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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वीरभानूदय द्वादश-सर्गात्मक काव्य है जिसमें कुल 881 श्लोक हैं। प्रथम सर्ग में कवि ने बघेलों का वंश-वर्णन किया है। द्वितीय सर्ग में वीरसिंह के राज्य-संचालन और उनके दिग्विजयों का वर्णन है। तृतीय सर्ग में कथानायक वीरभानु की कथा प्रारंभ होती है। चतुर्थ में गहोरा की यात्रा, पांचवे में वीरभानु का अभिषेक, छठे में वीरभानु के नीतिपालन, सातवें में उनकी प्रिय रानी की गर्भावस्था, राजकुमार रामचंद्र का जन्मोत्सव, आठवें में रामचंद्र का विद्याभ्यास, नवम में रामचंद्र का विवाह, यौवराज्याभिषेक, दसवें में रामचंद्र का शासनारंभ, एकादश में रामचंद्र की आखेट यात्रा और द्वादश में रामचंद्र पुत्र वीरभद्र का जन्मोत्त्सव का वर्णन है। वीरमित्रोदय - ले.- मित्र मिश्र। ओरछानरेश वीरसिंह देव की प्रेरणा से लिखित ग्रंथ। रचना-काल। सं. 1605 से 1627 के बीच। इस बृहद् निबंध-ग्रंथ में धर्मशास्त्र के सभी विषयों के अतिरिक्त राजनीतिशास्त्र का भी निरूपण है। यह चार भागों एवं 22 प्रकाशों में विभाजित है जिनके नाम हैं- परिभाषा, संस्कार, आह्निक, पूजा, प्रतिष्ठा, राजनीति, व्यवहार, शुद्धि, श्राद्ध, तीर्थ, दान, व्रत, समय, ज्योतिष, शांति, कर्मविपाक, चिकित्सा, प्रायश्चित्त, प्रकीर्ण, लक्षण, भक्ति तथा मोक्ष। इस ग्रंथ की रचना पद्यों में हुई है और सभी प्रकाश अपने में विशाल ग्रंथ हैं। उदाहरणार्थ व्रत-प्रकाश के श्लोकों की संख्या 22,650 है, और संस्कार-प्रकाश के श्लोकों की संख्या 17, 415 है। राजनीति प्रकाश में राजशास्त्र के सभी विषयों का वर्णन है। इसके वर्ण्य विषय हैं-राजशब्दार्थ-विचार, राजप्रशंसा, राज्याभिषेक- विहितकाल, राज्याभिषेक- निषिद्धकाल, राज्याधिकारनिर्णय, राज्याभिषेक, राज्याभिषेककृत्य, प्रतिमास, प्रतिसंवत्सराभिषेक, राजगुण, विहित राजधर्म, प्रतिषिद्ध राजधर्म, अनुजीविवृत्त, दुर्ग-लक्षण, दुर्गगृह-निर्माण, राष्ट्र, कोष, दंड, मित्र, षाड्गुण्यनीति, युद्ध, युद्धोपरांत व्यवस्था, देवयात्रा, इंद्रध्वजोछराय-विधि, नीराजशांति, देवपूजा, आदि। मित्रमिश्र का प्रस्तुत ग्रंथ याज्ञवल्क्यस्मृति पर लिखित विशालकाय टीका है। चौखम्बा सीरीज द्वारा मुद्रित । वीरराघवम् (व्यायोग) - ले.- प्रधान वेंकण। ई. 18 वीं शती। श्रीरामपुरी में राम-महोत्सव के अवसर पर अभिनीत । आरम्भ में मिश्र विष्कम्भक जो व्यायोग में वर्जित है। नाट्योचित, सरल भाषा, संगीतमयी शैली। प्रधानरस-वीर। कथा- प्रभुरामचंद्र द्वारा विराध,खर, दूषण, त्रिशिरा राक्षसों के वध । वीरराघवस्तुति - ले.- बेल्लमकोण्ड रामराय। आंध्रवासी। वीरलब्ध पारितोषिकम् - ले.- आर. राममूर्ति । चोलवंश के । इतिहास पर आधारित उपन्यास । वीरसाधनाविधि - ले.- नृसिंह ठक्कुर। श्लोक- 148। वीरसिंहावलोक - ले.- वीरसिंह तोमर। पिता-देवशर्मा। ग्वालियर के तोमर वंश के संस्थापक । धर्मशास्त्र एवं ज्योतिषशास्त्र से संबंधित यह आयुर्वेद का ग्रंथ है। इसमें पूर्वजन्मकर्मपारिपाक, ग्रहस्थिति तथा त्रिदोष इन रोगोत्पत्ति के कारणों की चर्चा की है तथा तदनुसार ही पौराणिक मंत्र, तंत्र, उपवास, जप दानादि के तथा औषधियों के उपायों की चर्चा की है। अब तक इस के दो संस्करण प्रकाशित हुए हैं। (1) गंगाविष्णु कृष्णदास के मुम्बई स्थित वेंकटेश्वर प्रेस से प्रथम बार वि.सं. 1939 में तथा संवत 1981 में दूसरी बार इस रचना का प्रकाशन हुआ है। वीरांजनेयशतकम् - ले.- श्रीशैल दीक्षित। ई. 19 वीं शती। (2) ले.- विट्ठलदेवुनि सुंदरशर्मा । हैदराबाद (आन्ध्र) के निवासी । वृक्षायुर्वेद - ले.- सुरेश्वर (या सुरपाल) ई. 11 वीं शती। मद्रास के श्री. के. व्ही. रामस्वामी शास्त्री एण्ड सन्स द्वारा तेलगु अनुवाद सहित इर. का प्रकाशन हुआ है। इसके हिन्दी, मराठी और अग्रेजी भाषा में भी अनुवाद हुए हैं। मराठी अनुवाद का नाम है 'उपवनविनोद' और हिन्दी अनुवाद का नाम है 'उपवनरहस्य'। वृतकल्पदुम - ले.-जयगोविंद । वृत्तकारिका - ले.- नारायण पुरोहित । वृत्तकौतुकम् - ले.- विश्वनाथ ।। वृत्तकौमुदी - ले.- जगद्गुरु। (2) रामचरण । वृत्तचन्द्रिका - ले.- रामदयालु । वृत्तचन्द्रोदय - ले.- भास्कराध्वरी। वृत्तचिन्तारत्नम् - ले.- शान्ताराम पंडित । वृत्तदर्पण - ले.- भीष्मचन्द्र। (2) ले- सीताराम । वृत्त-दशकुमार- चरितम् - ले.- सोमनाथ वाडीकर। इस रचना का प्रकाशन स्वयं कवि ने ने,इ.स. 1938 में मास्टर प्रिटींग वर्क्स, वाराणसी से किया था। कवि मूलतः महाराष्ट्र के वाडीगाव के निवासी थे। उपजीविका के निमित्त ग्वालियर के निवासी हुए। कवि ने छात्रों के लिये उक्त रचना की है। दण्डी के दशकुमारचरितम् का यह एक अत्यंत सफल पद्यात्मक रूपान्तर है। इस रचना में पूर्वपीठिका तथा उत्तरपीठिका मिलकर 982 पद्य है। सप्तम उच्छ्वास के सभी पद्य, मूल रचना के अनुसार निरोष्ठ्य वर्गों में ही किये है। यह इस रचना की विशेषता है। वृत्तदीपिका - ले.- कृष्ण। वृत्तधुमणि- ले.- यशवन्त। (2) ले.- गंगाधर । वृत्तप्रत्यय • ले.- शंकरदयालु। वृत्तप्रदीप - ले.- जनार्दन। (2) ले.- बदरीनाथ । वृत्तमंजरी - ले.- वसन्त त्र्यंबक शेवडे। नागपूर निवासी । वृत्तलक्षणों के उदाहरण में भगवती स्तोत्र की रचना की है। वृत्तमणिकोश - ले.- श्रीनिवास। संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड / 347 For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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