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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आश्वासन दे माधव आगे बढ़ता है, जहां पुरोहित विशाखशर्मा राजसभा की कविगोष्ठी का अंकन है जिसमें कवि समस्यापूर्ति उसे मिलता है। वह मन्दारवल्लरी वेश्या से प्रताडित है, में भाग लेते हैं। यह रचना ऐतिहासिक तथा सांस्कृतिक जीवन क्योंकि उसकी 10 सहस्र मुद्राओं की मांग वह पूरी नहीं कर के सन्दर्भ में महत्त्वपूर्ण है। सकता। आगे वह चम्पकलता गणिका के साथ विलास कर शृंगारविलास - ले.-वाग्भट। निष्कुटवन में दोपहर बिताता है। वहा पर कई गणिकाओं का शृंगारविलास (भाण) - ले.- साम्बशिव। ई. 18 वीं शती। नामोल्लेख युक्त वर्णन है। वहां के वेदपाठी ब्रह्मचारी यह सुन देशकालानुरूप प्रस्तावना। मैसूर प्रति में आश्रयदाता का नाम भाग जाते हैं। फिर कामदेवायतन जाती हुई सुमनोवती से वह महाराज कृष्ण, तो मद्रास प्रति में जमोरिन मानविक्रम है। कहता है कि अर्धरात्रि में मैं तुम्हें मिलूंगा। सीमन्तिनी और शंगारामृतलहरी - ले.- सामराज दीक्षित। मथुरा-निवासी। ई: शिरीष की प्रणयक्रीडा देखता हुआ नायक आगे बढ़ता है। 17 वीं शती। नाट्य-शिक्षा गृह पहुंच कर बकुलमंजरी का नृत्य देखता है और वहीं पर शृंगारशेखर को रतिरत्नमालिका से मिला देता है। शेक्सपियर-नाटककथावली - अनुवादकर्ता- मेडपल्ली वेङ्कटाचार्य । चार्ल्स लैम्ब की शेक्सपियर नाटक कथाओं का शृंगारसुधार्णव (भाण) - ले.- रामचंद्र कोराड। सन अनुवाद। 1816-1900। प्रथम अभिनय भद्राचल में राममंदिर के शेषसमुच्चय - श्लोक- 2000। पटल- 101 विषय- देवताओं वसन्तोत्सव के अवसरपर विट भुजगशेखर की दिनचर्या का की प्रतिष्ठा, पूजा इ.। आंखों देखा वर्णन। शेष-समुच्चयविमर्शिनी - शेषसमुच्चय की व्याख्या। श्लोकशृंगारसुन्दर (भाण) - ले.- ईश्वर शर्मा। ई. 18 वीं शती। 500। पटल- 10। शेषार्या (सव्याख्या) मूलकार, शेषनाग। नायक भ्रमरक, नायिका केसरमालिका। कोचीन के विट अभिराम द्वारा दोनों का मिलन प्रस्तुत भाण का विषय है। व्याख्याकार- राघवानन्द मुनि। नामान्तर परमार्थसार। श्लोक 11501 श्रृंगेरीयात्रा - ले.- म.म. रघुपति शास्त्री वाजपेयी। ग्वालियर निवासी। इसमें श्रीनिवास तथा पद्मावती के परिणय की कथा शैवकल्पद्रुम - ले.-अप्पय्य दीक्षित । चित्रित की गई है। प्रकाशित रचना के कुल 7 स्तबक हुए. 2) ले.- लक्ष्मीचंद्र मिश्र । हैं। उपलब्ध अंश में 276 पद्य हैं। यह एक अत्यन्त प्रौढ रचना है। शैवकल्पदुम - ले.- लक्ष्मीधर। पितामह- प्रद्युम्न। पिताशृंगार-रत्नाकर (काव्य) - ले.- ताराचन्द्र । ई. 17-18 वीं शती। रामकृष्ण। 8 काण्डों में पूर्ण। श्लोक- लगभग 33001 विषयशृंगाररस-मंडनम् - ले.- विट्ठलनाथ। पुष्टिमार्ग के प्रवर्तक आरम्भ में जगत्कारणादि का निरूपण। मण्डप आदि के लक्षण । आचार्य वल्लभ के पुत्र एवं वल्लभ-संप्रदाय की सर्वांगीण श्री गार्हस्थ्यविधि। प्रातःकृत्य, न्यासविधि, पार्थिव लिंगार्चनविधि । वृद्धि करनेवाले गोसाई। भस्म-स्नान, व्रतविधि, शिवस्तोत्र, शिवमाहात्म्य आदि । शृंगाररसोदयम् (काव्य) - ले.- राम कवि । ई. 16 वीं शती। शैवचिन्तामणि - 8 पटलों में पूर्ण विषय- शिवजी की पूजा, रुद्राक्षधारण, मातृकान्यास, पंचाक्षरोद्धार, अन्तर्याग, मुद्रा, ध्यान, शंगारलीलातिलक (भाण) - ले.- भास्कर। 1805-1837 आसन, उपचार, उपवासनान्त शिवरात्रिव्रत वर्णन ई। ई. कलकत्ता से सन 1935 में प्रकाशित । कथासार- पुरारातिपुर शैवपरिभाषामंजरी - ले.- निगमज्ञान देव। गुरु-शिवयोगी। की सुन्दरी सारसिका पर विट सत्यकेतु लुब्ध है। कुलिश श्लोक- 1116। 10 पटलों में पूर्ण। नामक विट सारसिका का पहले से ही प्रेमी है। उसे दूर हटा कर चित्रसेन नामक विट सत्यकेतु और सारसिका का मिलन शैवभूषणम् - श्लोक- 400। विषय- शैव सिद्धान्त के करा देता है। अनुसार पूजाविधि । विषय- 7 प्रकार के शैवों का निर्देश करते शृंगारवापिका (नाटिका) - ले.- विश्वनाथभट्ट रानडे। ई. हुए शिवपूजा का वर्णन। 17 वीं शती। आमेर के महाराज रामसिंह (1667-1675 शैवरत्नाकर - ले.- ज्योति थ । श्लोक-लगभग - 1925 । इसवी) की राजसभा में प्रथम अभिनय। छन्दों व अलंकारों शैवसर्वस्वम् - ले.- हलायुध । पिता- धनंजय । ई. 12 वीं शती। की विविधता में आश्रय दाता रामसिंह की प्रशस्ति है। शैवसर्वस्वसार - ले.- विद्यापति। मथिलानरेश पद्मसिंह की कथासार - चम्पावती के राजा रत्नपाल की कन्या कान्तिमती रानी विश्वासदेवी के आदेश से प्रणीत। ई. 15 वीं शती। तथा उज्जयिनी के राजा चन्द्रकेतु एक दूसरे को स्वप्न में देख शैवसिद्धान्तमंजरी-ले.- काशीनाथ । श्लोक- लगभग- 1901 प्रेमविह्वल होते हैं। नायक सिद्ध योगिनी मुण्डमाला को चम्पावती शैवसिद्धान्तमण्डन - ले.- भडोपनामक काशीनाथ। पिताभेजता है। उससे मिलने के बहाने स्वयं भी चम्पावती जा जयराम भट्ट। विषय- प्रधानतः पौराणिक वाङ्मय के उद्धरणों कर नायिका से नायक विवाह बद्ध होता है। चतुर्थ अंक में द्वारा भगवान् शिव की सर्वश्रेष्ठता सिद्ध करने का यत्न। संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड / 375 For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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