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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra का गान महाराष्ट्र और द्रविड जाति में प्रचलित है। उच्चारण और गान की दृष्टि से यह कौम संहिता से थोडी मधुर और भिन्न भी है। बौधायन सूत्रानुसार यज्ञ कराने वाले इसी शाखा का ग्रहण करते है। राणायणीय शाखा का ब्राह्मण, कल्पसूत्र इत्यादि वाङ्मय उपलब्ध नहीं है व राणायणीयों के खिलों का एक पाठ शांकर (शारीरक) भाष्य में (3-3-23) मिलता है। राणायणीयों के उपनिषद् का भी उल्लेख है । राणकोजीवनी टीका ले. अनन्त भट्ट | राधाकृष्णमाधुरी- ले. अनन्यदास गोस्वामी । राधातन्त्रम् - कौलसंप्रदाय से संबध्द । पटल - 35। राधाप्रियशतकम् ले. कविशेखर राधाकृष्ण तिवारी सोलापूर निवासी वैष्णव संप्रदायी । www.kobatirth.org राधामाधवम् (नाटक) ले. राघवेन्द्र कवि । ई. 1717 में लिखित अंकसंख्या सात प्रथम अभिनय रासोल्लास महोत्सव के अवसर पर राधा-कृष्ण के विलास का कथानक निबध्द । प्रधान रस- शृंगार । • राधामाधवविलासचंपू ले जयराम पिण्ड्ये विषय शिवाजी के पिता शाहजी राजा भोसले की स्तुति ऐतिहासिक प्रमाण की दृष्टि से यह ग्रंथ बडा महत्त्वपूर्ण है। छत्रपति शिवाजी महाराज के पिता शाहजी जब बंगलोर (कर्नाटक) में शासक के रूप में स्थिर हुए तभी से जयराम उनके आश्रित कवि थे किंतु श्री. के. व्ही. लक्ष्मणराव के मतानुसार उन्होंने राधामाधवविलासचंपू की रचना शाहजी के पुत्र एकोजी के शासन काल में की थी। दस उल्लास व एक परिशिष्ट मिलाकर इस चंपू के 11 भाग हैं। पहले 5 उल्लसों में राधाकृष्ण का वर्णन तथा आगे के 5 उल्लासों में राजा शाहजी की प्रशंसा है। प्रस्तुत चंपू के 10 वें उल्लास तक का भाग संस्कृत भाषा में है। राजा शाहजी तथा अन्य राजपुरुषों के सम्मुख स्वयं जयराम एवं दूसरे कवियों ने संस्कृत के अतिरिक्त विभिन्न भाषाओं में जो कवित्व व समस्यापूर्तियों निर्माण की, वह सामग्री प्रस्तुत काव्य ग्रंथ के परिशिष्ट भाग में संकलित की गई है। इस ग्रंथ में कवि जयराम ने राजा शाहजी की नल, नहुष, भगीरथ, हरिश्र्चंद्र प्रभृति पुण्यश्लोक महापुरुषों से केवल तुलना ही नहीं की अपि तु श्रीकृष्ण के समान शाहजी ने भूमि का भार हरण करने का व्रत लिया हुआ था, ऐसा कहा है। इस से शाहजी की राजनीति का महत्त्व उजागर होता है। शाहजी के दैनिक जीवनक्रम का जयराम द्वारा किया गया वर्णन वैशिष्ट्यपूर्ण है और उससे राजा शाहजी की ध्ययेनिष्ठा स्पष्ट होती है। राधामानतरंगिणी - ले.- नन्दकुमार शर्मा । रचनाकाल - 1639 ईसवी । नवद्वीप नरेशचन्द्र के समाश्रय में लिखित बंगाली कीर्तन शैली में इस की रचना हुई है। I 300 / संस्कृत वाङ्मय कोश ग्रंथ खण्ड - राधारसमंजरी ले. चैतन्यचंद्र । राधारहस्यम् (काव्य)- ले. कृष्णदत्त । ई. 18 वीं शती । राधाविनोदम् ले दिनेश Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - 2) ले. रामचंद्र । पिता जर्नादन। इस काव्य पर त्रिलोकीनाथ तथा भट्टनारायण की टीकाएं हैं। 3) ले. गंगाधर शास्त्री मंगरुलकर नागपुर निवासी ई. 19 वीं शती । राधासुधानिधि - ( या राधारससुधानिधि) - ले. - हितहरिवंशजी । राधावल्लभीय संप्रदाय के प्रवर्तक । 270 पद्यों का यह काव्य राधारानी की प्रशस्त प्रशस्ति है। राधा के सौंदर्य सेवाभाव तथा परिचर्यात्य का मार्मिक वर्णन करते हुए हितहरिवंशजी ने प्रस्तुत ग्रंथ मे अपनी उत्कृष्ट भक्ति एवं काव्य-प्रतिभा को मूर्तरूप दिया है। हिन्दी अनुवाद के साथ इसका प्रकाशन बाबा हितदास ने “बाद" नामक ग्राम (जिला-मथुरा) से किया है। हितहरिवंशजी, नित्य विहारिणी राधा को ही अपनी इष्ट देवता मानते हैं। वे ही उनकी सेव्या-आराध्या हैं, अन्य कोई नहीं। राधासौन्दर्यमंजरी से सुबालचन्द्रचार्य रामकथाचम्पू- ले. नारायण भट्टपाद । रामकथामृतम्- ले. गिरिधरदास। रामकथासुधोदयम् ले श्रीशैल श्रीनिवास रामकथासुधोदयचम्पू- ले. देवराज देशिक । रामकर्णामृतम्- ले. 1 प्रतापसिंह, 2) रामचंद्र दीक्षित । रामकल्पद्रुम ले. अनन्तभट्ट । पिता कमलाकर। ई. 17 वीं शती । दस काण्डों में विभक्त । विषय-काल, श्राद्ध, व्रत, संस्कार, प्रायश्चित्त, शान्ति, दान, आचार, राजनीति इत्यादि । रामकवचम् (त्रैलोक्यमोहनकवचम् ) - ब्रह्मयामलान्तर्गत गौरीतन्त्रोक्त, उमा-महेश्वर संवाद रूप। श्लोक - 100 | रामकालनिर्णयबोधिनी- ले. वेंकटसुन्दराचार्य । काकीनाडा निवासी । रामकाव्य ले. रामानन्दतीर्थ । For Private and Personal Use Only रामकीर्तिकुमुदमाला (अपरनाम-रावणारियशः कैरवस्वक्) - कवि - त्रिविक्रम । समय ई. 17 वीं शती का उत्तरार्थ । नलचम्पूकार त्रिविक्रमभट्ट से यह भिन्न हैं। त्रिविक्रम के पिता विश्वम्भर और गुरु धरणीश्वर का नामोल्लेख प्रस्तुत खंडकाव्य के टिप्पणीकार दुर्गाप्रसाद त्रिपाठी ने किया है। इस काव्य में 272 श्लोकों में 16 प्रकार के वर्णन चारणशैली में किये हैं। विविध प्रचलित छन्दों के साथ मालभारिणी, निशीपाल, स्रग्विणी, पंचचामर और चर्चरी जैसे अप्रयुक्त छंदों का भी पर्याप्त मात्रा में कवि ने उपयोग किया है। आचार्य चंद्रभानु त्रिपाठी कृत "माधुरी" व्याख्या और हिंदी भाषानुवाद के सहित यह काव्य इलाहाबाद के शक्ति प्रकाशन ने प्रसिद्ध किया है।
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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