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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमकल्पद्रुम- ले- यदुनाथ शमा का विवरण । गरसिद्धान्त, शाद्याओं की प्रजाल- 25। श्लोक नाचन्द्रिका, रश्चरणचन्द्रिका, सारसमुच्चय, दीपिण आख्यातप्रक्रिया - ले- अनुभूतिस्वरूपाचार्य। आख्यातवाद - (1) ले- रघुनाथ शिरोमणि। (2) ले. गदाधर भट्टाचार्य। आगमकल्पद्रुम - ले, जगन्नाथ पुत्र- गोविंद । ई. 16 वीं शती। आगमकल्पवल्ली - ले- यदुनाथ शर्मा । पटल- 25। श्लोक संख्या 350। विषय- महाविद्याओं की पूजा का विवरण। ग्रंथकार ने प्रपंचसारसिद्धान्त, शारदातिलक, सारसमुच्चय, दीपिका, लघुदीपिका, पूजाप्रदीप, पुरश्चरणचन्द्रिका, मन्त्रदर्पणसिद्धान्त, मन्त्रनेत्र, श्रीरामार्चनाचन्द्रिका, मन्त्रमुक्तावली, रत्नावली, ज्ञानार्णव, सनत्कुमारमंत्र, नारदीयचतुःशती, सोमशंभुमत, अगस्त्य संहिता आदि तांत्रिक ग्रंथों का उल्लेख किया है। आगमकौमुदी - ले. महामहोपाध्याय रामकृष्ण। ई. 17 वीं शती। श्लोकसंख्या- 1848। यह ग्रेथ तन्त्र की साधारण विधियों का प्रतिपादन करता है। इसमें शीघ्र आरोग्य लाभ कराने वाली धनसम्पत्तिप्रद तथा शत्रु का शीघ्र विनाश करने वाली विद्याओं तथा शाक्त देवियों के पूजा के प्रायः सभी मुख्य-मुख्य मन्त्र दिये गये हैं। इसके प्रधान विषय हैंनक्षत्रचक्र, राशिचक्र, भूतचक्र, नाडीचक्र, अकडमचक्र, जातिचक्र तथा ऋषिधनिचक्र, अदीक्षित पुरुषरूप पशु और गुरुक्रम लक्षण, पंचदेवपूजा, स्त्री और शूद्र को प्रणवरहित मन्त्रदान, शूद्र को मन्त्रदान का निषेध, दीक्षा में चान्द्र और सौर का विचार, हरचक्र, चक्रशुद्धि का प्रकरण, मन्त्रों के दस संस्कार, दीक्षाप्रकरण, षट्चक्रनिरूपण, आधारशक्ति-ध्यान, आवाहनमुद्रा, शिवपूजाप्रकरण स्वाहा-स्वधाविचार, माला-लक्षण, जप-लक्षण, माला-संस्कार, प्रणाम- लक्षण, मंत्रग्रहणविधि, उपदेश प्रकरण, राम और कृष्ण की उपासना के मन्त्र, राम और कृष्ण की गायत्री, लक्ष्मी, सरस्वती, दुर्गा काली सुन्दरी, तारा, श्यामा, अनिरुद्ध, प्रचण्डाचण्डिका, गणेश उपविद्याएं, योगिनी, मृत्युंजय, कर्णपिशाची, हनुमान तथा गरुड के मन्त, यन्त्रों के संस्कार, मन्त्रगायत्री, भूमि पर माला गिरने से हुए दोष, प्रकीर्ण विषय कथन, । प्रत्यङ्गिरा-कथन आदि। आगमचन्द्रिका - ले- रघुनाथ तर्कवागीश के पुत्र रामकृष्ण। श्लोकसंख्या- 1525। इस तांत्रिक संग्रह ग्रंथ में दीक्षा-विधि, विविध देवियों की पूजा तथा विविध चक्रों का निरुपण है। इसके आरंभ में स्वयं ग्रन्थकार ने लिखा है- 'श्रीरामकृष्णः संक्षिप्य तनोत्यागमचन्द्रिगकाम्।' अर्थात् यह रघुनाथ तर्कवागीश कृत आगमतत्त्वविलास का संक्षेप है। आगमचन्द्रिका - ले- कायस्थ कृष्णमोहन। श्लोकसंख्या 1950। दीक्षाप्रकार नियम नामक प्रथम उल्लास की पुष्पिका दी गयी है। फिर आगे उल्लासों की पुष्पिकाएं नहीं दिखायी देती। बहुत सी अवान्तर पुष्पिकाएं दी गयी हैं जैसी इति कालीप्रकरणम्, इति ताराप्रकरणम् इत्यादि। इसमें दीक्षा के नियमों का प्रतिपादन तथा काली, तारा, श्रीविद्या, भुवनेश्वर, भैरवी, छिन्नमस्ता, और लक्ष्मी की पूजा का विस्तृत विवरण दिया गया है। आगमतत्त्वविलास - ले. नापादि ग्राम के निवासी रघुनाथ तर्कवागीश। ई. 17 वीं शती। श्लोकसंख्या- 14400। 5 परिच्छेद। ग्रंथकार ने ग्रंथ के अंत में अपनी वंशावली का इस प्रकार उल्लेख किया है : सर्वानन्द बलभद्र- काशीनाथचंद्रवंद्य-शिवराम चक्रवर्ती और रघुनाथ तर्कवागीश। यह एक विशाल तांत्रिक सारभूत ग्रंथ है। इसमें दीक्षा, योग आदि जैसे साधारण विषयों के साथ ही विभिन्न देवताओं की पूजा आदि विषय वर्णित हैं। ग्रंथकार के पुत्र रामकृष्ण ने इसका सार 'आगमचन्द्रिका' के नाम से लिखा। रघुनाथ ने सांख्यकारिका पर सांख्यतत्त्वविलास नाम की टीका लिखी है। इसमें सर्वप्रथम प्रमाणरूप से उद्धृत तन्त्र-ग्रन्थों के नाम दिये गये हैं। उनकी संख्या 156 है। तदनन्तर गुरुपदेश- विधि, मन्त्रविचार-विधि, दीक्षा-विधि, चक्रभेद, मन्त्रों के दस संस्कार, अक्षरनिर्णय मन्त्राभिधान, लक्ष्मीबीजाभिधान, स्त्रीबीजाभिधान वर्णाभिधान, वर्गाभिधान, बीजनिर्णय की व्यवस्था, बीज के अर्थ का अभियान, दीक्षा-पद का अर्थ, स्त्री और शूद्र की दीक्षा में मन्त्र की व्यवस्था, पंचांगशुद्ध दीक्षा, महाविद्या-निर्णय, मन्त्र की उपासना, रुद्राक्षमाला की विधि, कपालपात्र की शुद्धि, त्रिलोही मुद्रा का क्रम, बलिदान का क्रम, बलिदान में अपने शरीर का रुधिर - प्रदान करने की व्यवस्था, देवता के भेद से वाम और दक्षिण आचार की व्यवस्था, जल में आधान के नियम, पूजा आदि में षोडशोपचार, दशोपचार, पंचोपचार, अष्टादशोपचार के नियम, यन्त्रधारण की विधि, यन्त्र-लिखने के पदार्थों का नियम, मवरण, आकर्षण, वशीकरण, विद्वेषण, उच्चाटन, स्तंभन, अभिचार आदि की विधियां, षट्कर्मलक्षण, भूतोदय-विधि, योनिमुद्रा आदि के मन्त्रार्थ का निरूपण, भूतलिपि विधि, युग के भेद, जपादि का नियम, कर्मचक्र का निरूपण, रहस्यपुरश्चरण, वीरसाधन, चितादिसाधन, शवसाधन, मनोहरा, कनकावती, कामेश्वरी, रतिसुन्दरी, पद्मिनी आदि योगिनियों के आकर्षण की मुद्रा का क्रम, शंकराकिन्नरी, यक्षकन्या पिशाचादि के साधन की विधि, दृष्टिसिद्धि, मन्त्रसिद्धि के लक्षण, मन्त्र के दोष की शान्ति-विधि, बालक मन्त्र, पीठ-स्थान विभिन्न कुसुमों का रक्षण, यन्त्रों के नियमादि का वर्णन, भावरहस्य, अन्तर्याग, कुमारीपूजा, दूतीयाग, कुजपूजाक्रम, मदिरादिशोधन, शक्ति-शोधन, वीरपुरश्चरण, मद्यमांस की व्यवस्था, वामाचार के अनुकल्प, कुण्डनिरूपण, स्थण्डिलविधि, होमविधि, अग्निस्थापनादि, अग्नि का नामकरण, गणेश सूर्य, इन्द्र, विष्णु, आदि की पूजा की विधि। अर्धनारीश्वर, महालक्ष्मी, वागीश्वरी, महिषमर्दिनी, महाकाली, प्रचण्डचण्डिका, छिन्नमस्ता, उच्छिष्टचाण्डालिनी, हरिद्रागणेश आदि दैवतों की पूजासाधना । यह ग्रंथ दो खण्डों में विभिक्त है। श्लोकसंख्या- 7377 । यह विशाल तंत्र-ग्रंथ सम्पूर्ण तंत्र और आगम ग्रन्थों का संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड / 23 For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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