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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याकरण की दृष्टि से कोई निश्चित योजना नहीं दिखाई पडती। इनमें भट्टि का वास्तविक महाकवित्व परिदर्शित होता है। 6 वें से लेकर 9 वें सर्ग को अधिकारकांड कहा गया है। इनमें कुछ पद्य प्रकीर्ण हैं तथा कुछ में व्याकरण के नियमों में दुहादि द्विकर्भक धातु (6, 8-10), ताच्छीलिक कृदधिकार (7, 28-33) भावेकर्तरि प्रयोग (7,68-77), आत्मनेपदाधकिार (8, 70-84) तथा अनभिहिते अधिकार (3, 94-131) पर विशेष ध्यान दिया गया है। प्रसन्नकांड नामक तृतीय कांड का संबंध अलंकारों से है। इसके अंतर्गत (10 से 13) दशम सर्गों में शब्दालंकार व अर्थालंकार के अनेक भेदोपभेदों के प्रयोग के रूप में श्लोकों की रचना की गई है। तिङन्तकांड। में संस्कृत व्याकरण के 9 लकारों को व्यावहारिक रूप में 14 से 22 वें सर्ग तक प्रस्तुत किया गया है और प्रत्येक लकार का परिचय एक सर्ग में दिया है। ___ अपने ग्रंथलेखन का उद्देश्य स्पष्ट करते हुए भट्टि ने स्वयं कहा है कि यह महाकाव्य व्याकरण के ज्ञाताओं के लिये दीपक की भांति अन्य शब्दों को भी प्रकाशित करने वाला है किंतु व्याकरण ज्ञानरहित व्यक्तियों के लिये यह काव्य अंधे के हाथ में रखे गए दर्पण की भांति व्यर्थ है। (22-23) प्रस्तुत महाकाव्य में सरसता का निर्वाह करते हुए पांडित्य का भी प्रदर्शन किया गया है। इसमें महाकाव्योचित सभी तत्त्वों का सुंदर निबंधन है। भट्टि ने पात्रों के चरित्र-चित्रण मे उत्कृष्ट कोटि की प्रतिभा का परिचय दिया है। अनेक पात्रों के भाषण अति उच्च श्रेणी के हैं व उनमें काव्यगत गुणों तथा भाषण संबंधी विशेषताओं का पूर्ण नियोजन है। बिभीषण के राजनीतिक भाषण में कवि के राजनीतिशास्त्र विषयक ज्ञान का पता चलता है तथा रावण की सभा में उपस्थित होकर भाषण करने वाली शूर्पणखा के कथन में वक्तृत्व कला की उत्कृष्टता परिलक्षित होती है। (पंचम सर्ग में)। 12 वें सर्ग का 'प्रभातवर्णन" प्राकृतिक दृश्यों के मोहक वर्णन के लिये संस्कृत साहित्य में विशिष्ट स्थान का अधिकारी है। तृतीय सर्ग में शरद् ऋतु का भी मनोरम वर्णन है। फिर भी सीता-परिणय व राम वन-गमन जैसे मार्मिक प्रसंगों की ओर कवि की उदासीनता, उसके महाकवित्व पर प्रश्नवाचक चिन्ह अंकित करती है। राम-विवाह का केवल एक ही श्लोक में संकेत किया गया है। रावण द्वारा हरण किये जाने पर सीता-विलाप का वर्णन अत्यल्प है। अतः न उससे रावण की दुष्टता व्यक्त हो पाई है और न ही सीता की असमर्थता। रावणवधम् - ले.- कवीन्द्र परमानंद शर्मा। ई. 19-20 वीं शती। लक्ष्मणगढ के ऋषिकुल के निवासी। इन्होंने संपूर्ण रामचरित्र काव्य में ग्रथित किया है। उसका यह भाग है। शेष भाग अन्यत्र उद्धृत है। रावणार्जुनीयम् (महाकाव्य) - रचयिता भट्टभीम या भौमक। यह संस्कृत के ऐसे महाकाव्यों में है जिनकी रचना व्याकरणीय प्रयोगों के आधार पर हुई है। प्रस्तुत महाकाव्य की रचना भट्टिकाव्य के अनुकरण पर है। इस में रावण व कार्तवीर्य अर्जुन (हैहयराज सहस्रबाहु) के युद्ध का वर्णन है। कवि ने 27 सगों में 'अष्टाध्यायी' के क्रम से पदों का निदर्शन किया है। क्षेमेंद्र के 'सुवृत्ततिलक" में (3/4) इसका उल्लेख है। अतः यह कृति 11 वीं शती के पूर्व की सिद्ध होती है। रावणोडीशडामर-तंत्रसार - गौरी-शंकर संवादरूप। विषयनृपति का आकर्षण, उन्मादन, विद्वेषण, उच्चाटन ग्रामोच्चाटन, जलस्तंभन, अग्निस्तंभन, अन्धीकरण, मूकीकरण, स्तब्धीकरण, इ. के बहुत से प्रयोग। राष्ट्रपतिचरितम् - ले.- वा.आ. लाटकर, काव्यतीर्थ। सुबोध शैली में प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्रप्रसादजी का चरित्र । राष्ट्रपथप्रदर्शनम् - ले.- दुर्गादत्त शास्त्री। कांगडा जिला (हिमाचल प्रदेश) में नलेटी गाव के निवासी। अठारह अध्यायों में राष्ट्रीय विषयों का विवरण प्रस्तुत ग्रंथ में किया है। राष्ट्रोदवंशम् - ले.-रुद्र कवि। 20 सगों के इस महाकाव्य में बागुल राजवंश का वर्णन किया है। रासकल्पसारतत्त्वम् - कवि-वृन्दावनदास । विषय- कृष्णलीला। रासगीता - श्लोक- 137। विषय- रासोत्सव के अवसर पर श्रीराधा और श्रीकृष्ण की स्तुति । रासयात्राविवेक - ले.- शूलपाणि। रास-रसोदयम् - ले.- म.म. प्रमथनाथ तर्कभूषण (जन्म सन् 1866)। रासलीला - ले.-डॉ. वेंकटराम राघवन् । “अमृतवाणी' पत्रिका में सन 1945 में प्रकाशित प्रेक्षणक (ओपेरा)। मद्रास आकाशवाणी से प्रसारित। चार प्रेक्षणकों में विभाजित रासक्रीडा के प्रसंग । भागवतोक्त श्लोकों के साथ स्वरचित श्लोक ग्रथित हैं। राससङ्गोष्ठी - (अपरनाम विलासरायचरितम् (उपरूपक) ले.- अनादि मिश्र। ई. 18 वीं शती। इसमें सूत्रधार है, अत एवं यह रासक नहीं। संगीतक भी कहलाता है। रासक्रीडा का अभिधा से शृंगारित अनुशीलन चूलिका द्वारा प्रस्तुत । कथावस्तु - कृष्ण की वंशीध्वनि सुन राधा ललिता के साथ वृन्दावन चल पडती है। निकुंज में सुबल के साथ श्रीकृष्ण उन्हें दीखते हैं। दोनों सखियां छिपकर उन्हें प्रणय की भावना सुबल के सम्मुख प्रकट करते देखती हैं। यह सुन राधा और ललिता उनके सामने आती है। ललिता प्रार्थना करती है कि सभी गोपिकाओं को सतुष्ट करें। कृष्ण मान लेते हैं और सभी के साथ रासक्रीडा करते हैं। रासोल्लासतंत्रम् - नारदप्रोक्त। श्लोक- 260। विषय- श्रीकृष्ण का राससंकीर्तन स्तोत्र, रासलीलास्वरूप वर्णन, रासगीताप्रतिपादन संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड / 309 For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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