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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 2) दीपिकादीपन - ले. - राधारमणदास गोस्वामी (चैतन्यदास) 3) तत्त्वसंदर्भ -ले. जीवगोस्वामी 4) भावार्थदीपिकाकाले वंशीधरशर्मा। 5) शुक्रपक्षीय ले सुदर्शनरि 6) भागवतचन्द्र- चन्द्रिका ले. वीरराघवाचार्य (विशिष्टाद्वैतमत) 7) भक्तरंजनी ले. भगवत्प्रसाद। (स्वामीनारायण मत ) 8) सिध्दान्तप्रदीप-ले. शुकदेव (द्वैताद्वैत मत ) 9) सुबोधिनी ले. वल्लभाचार्य (शुध्दाद्वैत मत ) 10) टिप्पणी ( विवृति) ले. विठ्ठलनाथजी शुदाद्वैत मत ) 11) सुबोधिनी - प्रकाश-ले. पुरुषोत्तमजी ( शुध्दाद्वैत मत ) बालप्रबोधिनी- ले. गोस्वामी गिरिधरलालजी । (शुध्दाद्वैतमत) 12) I 13) वृत्तितोषिणी- ले. सनातन गोस्वामी (गौडीय वैष्णव मत) 14) क्रमसंदर्भ- ले. जीवगोस्वामी (गौडीय वैष्णव मत ) 15) बृहत्क्रमसंदर्भ ले जीवगोस्वामी (गौडीय वैष्णव मत) 16) वैष्णवतोषिणी- ले. जीवगोस्वामी ( श्रीधर मत ) 17) सारार्थदर्शिनी - ले. विश्वनाथ चक्रवर्ती, ई. 18 वीं शती । 18) वैष्णवानन्दिनी - ले. बलदेव विद्याभूषण। मायावाद एवं विशिष्टाद्वैतवाद का खंडन । 19) अन्वितार्थप्रकाशिका - ले. गंगासहाय। 19 वीं शती । इत्यादि। www.kobatirth.org - भागवत - विजयवाद ले. रामकृष्णभट्ट । वल्लभ संप्रदाय या पुष्टिमार्ग की मान्यता के अनुसार भागवत की महापुराणता के पक्ष में लिखित पूर्ववर्ती 5 लघु ग्रंथों से, प्रस्तुत ग्रंथ, प्रमाण एवं युक्ति के प्रतिपादन में श्रेष्ठ है। यह प्रमेयबहुल कृति है । इसमें प्रमेयों पर बड़ी गंभीरता के साथ विचार किया गया है । इस रचना से ग्रंथकार द्वारा पुराणों के गंभीर मंथन तथा अनुशीलन का परिचय मिलता है। ग्रंथ की पुष्पिका से स्पष्ट होता है। कि ग्रंथकार रामकृष्णभट्ट, आचार्य वल्लभ के वंशज थे। संकेत दिया गया है, कि प्रस्तुत ग्रंथ की रचना 1924 वि. में की गई। तदनुसार प्रस्तुत रचना अधिक प्राचीन न होने पर भी विर्मर्श की दृष्टि से बड़ी सराहनीय है। इसी प्रकार के अन्य 5 पूर्ववर्ती लघु ग्रंथों के साथ इसका प्रकाशन, "सप्रकाश तत्त्वार्थ दीप निबंध" के द्वितीय प्रकरण के परिशिष्ट-रूप में, मुंबई से 1943 ई. में किया गया है। भागवतामृतम् ले. सनातन गोस्वामी चैतन्य मत के मूर्धन्य आचार्य। इस ग्रंथ में भागवत के सिद्धान्तों का सुंदर विवरण किया गया है | 1 । भागवतोद्योत ले. चित्रभानु भागविवेक (धनभागविवेक) ले. रामजित्। पिताश्रीनाथ। यह ग्रंथ मिताक्षरा पर आधारित है। लेखक ने स्वयं 234 / संस्कृत वाङ्मय कोश ग्रंथ खण्ड - इस पर मितवादिनी नामक टीका लिखी है 1 भागवृत्ति भागवृत्ति के लेखक के विषय में मतभेद है। श्रीपतिदत्त के मतानुसार विमलमति, शिवप्रसाद भट्टाचार्य के मतानुसार इन्दुमित्र और अन्यों के मतानुसार 9 वीं शती के भर्तृहरि इसके लेखक माने जाते हैं। 13 वीं शती के श्रीधर (भागवत के टीकाकार) को इस का लेखक अथवा टीकाकार माना गया है। इसके उद्धारण अनेक ग्रंथों में मिलते हैं जिन का संकलन प्रकाशित हुआ है। अष्टाध्यायी की यह वृत्ति पातंजल महाभाष्य पर आधारित है। भागवृत्ति पर श्रीधर नामक पंडित की व्याख्या है। भागीरथीपू ले- अच्युत नारायण मोडक । ई. 19 वीं शती । नासिक निवासी इस चंपू काव्य में 7 मनोरथ (अध्याय) हैं। इनमें राजा भगीरथ की वंशावली व गंगावतरण की कथा वर्णित है। इसका प्रकाशन गोपाल नारायण कंपनी मुंबई से हो चुका है। इस चंपू-काव्य का गद्य भाग, पद्य-भाग की अपेक्षा कम मनोरम है। 2 ) ले. - अनन्तसूरि । ई. 19 वीं शती । भाग्यमहोदयम् (नाटक) ले. जगन्नाथ । रचनाकाल 1795 ईसवी सन 1912 में भावनगर से प्रकाशित। इसके पात्र हैं काव्यशास्त्र के पारिभाषिक शब्द । प्रथमांक में मगण-यगणादि पात्र अपनी परिभाषा देकर राजा बखतसिंह का यशोगान करते है द्वितीयाङ्क में अर्थालंकार भी वही करते हैं। भाट्टचिंतामणि ले. विश्वेश्वरभट्ट (गागाभट्ट काशीकर ) ई. 17 वीं शती। पिता दिनकरभट्ट । वाराणसी-निवासी । विषयमीमांसाशास्त्र 2 ) ले. वांछेश्वर. भास्करराय। ई. 18 वीं शती । विषय - - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ले. दिनकरभट्ट । ई. 16 वीं शती । भाट्टजीविका - ले. मीमांसा । भाइदिनकरमीमांसा भाट्टदीपिका ले. खंडदेव मिश्र । कुमारिल (भाट्ट) मत के अनुयायी । ग्रंथ का विषय है शब्दबोध । नैयायिक प्रणाली पर रचित होने के कारण इसकी भाषा दुरूह हो गई है। इस ग्रंथ में लेखक ने प्रसंगानुसार भावार्थ व लकारर्थ प्रभृति विषयों का विवेचन, मीमांसाक दृष्टि से किया है। इसमें खंडदेव मिश्र की प्रौढता व्यक्त हुई है। इस पर 3 टीकाएं प्राप्त हुई है- 1) शंभुभट्ट विरचित "प्रभावती", भास्करराय कृत "भाट्टचंद्रिका" और (3) वांछेश्वरयज्वा प्रणीत "भाट्ट-चिंतामणि" । For Private and Personal Use Only - - भानुप्रबन्ध (प्रहसन ) ले. वेंकटेश्वर । ई. 18 वीं शती। कथावस्तु- नायिका के साथ कामुकता का सम्बन्ध होने पर दण्डित नायक, राजपुरुषों द्वारा पत्नी के पास पहुंचाया जाता है। सन 1890 में मैसूर से प्रकाशित । भानुमती - ले. चक्रपाणि दत्त। सुश्रुत पर टीका। ई. 11 वीं शती । भानोपनिषत्प्रयोगविधि ले. भास्करराय प्रयोगविधि नामक -
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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