन तथा नवीन मत समाविष्ट हैं। यह 14 वीं शती के बाद की रचना है क्यों कि इसमें शाङ्गिदेव का नामनिर्देश है। रागारोहावरोहण-पट्टिका - राजनीतिकामधेनु - चण्डेश्वर के राजनीतिरत्नाकर द्वारा वर्णित। राजविजय- (नाटक) ऐतिहासिक रचना। प्रथम अभिनय राजनगर में यज्ञ के अवसर पर। 1947 ई. में कलकत्ता से प्रकाशित। नायक राजवल्लभ (बंगाल निवासी)। (1707-1763) के धार्मिक अनुष्ठानों तथा ऐश्वर्य की चर्चा | यह रचना द्वितीय अंक के अंतिम भाग से खण्डित है। अम्बष्ठों को उपनयन तथा यज्ञ का अधिकार है, यह सिद्ध करना ही रचना का हेतु है। राजीसाधन - विषय- सुवर्ण बनाने की विधि । रामानुजीयम् - काव्य। रामानुजचरितम् - काव्य । रामानुजदिव्यचरितम् - रामायण-कालनिर्णयसूचिका - राम की जन्मतिथि तथा अन्य घटनाओं की तिथि इसमें निर्दिष्ट हैं। रामायणतात्पर्यदीपिका - रामायणसारदीपिका - रूपावतार-व्याख्या - विषय- व्याकरण । 434 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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