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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra बोधायन श्रौतसूत्रम् इस में यज्ञ से संबंधित दर्श- पूर्णमास आधान, पुनराधान, पशु, चातुर्मास्य, सोम, प्रवर्ग्य, चयन, वाजपेय, अग्निष्टोम आदि विषयों का विवेचन है। इस पर भवस्वामी की टीका है यह संपूर्ण सूत्र डॉ. कोलॉण्ड द्वारा सम्पादित कर प्रकाशित किया गया है। बोधायनस्मार्तप्रयोग - - बोधायनाह्निकम् ले विद्यापति बोधिसत्त्वावदानकथा का चरित्र । ले कनकसभापति । । - www.kobatirth.org ले. क्षेमेन्द्र । विषय- भगवान् बुद्ध - 1 बोधिसत्त्वावदान - कल्पलता ले. क्षेमेन्द्र | ई. 11 वीं शती । पिता प्रकाशेन्द्र इसमें भगवान् बुद्ध के पूर्व जीवन से संबद्ध कथाएं पद्य में वर्णित हैं। इसमें 108 पल्लव या कथाएं है। इनमें से अंतिम पल्लव की रचना क्षेमेन्द्र की मृत्यु के पश्चात् उनके पुत्र सोमेन्द्र ने की है। बोधिचर्यावतार ले. - शान्तिदेव । विषय बोधिसत्त्वचर्या । बोधिसत्त्व के लिये आवश्यक 6 पारमिताओं का विस्तृत वर्णन । इसमें 9 परिच्छेद हैं । अन्तिम परिच्छेद शून्यवाद के रहस्य का उद्घाटन करता है। इस रचना पर 11 टीकाएं लिखी गई है। ये सब टीकाएं तथा प्रस्तुत ग्रंथ तिब्बती भाषा में ही उपलब्ध हैं। मूल ग्रंथ अनुपलब्ध हैं। I बौद्धधिक्कार - रहस्यम् - ले. मथुरानाथ तर्कवागीश । बौद्धधिकारशिरोमणि ले. रघुनाथ शिरोमणि । - ब्रह्मज्ञानतन्त्रम् - उमा-महेश्वर संवादरूप । पृथिवी, आदि पांच तत्त्व किससे उत्पन्न होते हैं इत्यादि पार्वतीजी के प्रश्नों का उत्तर देते हुए भगवान् शंकर ने इसमें शारीरिक पदार्थो में चन्द्र, सूर्य आदि बाह्य पदार्थों की भावना आदि से ज्ञानोत्पादन का प्रकार बतलाया है। श्लोक- 1201 ब्रह्मचर्यशतकम् - ले. मेधाव्रत शास्त्री । ब्रह्मज्ञानमहातन्त्रराज शिव-पार्वती संवादरूप सृष्टि किससे होती है, किससे उसका विनाश होता है और सृष्टिसंहार से वर्जित ब्रह्मज्ञान कैसे होता है इत्यादि पार्वतीजी के प्रश्नों का शंकर द्वारा तान्त्रिक क्रम से उत्तर इसका विषय है। ब्रह्मज्ञानशास्त्रम् - नन्दीश्वरप्रोक्त विषय- अनाहत नाद के 10 1 प्रकार । ब्रह्मतान्त्रिकम् श्लोक- 606 । विषय- गायत्री तथा अन्यान्य मन्त्रों के ऋषि, छन्द, देवता, बीज, शक्ति, वर्ण, स्वर, मुद्रा, फल, कीलक इत्यादि । ब्रह्मनिरूपणम् - चण्डिका - शंकर संवादरूप। यह ग्रंथ विभिन्न तन्त्रों के खण्डों (भागों) से निर्मित है विषय सृष्टि, चक्र, नाडी, और शक्ति की पूजा का प्रतिपादन । ब्रह्मपुराणम् विष्णुपुराण में दी गई 18 पुराणों की सूची Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir में इसे "आदि महापुराण" कहा गया है। देवीभागवत में इसे महापुराणों में 5 वां क्रमांक दिया गया है। मत्स्यपुराण में इस पुराण की श्लोकसंख्या 13 सहस्र दी गई है। 8 सहस्र श्लोकों का 'आदिब्रह्मपुराण' नाम से एक और पुराण है। इस पुराण का प्रचलित ब्रह्मपुराण से बहुत साम्य है। दोनों के तुलनात्मक अध्ययन से ज्ञात होता है कि दोनों एक ही हैं। नारद-पुराण में वैसा उल्लेख भी है इसमें सूर्योपासना का 6 अध्यायों में वर्णन है, इस लिये इसे "सौर पुराण" संज्ञा भी प्राप्त हुई है। आदिपुराण और सौर-पुराण नामक जो दो उपपुराण विद्यमान हैं। उनसे इसका संबंध नहीं है । ब्रह्मपुराण का प्रतिपाद्य कृष्णचरित्र है। हैं विष्णु पुराण तथा नारद-पुराण में वर्णित पुरुषोत्तम माहात्म्य, ब्रह्मपुराण के पुरुषोत्तमचरित्र पर आधारित है। महाभारत के अनुशासन पर्व में ब्रह्मपुराण के अनेक प्रसंग यथास्थित लिये गये हैं। (ब्र.पु. 223-225 / अ.प. 143-145)। इस पुराण में सांख्य तत्त्वज्ञान की श्रेष्ठता प्रतिपादित की गई है। आधुनिक अन्वेक्षकों के मतानुसार यह पुराण ईसा पूर्व 7 वीं या 8 वीं शताब्दी में रचा माना जाता है। इस पुराण में अवतारों में बुद्ध का उललेख नहीं है। डॉ. हाजरा ने सप्रमाण बताया है। कि इस पुराण का वर्तमान स्वरूप ऐसा प्रतित नहीं होता कि वह एक ही कालखंड में रचा गया है। इसमें अध्यायों की कुल संख्या 245 हैं, और इसमें लगभग 14 हजार श्लोक । पर श्लोकों की संख्या अन्यान्य पुराण भिन्न भिन्न बताते हैं। इसके आनंदाश्रम संस्करण में 13,783 श्लोक हैं। इस पुराण के दो विभाग किये गये हैं- पूर्व व उत्तर । यह वैष्णव पुराण है। इसमें पुराण विषयक सभी विषयों का संकलन किया गया है, तथा तीर्थों के प्रति विशेष आकर्षण प्रदर्शित हुआ है। प्रारंभ में सृष्टिरचना का वर्णन करने के उपरांत सूर्य व चंद्र-वंशों का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत किया गया है और पार्वती उपाख्यान को लगभग 20 अध्यायों (30 से 50 ) में स्थान दिया गया है। प्रथम 5 अध्यायों में सर्ग व प्रतिसर्ग तथा मन्वंतर कथा का विवरण है। आगामी सौ अध्यायों में वंश व वंशानुरचित परिकीर्तित हुए है। इसमें वर्णित अन्य विषयों में पृथ्वी के अनेक खंड, स्वर्ग व नरक, तीर्थमाहात्म्य, उत्कल या ओंदेश स्थित तीर्थ विशेषतः सूर्य पूजा है। इस पुराण के बड़े भाग में कृष्णचरित्र वर्णित है जो 32 अध्यायों में (234 से 266 ) किया गया है। इसमें ध्यान देने योग्य बात यह है कि सांख्य के 26 तत्त्वों को कहा, जब कि परवर्ती ग्रंथों में 25 तत्त्वों का ही निरूपण है। यहा सांख्य, निरीश्वरवादी दर्शन नहीं माना गया है तथा ज्ञान के साथ ही साथ इसमें भक्ति के भी तत्त्व समाविष्ट किये गये हैं। इस पुराण में "महाभारत", "वायु", "विष्णु" व "मार्कण्डेय" पुराण के भी अनेक अध्यायों को अक्षरशः उद्धृत कर लिया For Private and Personal Use Only संस्कृत वाङ्मय कोश ग्रंथ खण्ड / 223
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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