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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 2) ले.- मोहन मिश्र । सिद्धान्तशेखर- ले. विश्वनाथ। भास्कर के पुत्र । सिद्धान्तसम्राट् ले. जगन्नाथ ई. 18 वीं शती विषय - गणित शास्त्र । सिद्धान्तसार ले. जिनचन्द्र ई. 15 वीं शती । । 2) ले भावसेन वैविद्य जैनाचार्य ई. 13 वीं शती सिद्धान्तसारदीपक ले. सकलकीर्ति जैनाचार्य। ई. 14 वीं शती । पिता - कर्णसिंह । माता- शोभा । 16 अधिकारों मे पूर्ण । सिद्धान्तसार - पद्धति ले. महाराज भोजदेव । विषय- सूर्यपूजा, नित्यकर्म, मुद्रा- लक्षण, प्रायश्चित्त, दीक्षा, साधक का अभिषेक, आचार्य का अभिषेक, पादप्रतिष्ठा, लिंगप्रतिष्ठा, द्वारप्रतिष्ठा, इत्यतिष्ठा, जीर्णोद्धार इत्यादि विधि सिद्धान्तसारसंग्रह ले. नरेन्द्रसेन जैनाचार्य ई. 12 वीं शती । सिद्धान्तसारावली - ले. त्रिलोचन शिवाचार्य । विषय- शैवतन्त्र के सिद्धान्त । - / - - सिद्धार्थचरितम्-ले. डॉ. वीरेन्द्रकुमार भट्टाचार्य रचना1967-69 के बीच। हिंसाप्रमत्त मानवता को गौतम बुद्ध द्वारा प्रचारित दर्शन का बोध कराने हेतु लिखित । अंकसंख्या आठ । नृत्य-गीतों से भरपूर प्राकृत का अभाव कुसुमलता, वैल्लिता, मधुमती, चलोर्मिका, शरागति, नन्दिता, नन्दिनी, वेणुमती, तरस्विनी, सूर्यनाद, नवशशिरुचि, जयन्तिका, यंत्रिणी, मन्दारिका, मंजरिका, काणिनी, रत्नद्युति, कन्दित, मधुक्षरा, नर्तन, सुरंजना, रसवल्लरी, सुलोचना, कुरंगमा आदि असाधारण छन्दों का प्रयोग लेखक ने किया है। विषय- गौतम बुद्ध की बाल्यावस्था से लेकर राहुल को भिक्षुत्व दीक्षा देने तक की कथावस्तु । - www.kobatirth.org सिद्धिखण्ड ले. विनायक । माता श्रीपार्वती। विषयआकर्षिणी, वशीकरण, मोहकारिणी, अमृत-संचारिणी आदि के मंत्र तथा उन मंत्रों के साधक द्रव्य आदि का निरूपण है। आठ उपदेशों (अध्यायों) में पूर्ण । सिद्धियम्ले यामुनाचार्य (तामिल नाम आलवंदार) । आत्मसिद्धि, ईश्वर-सिद्धि एवं संवित्-सिद्धि नामक 3 ग्रंथों का समुच्चय । अंतिम ग्रंथ में माया का खंडन तथा आत्मा के स्वरूप का विवेचन है। सिद्धिप्रियस्तोत्रम् - ले.- देवनन्दी पूज्यपाद । जैनाचार्य । ई. 5-6 वीं शती माता श्रीदेवी। पिता माधवभट्ट । सिद्धिविद्या रजस्वला-स्तोत्रश्यामारहस्य के अंतर्गत । श्लोक-2581 सिद्धिविनिश्चय- ले. अकलंक देव। न्यायशास्त्र का एक प्रकरण ग्रंथ । सिद्धिविनिशयटीका ले अनन्तवीर्य जैनाचार्य ई. 10-11 वीं शती । 410 / संस्कृत वाङ्मय कोश ग्रंथ खण्ड I I सिद्धेश्वरतन्त्रम् - इस तन्त्र में जानकी सहस्रनाम स्तोत्र है । सिद्धेश्वरीपटल- श्लोक - 1531 हरिहरात्मक स्तव तथा वज्रसूचिकोपनिषद् भी इसमें सम्मिलित है। सिंहलविजयम् (नाटक) ले. सुदर्शनपति। 1951 में बेहरामपुर से प्रकाशित अंकसंख्या पांच अंक दृश्यों में विभाजित । उडिया गीतों का समावेश । उडीसा के वीरों द्वारा सिंहल पर विजय की कथा । ले. गोस्वामी शिवानन्द । पितामहसिंहसिद्धान्तसिन्धु गोस्वामी श्रीनिवास भट्ट । पिता गोस्वामी जगन्निवास । श्लोक- 13500। तरंग- 14 विषय प्रातः कृत्य, स्नान, सन्ध्या और तर्पण की विधि, सूर्यार्घ्यदान, शिवपूजा, ध्यान, आसन, पूजा द्रव्यों की शुद्धि, करशुद्धि, दिग्बन्धन, अग्निप्राकार का आश्रय, प्राणायामविधि, भूतशुद्धि प्राणप्रतिष्ठा, मातृकान्यास, उनके विविध भेदों का निर्देश, न्यासों के फल, स्वेष्टदेव के मंत्रों के ऋषि आदि, षडंगन्यास, योगविन्यास, मूलमंत्र के अंगभूत न्यासों का न्यसन, मुद्राप्रदर्शन, मुद्राओं के लक्षण, स्वेष्टदेव का ध्यान, अंतर्याग विधि, पूजा, चक्र और प्रतिमा के निर्माण का निरूपण, शालग्रामशिलाओं के लक्षण, पूजा के फल आदि । सिंहस्थपद्धति विषय बृहस्पति जब सिंह राशि में रहते है, तब गोदावरी में स्नान करने के पुण्य हेमाद्रि के ग्रंथ पर आधृत । सिंहासन द्वात्रिंशिंका संस्कृत कथासाहित्य का एक प्रसिद्ध ग्रंथ जो सिंहासन द्वात्रिंशिंका, द्वात्रिंशत्पुत्तलिका अथवा विक्रमार्कनरित आदि नामों से विख्यात है। इस ग्रंथ में कुल 32 कथाएं है। इसके रचयिता कौन थे इसकी निश्चित जानकारी उपलब्ध नहीं, किन्तु इसका निर्माणकाल इ.स. 13 वीं शताब्दी या उसके बाद का रहा होगा, ऐसा विद्वानों का मत है। Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir · इसके निर्माण के विषय में कथा इस प्रकार बताई जाती है : विक्रमादित्य राजा को इन्द्र ने एक सिंहासन भेंट किया जिस पर 32 पुतलियां थीं। विक्रमादित्य उस सिंहासन पर ही बैठा करते थे। अपनी मृत्यु के पूर्व उन्होंने वह सिंहासन जमीन में गडवा दिया। कालांतर से उत्खनन में राजा भोज को वह सिंहासन मिला। वह उसे अपने उपयोग हेतु राजसभा में ले आया। सिंहासन पर आरूढ होने के लिये राजा भोज ने जैसे ही उसकी प्रथम सीढी पर कदम रखा वैसे ही एक पुतली ने उन्हें विक्रमादित्य की कहानी सुनाते हुए कहा- For Private and Personal Use Only 'यदि विक्रमादित्य जैसा शौर्य- धैर्य तुझमें होगा तो ही तू इस सिंहासन पर चढने का प्रयास कर" । इस प्रकार बत्तीस पुतलियों ने उसे विक्रमादित्य के शौर्य एवं अन्य गुणों को प्रकट करने वाली कथाएं सुनाई और हर पुतली कथा सुनाने के बाद उसे उक्त चेतावनी देती । परिणाम यह हुआ कि राजा भोज आखिर इस सिंहासन पर चढने का साहस नहीं कर
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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