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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनेक तत्त्व भरे हुए हैं। लिंगायत संप्रदाय का यह प्रमुख प्रमाणग्रंथ है। लिङ्गलीलाविलासचरितम् - कवि- महालिङ्ग। लिंगार्चनप्रतिष्ठाविधि - ले.-नारायणभट्ट । पिता- रामेश्वर भट्ट। लिंगादिसंग्रह - ले.-भरत मल्लिक। ई. 17 वीं शती। एक शब्दकोश। लिंगानुशासनवृत्ति - ले.- भट्टोजी दीक्षित । विषय- व्याकरण। लिंगार्चनचन्द्रिका - ले.-सदाशिव दशपुत्र। पिता- गदाधर । ई. 18 वीं शती। आश्रयदाता जयसिंह के आदेशानुसार लिखित । इसी लेखक ने अशौचचन्द्रिका नामक ग्रंथ लिखा है। लिंगार्चनतन्त्रम् (नामान्तर ज्ञानप्रकाश) - शिव-पार्वती संवादरूप। यह मूलतन्त्र 18 पटलों में पूर्ण है। श्लोक लगभग 6601 विषय- शिवलिंग की महिमा, पूजा फल, पूजा न करने में प्रत्यवाय आदि तथा पार्थिव लिंग के भेद इ.। लीलालहरी - ले.-विद्याधर शास्त्री। लीलावती - ले.- भास्कराचार्य। ई. 1114-1223 | महाराष्ट्र में विजलवीड नामक ग्राम के निवासी। इसके "सिद्धांत शिरोमणि" नामक गणितशास्त्र विषयक ग्रंथ में लीलावती, बीजगणित, ग्रहगणित, और गोल नामक चार खंड हैं। प्रत्येक खंड गणितशास्त्र की एक शाखा का ग्रंथ है। लीलावती में अंकगणित महत्त्वमापन इत्यादि महत्त्वपूर्ण विषयों का प्रतिपादन होने के कारण भारतीय गणितशास्त्र का यह पाठ्यपुस्तक माना गया है। इस पर 20 टीकाएं लिखी गई हैं। सन 1583 में अबुल फैजी ने लीलावती का फारसी अनुवाद किया। भास्कराचार्य की कन्या लीलावती को अकाल वैधव्य प्राप्त होने पर उन्होंने कन्या को जो गणितशास्त्र पढाया वही इस ग्रंथ के रूप में व्यक्त माना जाता है। लीलावती (वीथी) -ले.- रामपाणिवाद (अठारहवीं शती) । अम्पल्लपुल के राजा देवनारायण के आदेशानुसार रचित । इसमें विष्कम्भक का प्रयोग है जो वीथी में वर्जित है। कथासार- कर्णाटक के राजा अपनी कन्या लीलावती के अपहरण के भय से उसे राजमहिषी कलावती के संरक्षण में रखते हैं। राजा उसे चाहता है परन्तु पटरानी का मन दुखा कर नहीं। विदूषक राजा और लीलावती के मिलन के लिए सिद्धिमती नामक योगीश्वरी से सहायता लेता है। योग की माया से रानी कलावती को सर्प काटता है। वह मूर्च्छित होती है। विदूषक सपेरा बन रानी को स्वास्थ्यलाभ करता है। रानी पूछती है कि क्या पारितोषिक चाहिए। विदूषक लीलावती का परिणय राजा के साथ करने की अनुमति मांगता है। विवश रानी विवाह कराती है। नवदम्पती देवतार्चन के लिए निकलते हैं, इतने मैं ताम्राक्ष असुर लीलावती का अपहरण करता है। राजा उसे परास्त कर लीलावती को पुनः प्राप्त करता है। लीलाविलासम् (प्रहसन) - ले.- को. ला. व्यासराज शास्त्री। पालघाट (केरल) से सन 1935 में प्रकाशित । अंकसंख्या-सात । कथासार - गौतम नामक ब्राह्मण अपनी पुत्री लीला का विवाह वेदान्त भट्ट से कराना चाहता है तो उसकी पत्नी (चन्द्रिका) मिल नामक मद्यपी के साथ। लीला दोनों को नहीं चाहती। लीला का भाई सत्यव्रत बहन का मन जानकर विलास के साथ उसका विवाह निश्चित करता है। विवाह के पहले दस्यु द्वारा लीला अपहृत होती है। विलास उसकी रक्षा करता है अन्त में लीला का विवाह विलास के साथ होता है। लीलाविलासम् - ले.- एल.बी.शास्त्री, मद्रास। हास्यप्रधान नाटक। लूकलिखितसुसंवाद - ले.- बाइबल का अनुवाद। बैप्टिस्ट मिशन (कलकत्ता) द्वारा सन 1879 में प्रकाशित।। लेखमुक्तामणि- ले.- हरिदास। पिता- वत्सराज। सर्ग-4 | श्लोक-4641 विषय- लिपिक या मुहरीर के लिखने की कला । ई. 17 वीं शती। लेनिनविजयम् - (रूपक) - ले.- डॉ. रमा चौधुरी। रूस के महापुरुष लेनिन का चरित्र वर्णित । लेनिन शताब्दी पर अभिनीत । लोकप्रकाश - ले.- क्षेमेन्द्र। 11 वीं शताब्दी का उत्तरार्ध । इसमें लेख्या प्रमाणों, बन्धक-पत्रों आदि के आदर्श-रूप वर्णित है। लोकमान्यालंकार - ले.- ग. रा. करमरकर। होलकर महाविद्यालय, इन्दौर, के भूतपूर्व प्राध्यापक। लोकमान्य तिलक का स्तवन तथा छात्रोपयोगी अलंकारों के उदाहरणों का संग्रह। लोकानन्दम् (नाटक) - ले.- चन्द्रगोमिन् । ई. 5 वीं शती। इसका तिब्बती अनुवाद मात्र प्राप्य है। नायक मणिचूड द्वारा किसी ब्राह्मण को अपनी पत्नी तथा संतान दान देने की कथा इसमें अंकित है। लोकानन्ददीपिका - सन 1887 में मद्रास से संस्कृत तथा तामिल भाषा की यह मासिक पत्रिका लोकानन्द समाज की ओर से प्रकाशित किया जाता था। लोकालोक-पुरुषीयम् (काव्य) - ले.- गंगाधर कविराज । सन 1798-18851 लोकेश्वरशतकम् - ले.- वज्रदत्त । 100 अलंकारयुक्त स्रग्धरा छन्द में निबद्ध बुद्ध की प्रार्थना। सुज्ञानी कालिस द्वारा प्रकाशित तथा फ्रेंच मे अनूदित। किंवदन्ती है कि कवि का कुष्ठरोग तीन माह में इस रचना के पश्चात् अवलोकितेश्वर बोधिसत्व में दर्शन देकर निवारण किया। यह नखाशिखान्तवर्णन युक्त स्तवन है। लोचन-रोचनी- जीव गोस्वामी। ई. 15-16 की शती। रूप गोस्वामी लिखित "उज्ज्वल-नीलमणि" की यह टीका है। लोहपद्धति - ले.- सुरेश्वर (सुरपाल) ई. 11 वीं शती। विषय - आयुर्वेद। संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड / 317 For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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