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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org भी प्रतिपादन किया गया है। इसमें लोक-विज्ञान व लोक व्यवहार के आधार पर मौलिक सिद्धांत की स्थापना की गई है, तथा व्याकरण को "दर्शन" का स्वरूप प्रदान किया गया है। इसमें स्फोटवाद की मीमांसा करते हुए, शब्द को ब्रह्म का रूप माना गया है। इसके प्रारंभ में ही यह विचार व्यक्त किया गया है कि शब्द उस ध्वनि को कहते हैं, जिसके व्यवहार करने से पदार्थ का ज्ञान हो। लोक में ध्वनि करने वाला बालक "शब्दकारी" कहा जाता है। अतः ध्वनि ही शब्द है । यह ध्वनि स्फोट का दर्शक होती है। शब्द नित्य है, और उस नित्य शब्द का ही अर्थ होता है। नित्य शब्द को ही "स्फोट" कहते हैं। स्फोट की न तो उत्पत्ति होती है और न नाश होता है। शब्द के दो भेद है- नित्य और कार्य । स्फोट-स्वरूप शब्द नित्य होता है तथा ध्वनिस्वरूप शब्द कार्य । स्फोट-वर्ण नित्य होते हैं, वे उत्पन्न नहीं होते। उनकी अभिव्यक्ति व्यंजक ध्वनि के द्वारा ही होती है। इस ग्रंथ के पठन-पाठन की परंपरा तीन बार खण्डित हुई । चन्द्रगोमिन् ने प्रथम एक पाण्डुलिपि बडे परिश्रम से प्राप्त कर तथा उसे परिष्कृत कर उस परंपरा की पुनः स्थापना की। दूसरी बार खण्डित परम्परा क्षीरस्वामी ने स्थापित की। तीसरी बार स्वामी विरजानन्द तथा शिष्य दयानन्द स्वामी ने की। वर्तमान प्रति में अनेक प्रक्षेपक हैं, कुछ मूल पाठ भ्रष्ट या लुप्त हो गए हैं। महाभाष्य के टीकाकार- "महाभाष्य" की अनेक टीकाएं हुई हैं। इनमें से कुछ तो नष्ट हो चुकी हैं, और जो शेष हैं, उनका भी विवरण प्राप्त नहीं होता। अनेक टीकाएं हस्तलेख के रूप में वर्तमान हैं। उपलब्ध टीकाओं में भर्तृहरि की टीका सर्वाधिक प्राचीन है। इसका नाम है "महाभाष्यदीपिका " । ज्येष्ठकलक व मैत्रेयरक्षित की टीकाएं अनुपलब्ध हैं। कैयट, पुरुषोत्तम देव, शेषनारायण, नीलकंठ वाजपेयी, यज्वा व नारायण की टीकाएं उपलब्ध हैं। महाभाष्यदीपिका यह आचार्य भर्तृहरि की महाभाष्य पर विस्तृत तथा प्रौढ व्याख्या है। अनेक ग्रंथों में इसे उद्धृत किया गया है। उन अनेक उद्धरणों से अनुमान होता है कि उन्होंने पूरे महाभाष्य पर दीपिका रची थी । कालान्तर से वह तीन पादों तक शेष रहने से बाद के वैयाकरणों ने केवल तीन पादों की भाष्यरचना का निर्देश किया है। वर्तमान में समूचे एक पाद की भी दीपिका उपलब्ध नहीं है। केवल 5700 श्लोक तथा 434 पृष्ठों का एक हस्तलेख बर्लिन में उपलब्ध होने की सूचना सर्वप्रथम डा. कीलहार्न ने दी। अभी तक अन्य प्रति अप्राप्त। इत्सिंग के समय दीपिका में 25000 श्लोक थे, संभवतः मूल दीपिका इससे बहुत अधिक थी । (वर्तमान प्रति का प्रकाशन पुणे तथा काशी में हो रहा है) । महाभाष्यप्रकाशिका रचयिता- विष्णु। बीकानेर के अनूप संस्कृत पुस्तकालय में उपलब्ध पाण्डुलिपि में प्रारंभ के दो - आह्निकों की टीका उपलब्ध है। महाभाष्यप्रत्याख्यानसंग्रह ले. नागेश भट्ट वाराणसी की । सारस्वती सुषमा में क्रमशः प्रकाशित। यह पातंजल महाभाष्य की टीका है। महाभाष्यप्रदीप ले. कैयट भर्तृहरिकृत वाक्यपदीय तथा प्रकीर्ण काण्ड पर आधारित पातंजल महाभाष्य की प्रौढ तथा पाण्डित्यपूर्ण टीका । महाभाष्य को समझने के लिये यह एकमात्र सहारा है। यह पाणिनीय संप्रदार्य का महत्त्वपूर्ण ग्रंथ है। प्रस्तुत प्रदीप पर 15 टीकाकारों ने टीकाओं की रचना की है। महाभाष्यप्रदीप टिप्पणी ले. मल्लययज्या इसकी पाण्डुलिपि उपलब्ध है। लेखक के पुत्र तिरुमल की प्रदीप व्याख्या अप्राप्त है। महाभाष्यप्रदीप प्रकाशिका (प्रकाश) ले. - प्रवर्तकोपाध्याय मद्रास, अडवार, मैसूर और त्रिवेन्द्रम में इसकी पाण्डुलिपि विद्यमान है। - महाभाष्यप्रदीप - विवरणम् ले. नारायण । मद्रास और कलकत्ता में अनेक पाण्डुलिपियां उपलब्ध है। (2) ले.रामचंद्रसरस्वती । महाभाष्यकैयटप्रकाश महाभाष्यप्रदीपव्याख्या - - · - में निर्दिष्ट)। (2) ले रामसेवक For Private and Personal Use Only - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - महाभाष्यप्रदीप स्फूर्ति ले. सर्वेश्वर सोमयाजी अड्यार ग्रंथालय में पाण्डुलिपि उपलब्ध । (2) ले आदेन्न । महाभाष्यरत्नाकरले. शिवरामेन्द्र सरस्वती (एक पाण्डुलिपि सरस्वतीभवन काशी में है) । 1 महाभाष्यलघुवृत्तिले पुरुषोत्तम देव ई. 12-13 वीं शती। महाभाष्यविवरणम् ले. नारायण ले. - चिन्तामणि । ले. हरिराम । (ऑफ्रेट बृहत्सूची - महाभाष्यस्फूर्ति ले सर्वेश्वर दीक्षित। महाभाष्यप्रदीपोद्योत ले. नागोजी भट्ट ई. 18 वीं शती । पिता - शिवभट्ट । माता सती । पातंजल महाभाष्य पर कैयटकृत प्रदीप नामक टीका की यह व्याख्या है। - महाभाष्यप्रदीपोद्योतनम् ले अन्नंभट्ट । कैयटकृत महाभाष्य प्रदीप की यह व्याख्या है। इस पर वैद्यनाथ पायगुंडे (नागोजी के शिष्य) ने छाया नामक टीका लिखी। (2) ले नागनाथ । ई. 16 वीं शती । महाभिषेकटीका शती । महाभैरवशतकम् - ले. - श्रीनिवास शास्त्री । ले. श्रुतसागरसूरि जैनाचार्य ई. 16 वीं - । । महामुण्डमालातंत्रम् - शिव-पार्वती संवादरूप । पटल- 12 । श्लोक- 800 | विषय - दिव्य, वीर और पशुओं के आचार । भावसाधन, समयाचार आदि का निरूपण । दुर्गा - माहात्म्यवर्णन । शाक्तों की प्रशंसा । दुर्गापूजाविधान । केवल दुर्गा के पूजन से संस्कृत वाङ्मय कोश ग्रंथ खण्ड / 261
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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