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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व संन्यास धर्मविषयक जानकारी दी गई है। इसके अतिरिक्त नारीधर्म, नृपधर्म, जीव- परमेश्वर स्वरूप मोक्षसाधन, ऊर्ध्वपुण्ड पर चार अध्याय । व्यवहाराध्याय भी इसमें है। हास्यकौतूहलम् (प्रहसन ) - ले. विठ्ठल कृष्ण विद्यागी। ई. 18 वीं शती । हास्यसागर (प्रहसन ) ले. - रामानन्द । ई. 17 वीं शती । संवाद संस्कृत में, परंतु पांच पद्य हिन्दी में (छप्पय छन्द में)। इसमें हिन्दुओं की औरंगजेब-कालीन दुर्गति का चित्रण है । कथासार - ब्राह्मण वधू बिन्दुमती की कुट्टनी कलहप्रिया उसे मान्दुरिक नामक यवन के सम्पर्क में लाती है। विन्दुमती का भाई कुलकुठार राजा को इसकी जानकारी देता है। वहीं भण्डाफोड होता है। अन्य पात्र हैं मिथ्याशुक्ल और मण्डक चतुर्वेदी www.kobatirth.org हास्यार्णव (प्रहसन ) - ले. म.म. जगदीश्वर भट्टाचार्य । सन् 1701 में लिखित। अंकसंख्या दो। नायक- राजा अनयसिन्धु, मंत्री कुमतिवर्मा, आचार्य विश्वभण्ड और शिष्य कलहांकुर प्रमुख पुरुष पात्र हैं। सभी स्त्री-कामी चरित्रहीन । नायिकाएं बन्धुरा और मृगाइकलेखा भी चरित्रहीन धूर्तता के बल पर कार्यसिद्धि का वर्णन है। श्रीनाथ वेदान्तवागीश द्वारा संस्कृत टीका के साथ सन् 1896 में प्रकाशित। ताराकान्त काव्यतीर्थ द्वारा सन् 1912 में पुनश्च प्रकाशित । हा हन्त शारदे ( रूपक) ले. स्कन्द शंकर खोत । श. 20 | नागपुर से प्रकाशित । कथासार कीर्ति के गुड्डे के साथ मूर्ति की गुड्डियों की शादी होती है विवाहसमारोह के पश्चात् भोजन उन कागजों पर परोसा जाता है जिन पर गोविन्द (मूर्ति के पिता) ने अन्वेषण करके महत्वपूर्ण टिप्पणी लिखी है। मूर्ति के भाई की दूसरे दिन परीक्षा है उसकी पुस्तक के पत्रे भी खेल में काम आते हैं। उद्विग्न पिता-पुत्र स्त्रीशिक्षा के पक्षपाती बनते हैं। - हुतात्मा दधीचि ले. श्रीराम वेलणकर । सन् 1963 में दिल्ली आकाशवाणी से प्रसारित संगीतिका । महाभारत के वनपर्व की कथा पर आधारित । विषय- महर्षि दधीचि के बलिदान की कथा । प्राकृत भाषा का अभाव । हृदयकौतुकम् ले. महाराजा हृदयनारायण गढानरेश I विषय- संगीत शास्त्र। ई. 17 वीं शती । - हृदयप्रकाश ले. महाराजा हृदयनारायण गढानरेश। ई. 17 वीं शती । विषय- संगीतशास्त्र । - हृदयहारिणी - ले. दण्डनाथ नारायण भट्ट । सरस्वतीकण्ठाभरणम् की व्याख्या । मूल भोज कृत व्याख्या का यह संक्षेप है । हृदयामृतम् - ले. जगन्नाथ विषय- तंत्रशास्त्र । हितकारिणी जबलपुर (म.प्र.) से सन् 1964 से यह पत्रिका प्रकाशित हुई । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हितोपदेश - ले. नारायण पंडित । नीतिकथा विषयक प्रख्यात ग्रंथ । इसके कर्ता नारायण पंडित बंगाल के राजा धवलचन्द्र के आश्रित थे । इ.स. 14 वीं शती में पंचतंत्र के आधार पर ही इस ग्रन्थ की रचना की गई है। लगभग आधी कथाएं पंचतंत्र से ली गई हैं । ग्रंथ के कुल चार परिच्छेद हैंमित्रलाभ, सुहृद्-भेद, विग्रह और सन्धि इसके श्लोक उपदेशात्मक और कथाएं बोधप्रद हैं। 1 हिरण्यकेशिसूत्रम् (या सत्यापाठ गृह्यसूत्रम् ) हिरण्यकेशी कल्पसूत्र के 19 वें व 20 वें प्रश्नों को लेकर इसकी रचना हुई। इसमें गृह्य-संस्कार के समय कहे जाने वाले मंत्र चार पटलों में दिये गये हैं। डॉ. किटें द्वारा विएन्ना में सन् 1889 में सम्पादित, एवं सैक्रेड बुक ऑफ दि ईस्ट, भाग 30 में अनूदित टीका (1) प्रयोगवैजयन्ती, महादेव द्वारा। (2) मातृदत्त द्वारा । हिरण्यकेशि-धर्मसूत्रम् - हिरण्यकेशि-कल्पसूत्र के 26 वें व 27 वें प्रश्नों पर इसकी रचना की गई है। रचनाकार स्वयं हिरण्यकेशी अथवा उनका कोई वंशज रहा होता। भारतरत्न डॉ. पां.बा. काणे के मतानुसार हिरण्यकेशी ग्रंथों की रचना 5 वीं शताब्दी के पूर्व की गई है। चरणव्यूह के भाष्य में महार्णव के उद्धरणों से इस बात का पता चलता है कि हिरण्यकेशी ब्राह्मण महाराष्ट्र के सह्याद्रि और महासागर के बीच स्थित क्षेत्र चिपळूण में पाये जाते हैं। ये कृष्ण यजुर्वेद की तैत्तिरीय शाखा से सम्बद्ध हैं। हिरण्यकेशि- श्रौतसूत्रम् - हिरण्यकेशि-कल्पसूत्र के प्रथम 18 अध्याय तथा 21 से 25 अध्याय श्रौतसूत्र के रूप में जाने जाते हैं। इनमें दर्शपूर्णमास, अग्निहोत्र, चातुर्मास सोमयाग वाजपेय, राजसूय, आदि यज्ञों का ब्योरेवार वर्णन है। इनमें से कुछ सूत्रों पर महादेवभट्ट ने "वैजयंती", गोपीनाथभट्ट ने "ज्योस्त्ला" तथा महादेव दंडवते ने "चंद्रिका" नामक टीकाएं लिखी हैं। हिन्दुजन संस्कारणी सन् 1912 में मद्रास से श्रीमन्नव सिंहाचलम् पन्तुलु के सम्पादकत्व में इस पत्रिका का प्रकाशन हुआ। हिंदुविश्वविद्यालय (महाकाव्य) ले. मधुसूदनशास्त्री। वाराणसी के निवासी । सन् 1936 से 68 तक हिंदु विश्वविद्यालय में संस्कृत विभाग के प्रमुख प्रस्तुत महाकाव्य का प्रकाशन चौखम्बा पुस्तकालय द्वारा हुआ है। साहित्य शास्त्रवियक अनेक विषयों पर आपने विवरणात्मक लेखन किया है। काशी हिंदु विश्व विद्यालय नामक आपकी एकांकिका का वि.वि. के सुवर्णमहोत्सव में प्रयोग हुआ था। हिंदुहितवार्ता ले. शिवदत्त त्रिपाठी । हिस्ट्री ऑफ संस्कृत लिटरेचर का अनुवाद- अनुवादकर्ताएल. व्ही. शास्त्री । वैदिक वाङ्मय विषयक प्रकरण का अनुवाद | मूल लेखक मेकटोनेल । For Private and Personal Use Only संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड / 429
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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