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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनन्तव्रतकथा - ले.- पद्मनन्दी । जैनाचार्य । ई. 13 वीं शती। अनरव्रतपूजा - ले.- ब्रह्मजिनदास, जैनाचार्य, ई. 15-16 वीं शती। अनाकुला - ले. हरदत्त । ई. 15-16 वीं शती। आपस्तंब गृह्यसूत्र की व्याख्या। अनारकली (नाट्य प्रकरण) - ले. डा. वेंकटराम, राघवन्। रचना 1931 में। प्रकाशन लगभग 40 वर्ष पश्चात्। 1971 में मद्रास में दो बार तथा विश्व संस्कृत सम्मेलन के अवसर पर दिल्ली में 1972 में अभिनीत । कुल पात्रसंख्या 50 से अधिक। लम्बी एकोक्तियां। षष्ठ अंक में सलीम की एकोक्ति 65 पंक्तियों की है। पूरे पंचम अंक में अनारकली तथा इस्मत बेग की केवल एकोक्तियां हैं। लम्बे, अप्रासंगिक संवाद तथा दृश्य इसमें हैं। सलीम तथा अनारकली की कथा के अन्त में परिवर्तन- अकबर की हिन्दू बहू, अनारकली को मृत्युदण्ड से बचाती है। अनाविला - ले.- हरदत्त। ई. 15-16 वीं शती। आश्वलायन गृह्यसूत्र की व्याख्या । अनिट्कारिका - ले.- व्याघ्रभूति। समय- एक मत के अनुसार ई. पू. 28 श.। 'व्याकरण दर्शनेर इतिहास' के लेखक पं. गुरुपद हालदार, व्याघ्रभूति को पणिनि का साक्षात् शिष्य मानते हैं। इस ग्रंथ में सेट और अनिट् धातुओं का परिगणन किया गया है। अनिरुद्धचरित-चम्पू - (1) कवि- देवराज, रघुपतिसुत । (2) कवि- साम्बशिव। अनिलदूतम् - ले.- रामदयाल तर्करत्न । अनेकान्तजयपताका - ले.- हरिभद्रसूरि । ई. 8 वीं शती। विषय- जैन दर्शन। अनेकान्तवादप्रवेश - ले.- हरिभद्रसूरि । ई. 8 वीं शती। विषय- जैनदर्शन। अनेकार्थसार • (अपरनाम-धरणीकोश) ले. धरणीदास। ई. 11 वीं शती। अनुकूलगलहस्तकम् (रूपक) - ले- विष्णुपद भट्टाचार्य (ई. 20 वीं शती) "मंजूषा" में सन् 1959 में प्रकाशित । अंकसंख्या- दो। प्रधान रस हास्य । दीर्घ रंगनिर्देश, एकोक्तियों की प्रचुरता। उत्कृष्ट संविधान। कथासार- नायक दिव्येन्दु रांची जाने के पूर्व अपने मित्र यामिनीकान्त (पुकारते समय यामिनी)। को फोन लगाता है, जो संयोगवश नायिका यामिनी के फोन से सम्बध्द होता है। दिव्येन्दु को यामिनी बताती है कि रांची में रंजनकुटीर में यामिनी (यामिनीकान्त) से मिलना। दिव्येन्दु रंजनकुटीर जाता है, तब यामिनी जलप्रपात देखने गयी है। लौटने पर यामिनी परिहास पर क्षमा मांगती है, तो दिव्येन्दु दण्डस्वरूप उसको आजीवन बन्दिनी बनने को कहता है। यामिनी की सखी शाश्वती दोनों के हाथ मिला देती है। अनुग्रहमीमांसा - ले- पी.एस. वारियर तथा व्ही.एन. नायर । विषय- जन्तुसिद्धान्तविषयक चिकित्सा। अनुत्तरप्रकाशपंचाशिका - ले. विद्यानाथ। विषय- काश्मीर के शैव मत का प्रतिपादन । अनुत्तरभटारकम् - (अथवा अनुत्तरस्तोत्रम्) ले. विद्याधिपति। अनुत्तरसंविदर्चनाचर्चा - विषय- परम शिव की यथार्थता का प्रतिपादन। श्लोक- 40। अनुन्यास - ले- इन्दुमित्र। आंफेक्ट की बहत् सूची में उल्लेखित । इस अनुन्यास पर श्रीमान् शर्मा ने अनुन्याससार नामक टीका लिखी है। अनुपलब्धिरहस्य - ले- ज्ञानश्री बौद्धाचार्य। ई. 14 वीं शती। विषय- बौद्धदर्शन। अनुब्राह्मण - ब्राह्मणसदृश ग्रंथ अनुब्राह्मण कहलाये गये। भट्टभास्कर ने तैत्तिरीय ब्राह्मण के विशिष्ट अंशों को अनुब्राह्मण कहा है। शांखायन श्रौतसूत्र के 14 एवं 15 अध्याय, ब्रह्मदत्त नामक टीकाकार के मत से अनुब्राह्मण हैं। आश्वलायन एवं वैताल श्रौत सूत्र में भी इसका उल्लेख है। अनुभवाद्वैत -ले- अप्पय्याचार्य । इसमें सांख्य-योग समुच्चयात्मक सिद्धान्त प्रतिपादित है। अनुभवामृतम् - ले- अप्पय्याचार्य। (मृत्यु- ई. 1901) विषय- सांख्य, योग और वेदान्त का समन्वय। अनुभूतिचिन्तामणिः (नाटिका) - ले.- घनश्याम आर्यक । ई. 18 वीं शती। अनुमानचिन्तामणि (दीधितिटीका) - ले.- गदाधर भट्टाचार्य । अनुमानदीधितिविवेकः - ले.- गुणानन्द विद्यावागीश । अनुमानालोकप्रसारिणी - ले-कृष्णदास सार्वभौम भट्टाचार्य । अनुमितिपरिणयम् (नाटक) - लेखक- नरसिंह । कैरविणी पुरी (तामिळनाडु) के निवासी। 18 वीं शती। परामर्शकन्या अनुमिति का न्यायरसिक से विवाह होता है। न्यायशास्त्रीय अनुमिति खण्ड को सुबोध करने हेतु इस लाक्षणिक नाटक की रचना हुई है। कथावस्तु प्रतीकात्मक है। अनुव्याख्यान - ब्रह्मसूत्र के अर्थ का विशद प्रतिपादन करने वाला तथा अद्वैत का खंडन कर द्वैत की स्थापना करने वाला यह मध्वाचार्य का सर्वश्रेष्ठ, प्रमेय-बहल, ग्रंथ है। यह आचार्य के ही अणुभाष्य का पूरक ग्रंथ है। आचार्य स्वयं कहते हैं'स्वयं कृतापि तद्व्याख्या क्रियते स्पष्टतार्थतः।' मध्वाचार्य का समय ई. 12-13 वीं शती।। अनुष्ठानसमुच्चय- ले- नारायण। माता- पार्वती। श्लोक7800। विषय- चल बिम्ब और स्थिर बिम्ब की प्रतिष्ठा आदि की सिद्धि के लिये गुरु-वरण आदि कृत्यों का प्रतिपादन। संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड/9 For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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