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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चक्रवर्ती। (हरिदास तर्काचार्य के पुत्र)। 2) ले.- बोपदेव।। हरिलीलामृततंत्रम् - श्लोक- 182।। हरिवंशम् - यह महाभारत का खिल पर्व है। यह ग्रंथ वैशंपायन ने जनमेजय को सुनाया। पुराण की तरह इसमें ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति, ईश्वर के अवतारों, पुण्यश्लोक राजाओं तथा उनकी वीरगाथाओं का समावेश है। इसमें श्रीकृष्ण के बाल्यकाल और युवावस्था का चरित्र वर्णन है। इस ग्रंथ के हरिवंश-पर्व, विष्णुपर्व तथा भविष्यपर्व ये तीन भाग हैं। हरिवंश पर्व में 55, विष्णु पर्व में 128 और भविष्य पर्व में 135 अध्याय हैं। कुल 318 अध्यायों वाले इस ग्रंथ की श्लोकसंख्या बीस हजार से अधिक है। हरिवंश पर्व में पृथु का चरित्र, मनु मन्वन्तर व कालगणना, इक्ष्वाकु वंश, भगीरथ का जन्म, समुद्रमंथन आदि का विवरण है। विष्णु पर्व में वाराणसी क्षेत्र का पुनर्वसन, नहुषचरित्र, वृष्णिवंश, श्रीकृष्ण के जन्म से विवाह तक जीवन चरित्र का वर्णन है। भविष्य पर्व में चारों युगों के मानवों के आचार-विचार, कलियुग में लोग कैसा आचरण करेंगे आदि की जानकारी दी गई है। इसके साथ ही ब्रह्मदेव की उत्पत्ति, हिरण्यकशिपु का वध, समुद्रमंथन, वामनावतार, श्रीकृष्ण का कैलास गमन, विभिन्न व्रतों, मंत्रों तथा विधियों का विवरण भी इसी पर्व में है। डॉ. हाजरा के मतानुसार हरिवंश का रचनाकाल इ.स. 4 थी शती है। अनेक टीकाकार इसकी गणना पुराणों में करते हैं। हरिवंश-टीका- ले. नीलकण्ठ चतुर्धर । पिता- गोविंद। माताफुल्लांबिका। ई. 17 वीं शती। हरिवंशपुराणम् - ले.-जिनसेन (प्रथम) जैनाचार्य। ई. 8 वीं शती। 36 सर्ग। हरिवंशपुराणम् - ले.- ब्रह्मजिनदास। जैनाचार्य। ई. 15-16 वीं शती। 14 सर्ग। हरिवंशविलास - ले.- नंदपंडित। ई. 16-17 वीं शती। विषय- आह्निक, कालनिर्णय, दान, संस्कार आदि । हरिवासरनिर्णय - ले.-व्यंकटेश। हरिविलास - ले.- कविशेखर । पिता- यशोदाचंद्र। हरिश्चन्द्रचरितम् (नाटक) - ले.-कविराज रणेन्द्रनाथ गुप्त । रचनाकाल- सन 1911। अंकसंख्या- पांच। अंक विविध दृश्यों में विभाजित। भाषा- पात्रानुसार मृदु तथा ओजस्वी। पाश्चात्य रंगमंचीय विधान। इस पर उत्तर रामचरित का स्पष्ट प्रभाव दिखता है। प्रधान रस करुण, बीच में हास्य का पुट। धर्म, विघ्नराट्, महाव्रत आदि प्रतीकात्मक पात्रों की योजना। हरिश्चन्द्र की पौराणिक कथा, कर्म पर धर्म की प्रभाव प्रतिपादित करने हेतु निबद्ध। हरिश्चन्द्र-चरितम् (काव्य) - ले.- म.म. विधुशेखर शास्त्री (जन्म- 1878)। हरिश्चन्द्रचरितचम्पू - ले.-गुरुराम। मूलन्द्र (उत्तर अर्काट जिले के निवासी। ई. 16 वीं शती । हरिश्चन्द्रविजयचम्पू - ले.-पंचपागेश शास्त्री कविरत्न । शांकरमठ, कुम्भकोणम् में अध्यापक। 19-20 वीं शती। हरिस्मृति-सुधाकर- ले.- रघुनन्दन। इसमें वैष्णव गीतों की राग-प्रणाली की जानकारी मिलती है। हरिहरपद्धति - ले.-हरिहर। पारस्करगृह्यसूत्र तथा उनके भाष्य से संबंधित। हरिहरभाष्यम् - ले.- हरिहर। पारस्करगृह्य सूत्र का भाष्य। हर्षचरितम् - ले.- बाणभट्ट। गद्य-आख्यायिका। इसके कुल आठ उच्छ्वास हैं, जिनमें श्रीकंठ जनपद के स्थानेश्वर में वर्धन राजवंश में जन्मे एक महान् सम्राट हर्षवर्धन की जीवनगाथा बाणभट्ट ने अत्यंत रोचक ढंग से काव्यबद्ध की है। हर्षवर्धन ने अपने पराक्रम से काश्मीर से असम तक और नेपाल से नर्मदा तक तथा उडीसा में महेंद्र पर्वत तक अपनी सार्वभौम सत्ता प्रस्थापित की थी। हर्षवर्धन ने स्वयं नागानंद, रत्नावली व प्रियदर्शिका नामक नाटक लिखे हैं। इनका कालखण्ड इ.स. 606से 647 तक है। बाणभट्ट के इस प्रबन्ध काव्य में 7 वीं शताब्दी के विंध्योत्तर भारत का चित्र प्रस्तुत किया गया है। प्रारंभ के तीन उच्छ्वासों में कवि का आत्मचरित्र, शेष 5 में हर्ष का चरित्र, हर्षवर्धन, राज्यवर्धन तथा राज्यश्री का जन्म। पिता-राजा प्रभाकरवर्धन का परिचय बाल्यकाल, राज्यश्री का विवाह, पिता का देहान्त, भगिनीपति का वध, तथा राज्यवर्धन का विश्वासघात से वध, राज्यश्री का कारावास, भगिनी का हर्ष द्वारा खोज निकालना इतना ही चरित्र भाग है। बाण की वैशिष्ट्यपूर्ण गद्यशैली, विस्तृत वर्णन, अलंकारों की शोभायात्रा इसमें है। संस्कृत साहित्य के तथा भारत के राजकीय इतिहास में इस ग्रंथ का विशेष महत्त्व माना जाता है। हर्षचरित के टीकाकार - 1) राजानक शंकरकंठ, 2) रंगनाथ, 3) रुचक (हर्षचरित-वर्तिका टीका) 4) शंकर। हर्षचरितसार - ले.-प्रा. व्ही. अनन्ताचार्य कोडंबकम्। 2) ले.- म.म. डॉ. पद्मभूषण वासुदेव विष्णु मिराशी। नागपुरनिवासी। लेखक की सुबोध टीका भी है। 3) ले.- आर.व्ही. कृष्णम्माचार्य। हर्ष-बाणभट्टीयम् (नाटक) - ले.-रंगाचार्य। श. 201 संस्कृत साहित्य-परिषत् पत्रिका में प्रकाशित। अंकसंख्या-चार । नायक-हर्षवर्धन। श्रीहर्ष के पिता प्रभाकरवर्धन की मृत्यु से हर्षवर्धन के राज्याभिषेक और बाणभट्ट से मिलने तक का कथाभाग इसमें वर्णित है। हर्षहृदयम् - ले.-गोपीनाथ । श्रीहर्षकृत नैषधीय काव्य की व्याख्या। हर्षहदयम् - ले.-गंगाधर कविराज। सन 1798-18851 चित्रकाव्य। हल्लीशमंजरी - ले.-प्रा. सुब्रह्मण्य सूरि । संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड / 427 For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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