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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org किष्किंधा काण्ड पंपा सरोवर के तीर पर राम लक्ष्मण का शोकपूर्ण संवाद । पंपासर का वर्णन । राम व सुग्रीव की मित्रता । बाली का वध तथा सीता की खोज से लिये सुग्रीव का वानरों को आदेश । वानरों का मायासुर द्वारा रक्षित ऋक्षबिल में प्रवेश तथा वहां से स्वयंप्रभा तपस्विनी की सहायता से सागर तट पर आगमन। वानरों की संपाती से भेंट, उसके पंख जलने की कथा। जांबवान् द्वारा हनुमान् की उत्पत्ति का कथन । सुंदरकाण्ड समुद्रसंतरण करते हुए हनुमान् का अलंकारिक वर्णन व हनुमान् का लंका का भव्य वर्णन । रावण के शयन व पानभूमि का वर्णन अशोक वन में सीता को देखकर हनुमान् का बिषाद। लंकादहन तथा वाटिका- विध्वंस । हनुमान् जांबवान् आदि के पास लौटकर सीता की कुशल वार्ता राम-लक्ष्मण को निवेदन करता है। युद्धकाण्ड - राम द्वारा हनुमान् की प्रशंसा, लंका की स्थिति के संबंध में प्रश्न, रामादि का लंका प्रयाण । बिभीषण का राम की शरण में आना और उसके साथ राम की मंत्रणा । अंगद दूत बनकर, रावण के दरबार में जाता है और लौटकर राम के पास आता है। लंका पर आक्रमण । मेघनाद, राम लक्ष्मण को घायल कर पुष्पक विमान से सीता को दिखाता है । सुषेण वैद्य व गरुड का आगमन । राम लक्ष्मण स्वस्थ होते हैं। मेघनाद ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कर राम लक्ष्मण को मूर्च्छित करता है। हनुमान् द्रोण पर्वत को लाकर राम लक्ष्मण एवं वानर सेना को चेतना प्राप्त कराता है। मेघनाद व कुंभकर्ण का वध । राम-रावण युद्ध । रावण की शक्ति से लक्ष्मण मूर्च्छित होता है। रावण के सिरों के कटने पर पुनः नये सिरों का निर्माण होते देखकर, इंद्र-सारथी मातलि के परामर्श से ब्रह्मास्त्र से रावण का वध राम करते हैं। सीता का राम के सम्मुख आगमन । राम उन्हें दुर्वचन कहते हैं। लक्ष्मण रचित अग्नि में सीता का प्रवेश तथा सीता को निर्दोष सिद्ध करते हुए अग्नि द्वारा राम को सीता सौंप दी जाती है। स्वर्गस्थ दशरथ का विमान द्वारा राम के पास आगमन तथा कैकेयी व भरत पर प्रसन्न होने के लिये प्रार्थना । इंद्र की कृपा से मृत वानर पुर्नजीवित होते हैं। वनवास की अवधि की समाप्ति के पश्चात् अयोध्या लौटने पर रामचंद्रजी का राज्याभिषेक । सीता हनुमान् को रत्नहार समर्पण करती है। रामराज्य का वर्णन तथा रामायण श्रवण का फल । उत्तर काण्ड - राम के पास कौशिक, अगस्त्य आदि महर्षियों का आगमन । उनके द्वारा मेघनाद की प्रशंसा सुनने पर राम उसके संबंध में अधिक जानने की जिज्ञासा प्रकट करते हैं । अगस्त्य मुनि रावण के पितामह पुलस्त्य ऋषि व पिता विश्रवा की कथा सुनाते हैं। रावण, कुम्भकर्ण व बिभीषण की जन्मकथा तथा रावण की विजयों का विस्तारपूर्वक वर्णन । रावण द्वारा वेदवती नामक तपस्विनी को भ्रष्ट की जाती है। वही वेदवती 20 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सीता के रूप में जन्म लेती है। हनुमान् के जन्म की कथा, जनक, केकय, सुग्रीव, बिभीषण आदि का प्रस्थान, सीता का निर्वासन व वाल्मीकि के आश्रम में उनका निवास । लवणासुर (मधु) के वध के लिये शत्रुघ्न का प्रस्थान और उनका वाल्मीकि के आश्रम में निवास लव-कुश का जन्म, ब्राह्मण पुत्र की अकाल मृत्यु, शंबूक नामक एक शूद्र की तपस्या । राम द्वारा उसका वध होने पर मृत ब्राह्मण पुत्र का पुनरुज्जीवन । राम राजसूय (यज्ञ) करने की इच्छा प्रकट करते हैं। वाल्मीकि का यज्ञ में आगमन लव-कुश द्वारा रामायण का गायन । राम, सीता को अपनी शुद्धता सिद्ध करने के लिये शपथ लेने की बात करते हैं। सीता शपथ लेती है। तब भूतल से एक सिंहासन प्रकट होता है और उस पर आरूढ होकर सीता रसातल में प्रवेश करती है। तापस के रूप में काल ब्रह्मा का संदेश लेकर राम के पास आता है। दुर्वासा का आगमन एवं लक्ष्मण को शाप । लक्ष्मण की मृत्यु तथा सरयू तीर पर राम का स्वर्गारोहण रामायण के पाठ का फल कथन । रामायण के बालकाण्ड व उत्तरकाण्ड के बारे में कतिपय आधुनिक विद्वानों का मत है कि ये प्रक्षिप्त अंश हैं। इस संबंध में युरोपीय विद्वानों का कहना है कि इन दो कांडों की रचना मूल काव्य के बहुत बाद हुई। मूल ग्रंथ की शैली तथा वर्णन पद्धति के आधार पर भी ये दो कांड स्वतंत्र रचना से प्रतीत होते है। "बालकाण्ड" के प्रारंभ में रामायण की जो विषयसूची दी गई है, उसमें उत्तरकाण्ड का उल्लेख नहीं है। जर्मन विद्वान् याकोबी के अनुसार मूल रामायण में 5 ही कांड थे । युद्ध कांड के अंत में ग्रंथ समाप्ति के निर्देश प्राप्त होते है। रामायण श्रवण का फल कथन भी इस कांड के अंत में है । इससे ज्ञात होता है कि उत्तरकांड आगे चलकर जोडा गया। इस कांड में कुछ ऐसे उपाख्यानों का वर्णन है जिनका पूर्ववर्ती कांडों में कोई संकेत नहीं मिलता। विद्वानों का मत है कि "रामायण" के प्रक्षिप्तांश "महाभारत" के " शतसाहस्री" संहिता का रूप प्राप्त होने के पूर्व रचे जा चुके थे। केवल पहले व सातवें कांडों में ही राम को देवता ( विष्णु का अवतार) माना गया है। कुछ ऐसे उपप्रकरणों को छोड (जो निस्संदेह प्रक्षिप्त हैं) दूसरे कांड से छठे कांड तक राम सर्वदा "मानव" के ही रूप में आते हैं। रामायण के निर्विवाद मूल भागों में राम के विष्णु का अवतार होने का कोई भी संकेत नहीं मिलता। रामायण का रचनाकाल बतलाने के लिये अभी तक कोई सर्वसम्मत प्रमाण उपलब्ध नहीं हो सका। प्रथम व सप्तम कांड को आधार बनाते हुए मैकडोनल ने अपनी सम्मति दी है कि यह एक ही व्यक्ति की रचना है। उन्होंने इसका For Private and Personal Use Only संस्कृत वाङ्मय कोश ग्रंथ खण्ड / 305 -
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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