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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir षड्दर्शनलेशसंग्रह - ले.- प्रज्ञाचक्षु गुलाबराव महाराज। विदर्भवासी। षड्दर्शनसमुच्चय - ले.- हरिभद्रसूरि। ई. 8 वीं शती । षड्दर्शन-सिद्धान्तसंग्रह . ले. -रामभद्र दीक्षित। कुम्भकोण-निवासी । ई. 17 वीं शती। षड्दर्शिनी - श्रीरंगम से वासुदेव दीक्षित के संपादकत्व में इस मासिक पत्रिका का प्रकाशन हुआ। षड्विद्यागमसांख्यायन- तन्त्रम् श्लोक- 1000। पटल- 331 विषय- विविध तन्त्र-क्रियाएं तथा उनकी सिद्धि में उपयोगी मन्त्र । षड्विंशब्राह्मणम् (सामवेदीय)- इस ब्राह्मण में पांच प्रपाठक (अध्याय) हैं। पांचवे प्रपाठक को अद्भुत ब्राह्मण कहते हैं। कई विद्वानों के मतानुसार यह प्रक्षिप्त है। प्रपाठकों का विभाजन खण्डों में है। कुल मिलाकर 48 खण्ड हैं। सायण के अनुसार सारे खण्ड 46 हैं। यह ब्राह्मण सामवेदीय नाण्ड्य अर्थात् पंचविंश ब्राह्मण का भाग मात्र है। इस ब्राह्मण में ऋविजों के वेप के संबंध में जानकारी मिलती है। जैसा कि कहा गया है, 'लोहितोष्णीषा लोहितवासोनिवीता ऋत्विजः प्रचरन्ति ।' (3-8-22) लाल पगड़ियों वाले और लाल कपडों वाले लाल-किनार की धातियों वाले ऋत्विज होते हैं। युगों के प्राचीन नाम भी यहां मिलते हैं। तण्डि' अथवा उसी के निकटवर्ती शिष्यों ने इसका संकलन और प्रवचन किया है। संपादन - (क) घडविंश-ब्राह्मणम् -सायणभाष्यसहितम्। सम्पादक- जीवानन्द-विद्यासागर, कलकत्ता 1881 (ख) षड्विंश-ब्राह्मणम्- विज्ञापन - भाष्यसहितम् । सम्पादक- एच.एफ. ईलासिंह लाईडन्। सन 1908 । षण्णवतिश्राद्धनिर्णय - ले.-शिवभट्ट। ले. गोविंदसूरि। इस के एक श्लोक में 96 श्राद्धों का संक्षेप में कथन है। वह श्लोकः- "अमायुगमनक्रान्ति-धृतिपातमहालयाः। आन्वष्टक्यं च पूर्वेयुः षण्णवत्यः प्रकीर्तिताः ।।" रचना ई. 17 वीं शती। कमलाकर भट्ट. नीलकण्ठ भट्ट, दीपिकाविवरण, प्रयोगरत्न, श्राद्धकलिका आदि श्रेष्ठ ग्रंथकारों एवं ग्रंथों का निर्देश है। षण्णवतिश्राद्धपद्धति - ले.-माधवात्मज रघुनाथ। ई. 16-17 वीं शती। षण्मतिमण्डनम् - (काव्य) - ले.-घनश्याम । ई. 18 वीं शती। षष्टितंत्रम् - ले.-डॉ. क्षितीशचन्द्र चट्टोपाध्याय। मौलिक तथा अनूदित कथाओं का संकलन। ई. 20 वीं शती। षष्टिपूर्तिशान्ति - जीवन के 60 वर्ष पूर्ण होने पर विहित कृत्य। षष्ठीविद्याप्रशंसा - रुद्रयामलान्तर्गत। रुद्रयामल- 125060 श्लोकात्मक है। यह उसका एक अंश 12 पटलों में पूर्ण है, ऐसा पुष्पिका से ज्ञात होता है। षोडशकर्मपद्धति - ले.-गंगाधर । षोडशकर्मपद्धति - ले.- ऋषिभट्ट। घोडशकर्मप्रयोग - विषय- सोलह संस्कार, तथा स्थालीपाक, पुंसवन, अनवलोभन, सीमान्तोन्नयन, जातकर्म, षष्ठीपूजा, पचगव्य, नामकरण, निष्क्रमाग, कर्णवेध, अन्नप्राशन, चौलकर्म, उपनयन, गोदान, समावर्तन, विवाह । रचना 1500 ई. के उपरान्त । षोडषकारणकथा - ले.-श्रुतसागरसूरि । जैनाचार्य। ई. 16 वीं शतो। षोडशनित्यातन्त्रम् - गणेश-शिव संवादरूप। अध्याय- 36 । प्रत्येक अध्याय में 100 श्लोक है। कुल श्लोक - 3600। कुछ लोगों के मतानुसार 4000 श्लोक। 16 नित्यातन्त्र हैं :(1) नित्यातन्त्र, (2) ललिता, (3) कामेश्वरी, (4) भगमालिनी, (5) नित्याक्लिन्ना, (6) भेरुण्डा, (7) वज्रेश्वरी, (8) दूती, (9) त्वरिता, (10) कुलसुन्दरी, (11) नित्यानित्या, (12) नीलपताका, (13) विजया, (14) चित्रा, (15) कुरुकुल्ला और (16) वाराही। काली नाम 'क' से आरंभ होता है इसोलिए काली विषयक तन्त्र कादि कहे जाते है। षोडशनित्यातन्त्रख्याख्या - (मनोरमा) - ले.-सुभगानन्दनाथ । श्लोक- 10,000। ग्रंथ की पूरी श्लोक संख्या 19951 बतलायी गई है। काश्मीर राजगुरु श्री कण्ठेश एक बार रामसेतु के दर्शनों के निमित्त दक्षिण देश में गये। वहां जाते हुए मार्ग में उन्होंने नृसिंहराज पर अनुग्रह किया। नृसिंहराज ने उनसे तन्त्र ग्रंथ पढे। वहीं पर सुभगानन्दनाथ ने उक्त कादिमत पर 22 पटलों तक मनोरमा टीका रची। शेष पटलों की टीका उनके शिष्य प्रकाशानन्द देशिक ने उनकी आज्ञा से रची। षोडशानित्यातन्त्र कादिमत- व्याख्या - ले.- सुभगानन्दनाथ । श्लोक- 700। षोडशमहादानपद्धति (या दानपद्धति) - ले.-रामदत्त । कार्णाट वंश के मिथिलेश नृसिंह के मंत्री (खोपालवंशज) कुलपुरोहित भववर्मा की सहायता से प्रणीत। लेखक चण्डेश्वर के चचेरा भाई थे। अतः वह 14 वीं शताब्दी के पूर्वार्ध में थे। षोडशमहादानविधि - ले. कमलाकर। पिता- रामकृष्ण। षोडशसंस्कार - ले. कमलाकर । 2) ले. चंद्रचूड । लेखक के संस्कारनिर्णय का संक्षेप मात्र । षोडशसंस्कारपद्धति - (या संस्कारपद्धति) ले.-आनन्दराम दीक्षित। षोडशसंस्कारसेतु - ले.-रामेश्वर । षोडशीत्रिपुरसुन्दरीविधानम् श्लोक- 6001 षोडशीपद्धति - श्लोक- लगभग 8751 षोढान्यास - रुद्रयामल से गृहीत 400 श्लोक। सकलविद्याभिवर्धिनी - सन 1892 में विजगापट्टनम से संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड / 387 For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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