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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir द्वारा संगृहीत । श्लोक-249। पटल-2| विषय-बटुकजी की वीर साधन विधि, वीरसाधनविधि-प्रयोग, बटुकभैरव-दीपविधि, मुद्राविधि, आसन आदि का निरूपण, पंचशुद्धि कथन इत्यादि । साधकाचार-चन्द्रिका - ले.- वंगनाथ शर्मा । श्लोक- 40001 प्रकाश-14। साधनदीपिका - ले.- नारायण भट्ट। गुरु-शंकर । ई. 16 वीं शती। ये कान्यकुब्ज थे। 7 प्रकाशों में पूर्ण। विषय- विष्णु पूजा का विवरण। साधनमुक्तावली- ले.- नव कविशेखर । श्लोक-1132। विषयवशीकरण, आकर्षण आदि में ऋतु, तिथि, योग, नक्षत्र आदि का विचार। कैसे वृक्ष के मूल आदि ग्राह्य हैं यह निरूपण। वृक्ष- निमन्त्रण के लिए मन्त्र, खोदना, काटना आदि के मन्त्र, वशीकरण तथा उसके साधन चक्र। विजय प्राप्त करने में उपयोगी मंत्रों का निरूपण। पागल हाथी को अपने सामने से हटाना, उसके उपयुक्त चक्र। बाघ को हटाना, उसके उपयोगी चक्र। स्तंभनविधधि, उसमें उपयोगी चक्र। वाजीकरण, वन्ध्या आदि के गर्भधारणा के उपाय, विविध औषधियां, चक्र आदि, शत्रुकुलनाशन, स्त्री- सौभाग्यकरण आदि । साधुवादमंजरी - ले.- मूल अंग्रेजी काव्य ब्राऊनिंग का। अनुवादकर्ता- रामचन्द्राचार्य। सान्द्रकुतूहलम्- ले.- कृष्णदत्त। रचनाकाल ई. सन् 1752 । प्रहसन कोटि की रचना । विभिन्न अंकों में विषयों की विभिन्नता । प्रथम तीन अंकों में प्रहसन-तत्त्व का अभाव। चतुर्थ अंक ही विशुद्ध प्रहसन है। सापिण्ड्यभास्कर -ले.- कृष्णशास्त्री घुले। नागपुर-निवासी। ई. 20 वीं शती। सापिण्ड्यविचार- ले.- विश्वेश्वर (गागाभट्ट काशीकर)। ई.17 वीं शती। सापिण्ड्यविषय - ले.- गोपीनाथ भट्ट । सापिण्ड्य सार - ले.- धरणीधर। रेवाधर के पुत्र । सापिण्डीमंजरी- ले.- नागेश। सामगृह्यवृत्ति-ले.- रुद्रस्कन्द । सामविधान-ब्राह्मणम् (सामवेदीय) - तीन प्रपाठक। कुल 25 खण्ड । इसमें अभिचार कर्मों का बहुत वर्णन है। सम्पादकसत्यव्रत सामश्रमी। कलकत्ता में संवत् 1951 में प्रकाशित । सामवेदीय-दर्शकर्म - ले.- भगदेव। सामगव्रतप्रतिष्ठा - ले.- रघुनन्दन। सामवेद- सामवेद की देवता सूर्य हैं और यज्ञ में उद्गात गण इस वेद का प्रयोग करते हैं। इसके प्रमुख आचार्य जैमिनि हैं। इसे उद्गातृ गण का वेद कहते हैं। "साम'' का अर्थ है प्रीतिकर वचन, गान को भी साम कहते हैं। संगीत शास्त्र के अनुसार “साम" शब्द सात स्वरों को दर्शाता है। शास्त्रों में इस वेद की सहस्र शाखाएं बतायी गई हैं, जब कि मतान्तर से इससे न्यूनाधिक भी शाखाएं हैं। सम्प्रति इसकी तीन ही शाखाएं उपलब्ध हैं- 1) कौथुमी, 2) राणायनीय और 3) जैमिनीय तलवकार। सामवेद की संहिताओं में मुख्यतः दो भाग हैं- आर्चिक और गान। इस वेद के 10 ब्राह्मण, आरण्यक, उपनिषद्, शिक्षा आदि साहित्य पाया जाता है। इसका उपवेद गान्धर्ववेद है। कुछ आधुनिकों के अनुसार सामवेद यजुर्वेद से पहले का होना चाहिए। कुछ तो यह भी अनुमान लगाते हैं कि इसके कई मन्त्र ऋग्वेद पूर्व के हैं किन्तु उनका संकलन ऋग्वेद के पश्चात् हुआ। सामवेद की विविध संहिताओं पर सात स्वरों के चिन्ह अवश्य दीखते हैं। साथ ही स्वरों के विविध भेदों एवं संज्ञाओं का भी उल्लेख है। किन्तु कानों को तीन चार स्वरों के अतिरिक्त अन्य स्वरों के भेद सुनाई नहीं पडते। सामवेद की जो तीन शाखाएं उपलब्ध हैं उनमें से कौथुमी और राणायनी शाखा में अंतर नहीं है, इसीलिये उनके ब्राह्मण एक ही हैं। कौथुमी शाखा के आठ ब्राह्मण हैं- 1) तांड्य, 2) षड्विंश, 3) सामविधान, 4) आर्षेय, 5) दैवत, 6) छांदोग्य, 7) संहितोपषिद् तथा वंश। इन सभी ब्राह्मणों पर सायणाचार्य ने भाष्य लिखे हैं। जैमिनीय शाखा का ब्राह्मण तलवकार नाम से भी प्रसिद्ध है। सामसंस्कारभाष्यम्- ले.- स्वामी भगवदाचार्य। अहमदाबादनिवासी। ई. 20 वीं शती। सापिण्ड्यकल्पलता - ले.- सदाशिव देव। पिता- श्रीपति । देवालयपुर के निवासी। गुरु- विट्ठल। ग्रंथ में सपिण्ड का अर्थ-शरीर कणों से संबंध, कहा गया है। लेखक के पौत्र नारायण देव ने इस पर टीका लिखी है। ग्रंथ में नरसिंह सप्तर्षि, वीरमित्रोदय, सापिण्डप्रदीप, द्वैतनिर्णय आदि का उल्लेख, है। सन् 1927 में सरस्वती भवन, वाराणसी से प्रकाशित । सापिण्ड्यतत्त्वप्रकाश- ले.- धरणीधर। रेवाधर के पुत्र। सापिण्ड्यदीपिका- (या सापिण्ड्यनिर्णय)- ले.- श्रीधर भट्ट। लेखक कमलाकर के चचेरा पितामह थे, अतः उनका काल 1520-1580 ई. है। 2) ले.- नागेश । इस ग्रंथ को सापिण्ड्यमंजरी एवं सापिण्ड्यनिर्णय भी कहा है। ई. 18 वीं शती। नंदपण्डित, अनन्तदेव, वासुदेव-भट्ट आदि के निर्देश हैं। सापिण्ड्यनिर्णय- ले.- रामभट्ट । 2) ले.- भट्टोजी। 1880-84 । सापिण्ड्यप्रदीप-ले.- नागेश। सापिण्ड्यकल्पलतिका की टीका में वर्णित । घारपुरे द्वारा प्रकाशित । संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड /405 For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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