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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir राममयविद्याभूषण का कविविलास-प्रहसन 1892,कलिमाहात्म्यप्रहसन 1982, शिवाजीचरितम् -नाटक 1887, तथा शिखपुराणम् 1887 विशेष उल्लेखनीय हैं। "विद्योदय" मासिक पत्रिका का उद्देश्य था- "केवल संस्कृत भाषायाः बहुलप्रचार एवास्य मुख्यप्रयोजनमस्ति । न केवलं संस्कृत भाषायाः किन्तु तद्भाषारचितानां तत्तदर्शनेतिहासादिविषयाणामणि प्रचारश्चास्य प्रयोजनपक्षे वर्तते"। सन 1919 में इसका प्रकाशन बंद हुआ। 2. विद्योपास्तिमहानिधि- यह शिवरामप्रकाश कृत तंत्रराज की भिन्न टीका है। विषय- प्रतिष्ठानिधि, नाथपूजानिधि, विद्यानित्यक्रमनिधि, संक्षेपपूजानिधि, महाचक्रनिधि, नैमित्तिकनिधि, पूर्वाभिषेक निधि, प्रकीर्णनिधि ये इस विद्योपास्ति महानिधि में नौ उपनिधियां हैं। विद्योद्धार केवल नाथों से लभ्य है। इस लिए उसका यहां वर्णन नहीं किया गया। विषय- गुरु-शिष्य का स्वरूप, गुरुसेवा और आचार, राशि आदि का शोधन, सर्वप्रतिष्ठा का काल, वर्णो की यंत्रप्रतिष्ठा, मातृकाचक्र का निर्माण, प्राणविद्या विधि, संपुट आदि का स्वरूप, मूर्तिस्थापन कर्म, दक्षिणा का निर्णय, दीक्षा व विद्या की प्राप्तिविधि, मंत्र के दोषों का परिहार, मंत्रार्थों का निरूपण, चक्र और शिष्यप्रतिष्ठा के प्रयोग, विद्याप्राप्ति के प्रयोग आदि। विद्वत्कला - सन 1900 में लष्कर (ग्वालियर) से इस पत्रिका का प्रकाशन आरंभ हुआ किन्तु इसके केवल दो-तीन अंक ही प्रकाशित हुए। इसमें केवल समस्यापूर्ति श्लोक ही प्रकाशित किये जाते। विद्वद्गोष्टी - सन 1904 में वाराणसी में इस पत्रिका का प्रारंभ हुआ। विद्वच्चरित्रपंचकम् - ले.- नारायणशास्त्री खिस्ते। वाराणसी स्थित सरस्वती ग्रन्थालय के भूतपर्व अध्यक्ष। काशी के पांच पण्डितों का चरित्र इस में ग्रंथित है। विद्वन्मण्डनम् - ले.- गोसाई विठ्ठलनाथ। आचार्य वल्लभ के पुत्र तथा वल्लभ-संप्रदाय के यशस्वी आचार्य। विठ्ठलनाथजी से लगभग सौ वर्षा के उपरात पुरुषोत्तमजी ने “विद्वन्मण्डन" की "सुवर्ण-सूत्र" नामक पांडित्यपूर्ण विवृत्ति लिखी। विद्वन्मनोरंजिनी - 1907 में कांची से वैजयंती पाठशाला के प्राचार्य के सम्पादकत्व में इस पाक्षिक पत्र का प्रकाशन प्रारंभ हुआ। इसमें धार्मिक विषयों की बहुलता रहती थी। विद्वन्मनोहरा - ले.- नन्दपण्डित। ई. 16-17 वीं शती। पराशरस्मृति की टीका। विद्वन्मुखभूषणम् (या विद्यन्मुखमण्डनम्) - ले.- प्रयाग वेंकटाद्रि। यह महाभाष्य की टिप्पणी है। विद्वन्मोद-तरंगिणी (चम्पू) - ले.- रामदेव चिरंजीव भट्टाचार्य । ई. 16 वीं शती। यह चंपूकाव्य 8 तरंगों में विभक्त है। प्रथम तरंग में कवि ने अपने वंश का वर्णन किया है। द्वितीय में वैष्णव, शाक्त, शैव, अद्वैतवादी, वैशेषिक, न्याय, मीमांसा वेदांत, सांख्य व पातंजल योग के ज्ञाता, पौराणिक, ज्योतिषी, आयुर्वेद, वैयाकरण, आलंकारिक व नास्तिकों का समागम वर्णित है। तृतीय से अष्टम तरंग तक प्रत्येक मत के अनुयायी अपने मत का प्रतिपादन व पर-पक्ष का खंडन करते हैं। अंतिम तरंग में समन्वयवादी दृष्टिकोण का परिचय दिया गया है। इस में पद्यों का बाहुल्य व गद्य की अल्पता है। उपसंहार में समन्वयवादी विचार हैं : शिवे तु भक्तिः प्रचुरा यदि स्याद् भजेच्छिवत्वेन हरि तथापि । हरौ तु भक्तिः प्रचुरा यदि स्याद् भजेद्धरित्वेन शिवं तथापि ।। (8-133) ___ संवादों के माध्यम से दार्शनिकविचारों का प्रतिपादन इस ग्रंथ की अपूर्वता है। विधवाविवाह-विचार - ले.- हरिमिश्र। विधवाशतकम् - ले.- वरद कृष्णम्माचार्य । विधानपारिजातम् - ले.- अनन्तभट्ट । नागदेव के पुत्र। 1625 ई. में वाराणसी में प्रणीत । लेखक अपने को "काण्वशाखाविदा प्रियः" कहता है। विषय- स्वस्तिवाचन, शान्तिकर्म, आह्निक, संस्कार, तीर्थ, दान, प्रकीर्ण विधान आदि । पांच स्तबकों में पूर्ण । विधानमाला (या शुद्धार्थविधानमाला) - ले.-अत्रि गोत्र के नृसिंहभट्ट। वैराट देश में चन्दनगिरि के पास वसुमति के निवासी। ई. 16 वीं शती। हरि के पुत्र विश्वनाथ ने इस पर टीका लिखी है। (2) ले.- लल्ल। (3) ले.- विश्वकर्मा । विधानरत्नम् - ले.- नारायणभट्ट । विधिप्रदीप (या निधिप्रदीप) - विषय- वास्तुशास्त्र। इस ग्रंथ में मंदिर की मूर्ति के नीचे कितना निधि रखना चाहिए इस विधि का प्रतिपादन किया है। विधिरत्नम् - ले.- गंगाधर । विधिरसायनम् - ले.- शंकरभट्ट। ई. 17 वीं शती। विषयधर्मशास्त्र। विधिरसायनदूषणम् - ले.-नीलकंठ। ई. 17 वीं शती। पिताशंकरभट्ट। विधिवाद - ले.-गदाधर भट्टाचार्य। विधिविपर्यास (प्रहसन)- ले.-जीव न्यायतीर्थ (जन्म 1894)। आचार्य पंचानन स्मृति ग्रंथमाला में प्रकाशित। सन 1944 में हिंदू कोड बिल पर विमर्श करने हेतु पुणे में वल्लभाचार्य गोकुलनाथ महाराज द्वारा बुलाई गई सभा की स्मृति प्रीत्यर्थ रचित। विधि-विपर्यास का अभिप्राय है कानून या ब्रह्मा का व्यतिक्रमण। कथासार- नायक विनोद स्त्रीपुरुष समानता का पक्षपाती है और विवाह विधि का विरोधक। वह घोषणा करता है कि अपनी सम्पत्ति पुत्रपुत्रियों को समानांश में देगा। नायिका 336/ संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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