SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 338
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 1 वरिवस्याप्रकाश ले. भास्करराय । वरिवस्यारहस्यम् ले. भास्करराय ( भासुरानन्दनाथ गुरुनरसिंहानन्दनाथ । इस ग्रंथ पर प्रकाश नामक टीका भी उन्हीं की रची हुई है। इसमें वामकेश्वर तंत्र योगिनीहृदय आदि अनेक तंत्रों से वाक्य उद्धृत किये गये हैं । वरुणापद्धति (नामान्तर- सिद्धान्तदीप ) उत्त्सवों की प्रतिपादक पद्धति । विषय- तान्त्रिक वरूथिनीचम्पू - ले. गुरुप्रसन्न भट्टाचार्य । राखालदास भट्टाचार्य के पुत्र । ढाका तथा वाराणसी में संस्कृताध्यापक । वर्ज्याहारविवेक ले. वेंकटनाथ । - वर्णकोष ले- गोविन्द भट्ट । श्लोक - 115। मन्त्रोद्धार के लिए अकार आदि 50 वर्णों का यह कोष है। वर्णकोषवर्णनम् भैरवयामल- पूर्वखण्डान्तर्गत । श्लोक 21 लगभग 208 1 वर्णदेशना - ले. पुरुषोत्तम । ई. 12 वीं शती । शब्दों की शुद्धवर्तनी (स्पेलिंग) दशनिवाला ग्रंथ । वर्णप्रकाशकोषले कर्णपूर कांचनपाडा (बंगाल) के । निवासी । ई. 16 वीं शती । - - www.kobatirth.org - वर्णभैरवतंत्रम् - ले. रामगोपाल पंचानन । पिता रामनाथ । श्लोक- 390 विषय- अकार से क्षकार तक के प्रत्येक वर्ण की उत्पत्ति, स्वरूप और माहात्म्य । वर्णमातृकान्यास श्लोक- 100। वर्णलघुव्याख्यान ले. राम । ले. भार्गवराम । वर्णसंकरजातिमाला वर्णसारमणि ले. वैद्यनाथ दीक्षित - वर्णाभिधानम् - ले.- यदुनन्दन ( श्रीनन्दन) भट्टाचार्य। इसके कई संस्करण हो गये हैं। श्लोक- 178 | विषय - अकारादि वर्णों के अभिधान एवं अकार से क्षकार पर्यंत वर्णों के विविध अर्थो का प्रतिपादन । वर्णाभिधानम् - ले. श्री विनायक शर्मा। श्लोक - 1121 विषय- अकारादि वनों (अक्षरों) के तांत्रिक अर्थ, तथा बहुत से बीजमंत्रों के नामों का कथन । वर्णाश्रमधर्म ले वैद्यनाथ दीक्षित। वर्णाश्रमधर्मदीप ले. कृष्ण । पिता गोविन्द | महाराष्ट्र निवासी । विषय- संस्कार, गोत्रप्रवर निर्णय, लक्षहोम, तुलापुरुष, वास्तुविधि, मूर्तिप्रतिष्ठा आदि इस का लेखन वाराणसी में हुआ। वर्णिशतकम् - ले. विमल कुमार जैन। कलकत्ता निवासी । वर्धमानचरितम् ले. पद्मनन्दी । जैनाचार्य । ई. 13 वीं शती। 300 पद्म। (2) ले. असंग। जैनाचार्य। ई. 17 वीं शती । वर्षकृत्यम्ले विद्यापति ई. 15 वीं शती (2) ले.रावणशर्मा चम्पट्टी । विषय- संक्राति एवं 12 मासों के व्रत - - - एवं उत्त्सव। (3) ले हरिनारायण । (4) ले रुद्रधर । पिता - लक्ष्मीधर । सन् 1903 में वाराणसी में प्रकाशित । (5) ले. शंकर । (ग्रंथ का अपर नाम है स्मृतिसुधाकर । वर्षकृत्यप्रयोगमाला ले. मानेश्वर शर्मा ई. 15 वीं शती । वर्षकौमुदी ( वर्षकृत्यकौमुदी) - ले- गोविन्दानन्द । पिता गणपतिभट्ट | वर्षभास्कर ले. शम्भुनाथ सिद्धान्तवागीश राजा धर्मदेव की आज्ञा से लिखित । वल्लभ दिग्विजयम् ले. बाबू सीताराम शास्त्री । विषयवल्लभाचार्य का सुबोध गद्यात्मक चरित्र । वल्लभाचार्यचरितम् ले. श्रीपादशास्त्री हसूरकर । इन्दौरनिवासी । वल्लभाचार्य का सुबोध गद्यात्मक चरित्र । वल्लभाख्यानम् - ले. गोपालदास । विषय- वल्लभाचार्य का चरित्र । - - - वल्लरी सन् 1935 में वाराणसी से केशवदत्त पाण्डे और तारादत्त पन्त के संपादकत्व में इस सचित्र पत्रिका का प्रकाशन आरंभ हुआ। यह केवल एक वर्ष तक प्रकाशित हुई। इसमें काव्य, समस्या, व्यंग, समाचार, और वैज्ञानिक निबंध आदि का प्रकाशन होता था । For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - - वल्लीपरिणयम् (नाटक) ले. वीरराधव (जन्म 1820, मृत्यु 1882 ईसवी) अंकसंख्या पांच अभिनयोचित संवाद | अमात्य, सेवाधिप तथा कंचुकी के संवाद प्राकृत में। प्रमुख रस शृंगार, हास्य रस का पुट मंच पर युद्ध, आलिंगन इ. वर्ज्य प्रसंग प्रदर्शित विषय मुनि रोमश के आश्रम से एक कोस पर रहने वाले व्याधराज की पोषित कन्या वल्ली तथा शिवपुत्र षडानन के विवाह की कथा । 1 - - वल्लीपरिणयम् ले. भास्कर यज्वा । ई. 16 वीं शती का प्रथम चरण संवत्सर के आरम्भ में श्रीजम्बुनाथ के फाल्गुनोत्सव में प्रथम अभिनय । प्रमुख रस शृंगार तथा वीर। पांच अंकों वाला नाटक । द्वितीय अंक में स्त्रीपात्र तथा विदूषक द्वारा महत्त्वपूर्ण बातें प्राकृत के बदले संस्कृत में तृतीय अंक के पूर्व के विष्कम्भक में आकाशयान से विद्याधर के उतरने का अभिनय । कथा- विष्णु का तेज किसी मृगी में समाहित होकर एक कन्या का जन्म होता है। शबरराज उसे अपनी पुत्री बनाता है। युवा होने पर शूरपय दानव और शिवपुत्र कुमार उसे चाहने लगते हैं नायिका वल्ली, कुमार पर मोहित है, परन्तु दानव शूरपद्म उसे बलपूर्वक अपनाना चाहता है । वल्ली को तिरस्करिणी द्वारा शची के पास पहुंचाया जाता है, वहां से वे दोनों (कुमार और शूरपद्म) का युद्ध देखती है। युद्ध में कुमार जीतते हैं और आत्मरक्षा के लिए कुक्कुट और मयूर का रूप धारण कर शूरपद्म कुमार की शरण में आता है। देवगण वल्ली को शिव के पास ले चलते हैं । इन्द्र- शची संस्कृत वाङ्मय कोश ग्रंथ खण्ड / 321
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy