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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 99 वें अध्याय में प्राचीन राजाओं की विस्तृत वंशावलियां प्रस्तुत की गई हैं। इस पुराण के अनेक अध्यायों में श्राद्ध का भी वर्णन किया गया है, तथा अंत में प्रलय का वर्णन है । "वायुपुराण" का मुख्य प्रतिपाद्य है शिव भक्ति व उसकी महत्ता का निदर्शन । इसके सारे आख्यान भी शिव भक्तिपरक हैं। यह शिव भक्तिप्रधान पुराण होते हुए भी कट्टरता रहित है, व इसमें अन्य देवताओं का भी वर्णन किया गया है तथा अध्याओं में विष्णु व उनके अवतारों की भी गाथा प्रस्तुत की गई है। इसके 11 वें से 15 वें अध्यायों में योगिक प्रक्रिया का विस्तारपूर्वक वर्णन है, तथा शिव के ध्यान में लीन योगियों द्वारा शिव लोक की प्राप्ति का उल्लेख करते हुए इसकी समाप्ति की गई है। रचना कौशल की विशिष्टता, सर्ग, प्रतिसर्ग, वंश, मन्वंतर व वंशानुचरित के समावेश के कारण इस पुराण की महनीयता असंदिग्ध है। इस पुराण के 104 वें से 112 वें अध्यायों में विष्णु भक्ति व वैष्णव मत का पुष्टिकरण है, जो प्रक्षिप्त माना जाता है। ऐसा प्रतीत होता है कि किसी वैष्णव भक्त ने इसे पीछे से जोड़ दिया है। इसके 104 वें अध्याय में भगवान् श्रीकृष्ण की ललित लीला का गान किया गया है जिसमें राधा का नामोल्लेख है। इसके अंतिम 8 अध्यायों ( 105-112) में गया का विस्तारपूर्वक माहात्म्य प्रतिपादन है, तथा उसके तीर्थदेवता " गदाधर" नामक विष्णु ही बताये गये हैं । प्रस्तुत पुराण के 4 भागों की अध्याय संख्या इस प्रकार है- प्रक्रियापाद 1-6, उपोद्घातपाद 7-64, अनुषंगपाद 65-99, तथा उपसंहारपाद 100-112। इस पुराण की लोकप्रियता, बाणभट्ट के समय तक लक्षणीय हो चुकी थी। बाण ने अपनी "कादंबरी" में इसका उल्लेख किया है(पुराणे वायुप्रलपितम्) शंकराचार्य के "ब्रह्मसूत्रभाष्य" में भी इसका उल्लेख है। (1/3/28, 1/3/30) तथा उसमें "वायुपुराण" के श्लोक उद्धृत हैं ( 8/32, 33 ) । “महाभारत के वनपर्व में भी “वायुपुराण" का स्पष्ट निर्देश है (191/16 ) | इससे प्रस्तुत पुराण की प्राचीनता सिद्ध होती है। किन्तु डॉ. भांडारकर के मतानुसार इस पुराण का काल इ.स. 300 के लगभग रहा होगा क्योंकि इसमें समुद्रगुप्त के काल में तत्कालीन गुप्त राज्य की प्रारंभिक सीमाओं का वर्णन है। उसके विस्तार का इतिहास इसमें नहीं है। वाराणसीदर्पण ले सुन्दर पिता । वाराणसीशतकम् ले बानेश्वर विषय काशी क्षेत्र का राघव । - - - स्तवन । वारायणीय शाखा (कृष्ण यजुर्वेदीय) चरणव्यूह में वारायणी नाम मिलता है किन्तु इस विषय में और कुछ ज्ञात नहीं। कदाचित् चारायणीय से ही यह नाम बन गया हो। वाराहगृह्यम् गायकवाड सीरीज में 21 खण्डों में प्रकाशित । विषय- जातकर्म, नामकरण से पुसंवन तक के संस्कार एवं www.kobatirth.org 328 / संस्कृत वाङ्मय कोश ग्रंथ खण्ड -- वैश्वदेव तथा पाकयज्ञ । F वाराह गृह्यसूत्रम् - यजुर्वेद की मैत्रायणी शाखा की वाराह नामक उपशाखा के सूत्र । इनमें लगभग आधे गृह्यसंस्कारों का वर्णन है। इन सूत्रों के अनुसार संस्कार ग्रहण करने वाले लोग महाराष्ट्र के धुलिया जिले मे पाये जाते हैं। ये सूत्र मानव व काठक गृह्यसूत्रों से लिये गये हैं। डॉ. रघुवीर ने इन्हें संपादित कर प्रकाशित किया है। डॉ. रोलॅण्ड ने इनका फ्रेन्च भाषा में अनुवाद किया है। वाराह शाखा (कृष्ण यजुर्वेदीय) व गृह्यसूत्र मुद्रित हुआ है। वाराह - श्रौतसूत्रम् - यजुर्वेद की मैत्रायणी शाखा के श्रौत सूत्र । मानव श्रौतसूत्रों से इनकी काफी समानता है । इ.स. 1933 में डॉ. रघुवीर व डॉ. कलान्द ने इन सूत्रों को सम्पादित कर प्रकाशित किया। इनमें श्रौत यज्ञों का ब्योरेवार विवरण दिया गया है। इस शाखा का श्रौत Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वाराहीतन्त्र (1) कालिकाण्डभैरव संवादरूप 36 पटलों में पूर्ण । यह तन्त्र दक्षिणाम्नाय से संबद्ध है । विषयवाराही, महाकाली आदि देवी देवताओं के ध्यान, जप, पूजन, होम, आसन, साधन इ. । (2) मूलभूत तन्त्रों में अन्यतम है। 50 पटलों में पूर्ण । श्लोक - 2545। विषय- आगम, यामल, कल्प और तन्त्रों की संख्या और उनके अवान्तर भेद, प्रत्येक की श्लोकसंख्या, आगम, यामल, कल्प और तन्त्रों के लक्षण, दीक्षाविधि, अकडमहर चक्र, कौलचक्र, भिन्न-भिन्न देवताओं के मंत्र जाप, कलियुग में शक्तिमन्त्र में प्रणव आदि जोड़ने का नियम, मन्त्रों की बाल्य, यौवन आदि अवस्थाओं का निरूपण, गृहस्थ और यतियों के लिए मन्त्रों की विशेष व्यवस्था, उपांशु और मानस के भेद से जप के दो प्रकार, जपविधि, स्तोत्र आदि के पाठ की विधि, विविध देव-देवियों की पूजा के मन्त्र, न्यास, स्तोत्र आदि, पीठ और उपपीठों के माहात्म्य । (3) श्रीकृष्ण - राधिका संवाद रूप। श्लोक - 500 पटल 8 । विषय- श्रीकृष्ण से राधा के गोपकुलवास आदि के विषय में विविध प्रश्न और उनका उत्तर, ब्रह्मशिला ब्रह्मलिंग आदि का तत्त्वकथन, सिद्धि के स्थान आदि विशेष रूप से निर्णय, पंच कुण्डों से युक्त स्थान आदि का कथन, चंद्रशेखर, महादेव की अवस्था आदि का निरूपण, चम्पकारण्य आदि का वर्णन. चण्डीस्तोत्र का एकावृत्ति पाठ आदि का कथन । वाराहीसहस्रनाम - ले. उड्डामर तन्त्र के अन्तर्गत। श्लोक- 114 वार्तिकपाठ ले. कात्यायन । विषय-व्याकरण । ले. यतीश । टेकचन्द्र के पुत्र । 1785 ई. में वार्तिकसार लिखित । वार्षगण्य शाखा (सामवेदीय) इस शाखा की संहिता और ब्राह्मण कभी अवश्य रहे होंगे। सांख्यशास्त्र के प्रवर्तकों For Private and Personal Use Only -
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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