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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org 6-7 सृष्टि विषयक सूक्त हैं। पुरुष सूक्त, नासदीय सूक्त, दशराज्ञ सूक्त आदि सूक्तों में तत्त्वज्ञान का उल्लेख है। इनके अतिरिक्त समाज, राजनीति, विवाह, गृहस्थाश्रम और उसके विविध व्यवहार भी इन सूक्तों में पाये जाते हैं । उदाहरणार्थ कुछ विषय ये हैं :- रथ को ढलाना, चमडे का उपयोग, ऊन का उपयोग, कपडा बुनना, वस्त्रदान, सोना आदि धातुओं का उपयोग, कारीगर, पहरेदार, दोतल्ला मकान, घुडदौड, धनुर्बाण, तलवार, आदि शस्त्र । गाय, हाथी, गदहा, बैल, पुनर्जन्म, नदी, पर्वत, समुद्र, आदि के भी अनेक उल्लेख हैं। सर्वप्रथम व्हिटनी ने इस का अंग्रेजी अनुवाद किया है। शाकल कोई व्यक्ति का नाम नहीं । व्यक्ति-विशेष के शिष्य समूह का नाम शाकल समझना चाहिये। इस दृष्टि से शाकल नाम की पांच शाखाएं होती हैं- मुद्गल गालव - गार्ग्य- शाकल्य और शैशिरी । इन पांच शाकल शाखाओं में मूल शाकल्य, शाकलक या शाकलेयक संहिता थी। वैदिक संप्रदाय में इस संहिता का बड़ा आदर रहा है। शाकल्यप्रणीत पदपाठ भी इसी मूल संहिता पर है। - शाक्तक्रम शांकरभाष्यगाम्भीर्यनिर्णयखण्डनम् ले गौरीनाथ शास्त्री। शांकरपदभूषणम् - ले. रघुनाथशास्त्री पर्वते । । ले. - पूर्णानन्द गिरि । श्लोक - 1503 अंश - 7। विषय एकलिंगस्थान चूर्मचक्र, कोमलचूडादि शव का लक्षण, अन्तर्वाग महायज्ञविधि, दिव्यादि भावों का निरूपण दिव्यभाव आदि के लक्षण, श्रवण, मनन आदि के लक्षण, आत्मसाक्षात्कार का उपाय, चीनाचार आदि का निरूपण, कौलिक के कर्तव्य, पंचमकार साधन, कुमारीपूजा ई. शाक्तानन्दतरंगिणी ले (1) ब्रह्मानन्दगिरि पूर्णानन्द परमहंस के गुरु | इस ग्रंथ में 18 तरंग हैं। (2) 18 उल्लास। श्लोक 2838 विषय प्रकृति-पुरुष का अभेद, गर्भस्थ जीव की चिंतन रीति, दीक्षा की आवश्यकता, दीक्षासंबंधी अन्यान्य विषय प्रातः कृत्य, आसन नियम, नित्यपूजा विधि आदि, करमाला जपविधि महासेतु पुरश्चरण, मंत्रप्रकरण, अष्टादश उपचार, समयाचार, अग्निउत्पादन, कुण्डनिर्माण इ. - 2 शाक्ताभिषेक - राजराजेश्वरी के तन्त्र अन्तर्गत देवी-ईश्वर संवादरूप | श्लोक लगभग 2520। विषय- शाक्त धर्म में दीक्षित होते समय आवश्यक विधियों का प्रतिपादन । शाक्तामोद ले. शंकर द्रविताचार्य विषय शक्तिपूजाविधि, पंचशुद्धिपूजासूत्र जपसूत्र, मंत्र, चौरमंत्र तथा दीपनीमन्त्र, मन्त्रसिद्धि-लक्षण, पूजाप्रयोग, जपादि नियम, मंत्रों के स्वापकाल आदि, ब्राह्मण आदि वर्णों के भेद से सेतुकथन, महासेतु, कामकला, मंत्रसंकेत कथन, मंत्र का स्थान, भूतलिपि, घोर मंत्र के जप का स्थान, मंत्र और साधक की एकता, जीवतत्त्व मंत्रों के शिखादि अंग, पुरक्षरणविधि, पुरक्षरण का स्थान निर्देश, भक्ष्याभक्ष्य वर्ज्यावर्ण्य इ. । 362 / संस्कृत वाङ्मय कोश ग्रंथ खण्ड शांखायन शाखाएं (ऋग्वेद की ) शांखायनों का ब्राह्मण और आरण्यक उपलब्ध हैं। उससे अनुमान हैं कि शांखायनों की कोई स्वतन्त्र संहिता होगी। शांखायनों के चार भेद हैंशांखायन, कौषीतकी, महाकौषीतकी और शाम्बव्य । शांखायन आरण्यक (ऋग्वेदीय) कुल अध्याय पन्द्रह और कुल खण्ड 137 हैं। यह आरण्यक प्रायः सभी विषयों में ऐतरेय आरण्यक से मिलता जुलता है। इसके तीसरे अध्याय से छठे अध्याय के अन्त तक कौषीतकी उपनिषद् वर्णित है। गुणाख्य शांखायन और उसके प्रमुख शिष्यों ने इसका संकलन किया होगा ऐसा तर्क है। - क- शांखायन आरण्यक - अध्याय 1-2 सम्पादक वाल्टर फ्रॉईड लण्डर, बर्लिन सन 1900। Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ख- शांखायन आरण्यक 7-5 सम्पादक डा. कीथ, सन 1909 । ग- शांखायनारण्यकम् - आनन्दाश्रम पुणे। सम्पादक पं. श्रीधरशास्त्री पाठक, सन 1922 शांखायन गृह्यसंस्कार - ले. वासुदेव । ईजट के पुत्र । वाराणसी में प्रकाशित । शांखायन गृह्यसंस्कार पद्धतिले. विश्वनाथ । शांखायन गृह्यसूत्रम्- आठ अध्याय । विषय- पार्वण, विवाह, गर्भाधान, पुंसवन, गर्भरक्षण, सीमंतोन्त्रयन, जातकर्म, अत्रप्राशान, चूडाकरण गोदान, उपनयन, ब्रह्मचर्याश्रम, स्नान, गृहनिर्माण, गृहप्रवेश, वृषोत्सर्ग आदि । इस ग्रंथ का संपादन जर्मन विद्वान् ओल्डेनबर्ग द्वारा इण्डिचे स्टुडिएन में हुआ। इस पर निम्नलिखित टीकाएं लिखी गई हैं। (1) हरदत्तकृत भाष्य । (2) दयाशंकर (पिता- धरणीधर) कृत प्रयोगदीप (3) रघुनाथकृत अर्थदर्पण | (4) रामचंद्र (पिता सूर्यदास) कृत गृह्यसूत्रपद्धतिः (या आधानस्मृति) (5) नारायण द्विवेदी (पिता कृष्णाजी) कृत गृह्यप्रदीपक। (6) बालावबोधपद्धति । शांखायनतन्त्रम् विद्यान्तर्गत श्लोक 766 | शांखायन श्रौतसूत्रम् इस में अठारह अध्याय हैं विषयदशपूर्णमासादि वैदिकयज्ञों का विवरण, वाजपेय, राजसूय अश्वमेध, पुरुषमेथ, सर्वमेध यज्ञों का सविस्तर वर्णन । शांखायनाह्निकम् (आह्निकदीपिका) ले. - अचल । पितावत्सराज । ई. 16 वीं शती । - For Private and Personal Use Only - शाट्यायनी (सामवेद की एक शाखा ) इस शाखा के कल्प, ब्राह्मण, उपनिषद्, संहिता इ. विषय में कुछ भी ज्ञात नहीं शाट्यायनी आचार्य का मत जैमिनि उपनिषद् ब्राह्मण में बहुधा उद्धृत मिलता है । शाण्डिल्यधर्मशास्त्रम् (पद्यबद्ध विषय- गर्भाधानादिसंस्कार, ब्रह्मचारी के नियम, गृहस्थ, विहितधर्म, गृहस्थानिषिद्धधर्म, वर्णधर्म, देहशोधन, सावित्रीजप इत्यादि । शाण्डिल्यस्मृति विषय भागवतों का आचार 5 अध्यायों ।
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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