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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir में अर्थोपक्षेपक तत्त्व। आकाशवाणी का भी अथोपक्षेपण हेतु प्रयोग किया है। यल्लाजीयम् - ले.-यल्लाजि। यल्लुभट्ट के पुत्र। विषयअन्त्येष्टि, सपिण्डीकरण। आश्वलायनसूत्र, भारद्वाज सूत्र और उनके भाष्यों पर आधारित । यशवन्तभास्कर - ले.-हरिभास्कर। पिता अप्पाजीभट्ट। गोत्र काश्यप। ई. 17 वीं शती। त्र्यम्बकेश्वर निवासी। बुन्देलखंड के राजा यशवंतदेव (पिता इन्द्रमणि) के आश्रित । यशस्तिलकचन्द्रिका - ले.-श्रुतसागरसूरि। जैनाचार्य। ई. 16 वीं शती। यशस्तिलकचंपू - ले.-सोमदेव सूरि। रचनाकाल 959 ई.। इस चंपू में जैन मुनि सुदत्त द्वारा राजा मारिदत्त को जैन धर्म । की दीक्षा देने का वर्णन है। मारिदत्त एक क्रूरकर्मा राजा था। उसे धार्मिक बनाने के लिये मुनिजी के शिष्य अभयरुचि ने यशोधरा की कथा सुनाई थी। जैन-पुराणों में भी यशोधर का चरित वर्णन है। कवि ने प्राचीन ग्रंथों से कथा लेकर उसमें कई परिवर्तन किये हैं। इसमें दो कथाएं संश्लिष्ट हैं- 1) मारिदत्त की कथा और 2) यशोधर की कथा। प्रथम के नायक मारिदत्त हैं तथा दूसरे के यशोधर हैं। इसमें कई पात्रों के चरित्र चित्रित हैं- मारिदत्त, अभयरुचि, मुनि सुदत्त, यशोधर, चंद्रमति, अमृतमति, यशोमति आदि। इस ग्रंथ की रचना सोद्देश्य हुई है और इसे धार्मिक काव्य का रूप दिया गया है। इसमें कुल 8 आश्वास या अध्याय हैं। 5 अध्यायों में कथा का वर्णन है और शेष 3 अध्यायों में जैन धर्म के सिद्धान्त वर्णित हैं। धार्मिकता की प्रधानता होते हुए भी इसमें श्रृंगार रस का मोहक वर्णन है। इसकी गद्य शैली अत्यंत प्रौढ है।आवश्यकतानुसार छोटे-छोटे वाक्य व सरल पदावली का भी प्रयोग किया गया है। इसके पद्य काव्यात्मक व सूक्ति दोनों ही प्रकार के हैं। इसके चतुर्थ आश्वास में अनेक कवियों के श्लोक उद्धृत हैं। कवि ने प्रारंभ में पूर्ववर्ती कवियों के महत्त्व को स्वीकार करते हुए अपना काव्य विषयक दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है। उन्होंने नम्रतापूर्वक यह भी स्वीकार किया है कि बौद्धिक प्रतिभा किसी व्यक्ति विशेष में ही नहीं रहती (1/11)। यशोधर-चरितम् - ले.-वादिराजसूरि (उपाधिद्वादशविद्याधिपति) समय ई. 16-17 वीं शती। (2) ले.- श्रुतसागरसूरि। ई. 16 वीं शती। (3) ले.- सोमकीर्ति । ई. 16 वीं शती। (4) ले.- सकलकीर्ति। ई. 14 वीं शती। पिता- कर्णसिंह। माता-शोभा। (5) क्षमाकल्याणकवि। ई. 19 वीं शती। इन सभी ग्रंथों का विषय है जैन धर्मी महाराजा यशोधर का चरित्र। इसी विषय पर एक नाटक भी लिखा गया है। लेखक-वादिचन्द्रसूरि ई. 16 वीं शती। यशोधरा-महाकाव्यम् - ले.-ओगेटि परीक्षित शर्मा। पुणे निवासी आंध्र के कवि। भगवान बुद्ध की धर्मपत्नी यशोधरा का जीवन इस महाकाव्य का विषय है। याचप्रबन्ध - कवि त्रिपुरान्तक । इसमें वेकटगिरि के याचवंशीय राजाओं का इतिहास ग्रथित है। याज्ञवल्क्यस्मृति - रचयिता- ऋषि याज्ञवल्क्य। इस स्मृति का "शुक्ल यजुर्वेद" से संबंध है और यज्ञवल्क्य शुक्ल यजुर्वेद के द्रष्टा माने जाते हैं। इस स्मृति का प्रकाशन 3 स्थानों से हुआ है।- (1) निर्णय सागर प्रेस मुंबई, (2) त्रिवेंद्रम तथा (3) आनंदाश्रम, पुणे। इनमें श्लोकों की संख्या क्रमशः 1010, 1003 और 1006 है। इसके प्रथम व्याख्याता विश्वरूप हैं जिनका समय 800-825 ई. है। द्वितीय व्याख्याता "मिताक्षरा' के लेखक विज्ञानेश्वर हैं जो विश्वरूप के 250 वर्ष पश्चात् हुए थे। 'मनुस्मृति' की अपेक्षा यह स्मृति अधिक सुसंगठित है। इसमें विषयों की पुनरुक्ति न होने के कारण इसका आकार "मनुस्मृति" से छोटा है। दोनों ही स्मृतियों के विषय समान हैं तथा श्लोकों में भी कही-कहीं शब्द-साम्य है। अतः प्रतीत होता है कि याज्ञवल्क्य ने इसकी रचना "मनुस्मृति" के आधार पर की है। इसमें 3 कांड हैं जिनकी विषयसूची इसप्रकार हैप्रथम कांड- चौदह विद्याओं व धर्म के 20 लेखकों का वर्णन, धर्मोपपादन, परिषद्-गठन, विवाह से गर्भाधान पर्यन्त सभी संस्कार, उपनयन-विधि, ब्रह्मचारी के कर्त्तव्य तथा वर्जित पदार्थ व कर्म, विवाह एवं विवाह-योग्य कन्या की पात्रता, विवाह के 8 प्रकार, विजातीय विवाह, चारो वर्गों के अधिकार व कर्त्तव्य, स्नातक के कर्त्तव्य, वैदिक यज्ञ, भक्ष्याभक्ष्य के नियम तथा मांस-प्रयोग, दान पाने के पात्र, श्राद्ध तथा उसका उचित समय, श्राद्ध-विधि श्राद्धप्रकार, राज-धर्म, राजा के गुण, मंत्री, पुरोहित, न्याय-शासन आदि। द्वितीय कांड- न्याय-भवन के सदस्य, न्यायाधीश, कार्यविधि, अभियोग, उत्तर, जमानत लेना, न्यायालय के प्रकार, बलप्रयोग, ब्याज के दर, संयुक्त परिवार के ऋण, शपथ-ग्रहण, मिथ्या साक्षी पर दंड, लेख-प्रमाण, बंटवारा तथा उसका समय, स्त्री का भाग, पिता की मृत्यु के बाद विभाजन, विभाजन के अयोग्य संपत्ति, पिता-पुत्र संयुक्त स्वामित्व, बारह प्रकार के पुत्र, शूद्र व अनौरस पुत्र, पुत्रहीन पिता के लिये उत्तराधिकार, स्त्री धन पर पति का अधिकार, द्यूत तथा पुरस्कार-युद्ध, अपशब्द, मान-हानि, साहस, चोरी और व्यभिचार। तृतीय कांड- मृत व्यक्तियों का जल-तर्पण, जन्म-मरण पर तत्क्षण पवित्रीकरण के नियम। समय, अग्निसंस्कार, वानप्रस्थ तथा यति के नियम, सत्त्व, रज व तम के आधार पर तीन प्रकार के कार्य। डॉ. काणे के अनुसार इसका समय ईसा पूर्व प्रथम शताब्दी 284/ संस्कृत वाङ्मय कोश- ग्रंथ खण्ड For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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