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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीमत्सार, श्रीमदुत्तरशंखसार, चिंचिणीमतसार, महामायास्तोत्रसार, शंखयोगमहाज्ञानसार, गीतासार आदि। 2) ले.- देवनन्दी पूज्यपाद। जैनाचार्य। ई. 5-6 वीं शती। माता-श्रीदेवी। पिता- माधवभट्ट। 3) ले.- राघवभट्ट। 4) ले.- शम्भुदास। 5) ले.- मुरारिभट्ट । सारसंग्रहदीपिका- ले.- रामप्रसाददेव शर्मा । सारसमुच्चय - ले.- हरिसेवक। निर्माणकाल- संवत् 1770 वि.। 173 ई.। इसका वास्तव नाम है योगसार-समुच्चय। श्लोक-750। पटल-101 सारसमुच्चय-पद्धति- श्लोक-638 । सार-सुन्दरी - ले.- माथुरेश विद्यालंकार। ई. 17 वीं शती। अमरकोश पर भाष्य। सारस्वतदीपिका - ले.- हर्षकीर्ति। ई. 17 वीं शती। सारस्वतप्रक्रिया - ले.- अनुभूतिस्वरूपाचार्य। सारस्वत-रूपान्तरम् - तर्कतिलक-भट्टाचार्य। लेखक ने इस रूपान्तर पर व्याख्या भी लिखी है। सारस्वतशतकम् - ले.- जीव न्यायतीर्थ । सन् 1925 में प्रकाशित । सारस्वती सुषमा- सन् 1942 में वाराणसेय संस्कृत महाविद्यालय से डॉ. मंगलदेव शास्त्री के सम्पादकत्व में इस मासिक पत्रिका का प्रकाशन आरंभ हुआ। तीन वर्षों बाद नारायणशास्त्री खिस्ते इसके संपादक हुए। पांचवें वर्ष से को.अ.सुब्रह्मण्य तथा बाद में कुबेरनाथ शुक्ल और क्षेत्रेशचन्द्र चट्टोपाध्याय के सम्पादकत्व में यह पत्रिका प्रकाशित होती रही। शोध-प्रधान निबन्धों का प्रकाशन इस पत्रिका का प्रमुख उद्देश्य था। इसमें शास्त्र, विज्ञान, राजनीति, शब्द-विज्ञान और समालोचना, अर्वाचीन, कहानियां और कविताएं, निबंध आदि प्रकाशित होते थे। सावित्री- (नाटक)- ले.-श्रीकृष्ण त्रिपाठी। रचना सन 1956 में। एकांकी। सावित्री के पातिव्रत्य की कथा। सावित्रीचरितम् (सात अंकी नाटक) - ले.- जामनगर के आशु कवि शंकरलाल (ई. 1842-1918 ई.) काठियावाड के रावजीराव संस्कृत पाठशाला में अध्यापक। 2) गद्यरचना- ले.- राधाकृष्ण तिवारी। सोलापुर निवासी। साहित्यकौमुदी - ले.- बलदेव विद्याभूषण। काव्यप्रकाश पर टीका। अलंकारों पर एक अतिरिक्त अध्याय। ई. 18 वीं शती। स्वरचित उदाहरण, जिनका आशय कृष्णभक्तिपर है। साहित्यकल्पद्रुम - ले.- येउर ग्रामवासी सोमशेखर । साहित्यशास्त्र विषयक ग्रंथ। 2) ले.- राजशेखर । ई. 18 वीं शती। 81 स्तबकों में पूर्ण। साहित्यकल्पलतिका- ले.- शतलूरी कृष्णसूरि । साहित्य-कल्लोलिनी- ले.- भास्कराचार्य। साहित्यशास्त्र तथा नृत्य पर चर्चा । साहित्यदर्पण - ले.- विश्वनाथ कविराज। ई. 14 वीं शती। कलिंगराज के सांधिविग्रहिक। काव्यप्रकाश के अनुसार साहित्यशास्त्र की विस्तृत रचना। साहित्य क्षेत्र के सर्व प्रकार तथा वाद इसमें समाविष्ट हैं। इसके अनुसार रसात्मक वाक्य ही काव्य है। दस परिच्छेद युक्त। 6 वें परिच्छेद में नाट्यशास्त्र विषयक चर्चा। काव्य हेतु, प्रकार, परिभाषा, उदाहरण, गुण-दोष रसपरिपोष, तथा शब्दार्थालंकार भी विस्तरशः विवेचित है। भाषा धारावाहिनी तथा प्रभावी है। टीकाकार- 1) मथुरानाथ शुक्ल, (2) अनन्तदास, (3) गोपीनाथ, (4) रामचरण तर्कवागीश। अलंकारवादार्थ में साहित्यदर्पण के मतों का परिशीलन होता है। साहित्यनिबन्धादर्श- ले.-वासुदेव द्विवेदी। छात्रोपयुक्त, 31 विविध विषयों पर निबन्ध तथा संस्कृत पत्र लेखन आग्रा से प्रकाशित। साहित्यमंजूषा - ले.- सदाजी। ई. 1815 में रचित इस साहित्य शास्त्रनिष्ठ काव्य में शिवाजी महाराज तथा भोसले वंश के इतिवृत्त का वर्णन है। साहित्यरत्नाकर - ले.- धर्मसूरि । ई. 15 वीं शती। 2) ले.- यज्ञनारायण दीक्षित। ई. 17 वीं शती। साहित्यवाटिका • सन् 1960 में दिल्ली से श्री यशोदानन्दन भरद्वाज के सम्पादकत्व में इस पत्रिका का प्रकाशन आरंभ हुआ। दिल्ली राज्य संस्कृत विश्वपरिषद् 23, ए. कमलानगर, दिल्ली से प्रकाशित होने वाली यह पत्रिका समस्याप्रधान है। साहित्यवैभवम् - ले.- श्रीभट्ट मथुरानाथ शास्त्री, साहित्याचार्य, जयपुर। हिन्दी तथा उर्दू शब्दों का हेतुतः रचना में प्रयोग। रेडियो, मोटर, विमान, जैसे आधुनिक विषय। इस अभिनव उपक्रम को संमिश्र प्रतिसाद मिला। प्रथम भाग जयपुरवैभवम्। इसके विशिष्ट-जनचत्वर नामक प्रकारण में स्थानीय 122 प्रसिद्ध व्यक्तिओं का वर्णन है। दूसरा भाग साहित्य-खण्ड। इसके नवयुग वीथी प्रकरण में समाज की परिस्थिति चित्रित है। कवि की सहचरी-टीका के साथ प्रकाशित । साहित्यकार - ले.- अच्युतराय मोडक। 12 प्रकरण। लेखक का नामनिर्देश नये ढंग से- ऐरावतरत्न, धन्वतरिरत्न आदि किया है। साहित्यसुधा - ले.- गोविन्द दीक्षित । तंजौर के रघुनाथ नायक के मंत्री। वेदान्तादि विविध शास्त्रों में निपुण कवि। इस में कवि ने अपने दो आश्रय दाता अच्युत और रघुनाथ राजाओं का चरित्र वर्णन किया है। सारासारसंग्रह -ले.- रामशंकरराय। श्लोक- 19977। 12 परिच्छेदों में पूर्ण। विषय- शिव और शिव की विभूतियां, अर्धनारीश्वर मूर्ति, अर्धनारीश्वरस्तोत्र, इन्द्र आदि का अभिमान भंजन, जो मुनि नहीं उन्हें मोक्षप्राप्ति नहीं हो सकती। तंत्रों की असंख्यता, ब्रह्मतत्त्व के विषय में ब्रह्मा आदि के सन्देह संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड / 407 For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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