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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यह नाटक अपूर्ण सा है। इसके केवल 2 अंक उपलब्ध हैं। हो जाते हैं किंतु किसी प्रकार यह युद्ध टल जाता है। तृतीय कथावस्तु महाभारत से गृहीत है। द्रौपदीस्वयंवर, कपटद्यूत से ____ अंक लंकेश्वर में सीता को प्राप्त न कर सकने के कारण राज्य हारना, द्रौपदी का सभा में अपमान तथा पाण्डव-वनगमन दुखी रावण को प्रसन्न करने हेतु सीता-स्वयंवर की घटना को यह भाग कवि ने अंकित किया है। रंगमंच पर प्रदर्शित किया जाता है। उसे देख कर रावण बालभैरवसहस्रनाम - रुद्रयामल से गृहीत । क्रोधित हो उठता है पर वास्तविक स्थिति को जान कर उसका बालभैरवीदीपदानम् - भैरवीतन्त्र के अन्तर्गत । विषय- बालभैरवी क्रोध शांत हो जाता है। चतुर्थ अंक "भार्गव-भंग" में राम (दुर्गा का एक रूप) निमित्त प्रज्वलित दीपप्रदान की विधि। व परशुराम के संघर्ष का वर्णन है। देवराज इंद्र मातलि के बालभैरवीसहस्रनाम - रुद्रयामलान्तर्गत । हर-गौरी संवाद रूप। साथ इस संघर्ष को आकाश से देखते हैं और राम की विजय पर प्रसन्न होते हैं। पंचम अंक “उन्मत्तदशासन" में सीता के बालमनोरमा -ले. वासुदेव वाजपेयी। वैयाकरण सिद्धान्तकौमुदी वियोग में रावण की व्यथा वर्णित है। वह सीता की काष्ठ-प्रतिमा की यह व्याख्या अत्यंत सरल और सुबोध होने के कारण बनाकर, मन बहलाता हुआ दिखाया गया है। षष्ठ अंक छात्रों एवं विद्वानों में अधिक प्रचलित है। "निर्दोषदशरथ" में शूर्पणखा व मायामय अयोध्या में कैकेयी बालमार्तण्ड-विजयम् (नाटक) - ले.-देवराज सुरि । तमिलनाडू व दशरथ का रूप धारण करते हए दिखाये गये है। इन्हीं के निवासी। रचना- सन 1750 में। विषय- केरल के राजा के द्वारा राम के वन-गमन की घटना का ज्ञान होता है। बालमार्तण्ड का चरित्रवर्णन। अंकसंख्या - पांच। ऐतिहासिक सप्तम अंक "असमपराक्रम' में राम व समुद्र के संवाद का तथ्यों से भरपूर परन्तु अतिरंजित। अभिनेयता की अपेक्षा वर्णन है। समुद्र तट पर बैठे हुए राम के पास रावण द्वारा पठनीयता अधिक है। लेखक की भी एक प्रमुख भूमिका है। निर्वासित उसका भाई बिभीषण आता है। फिर समुद्र पर सेतु कथासार- श्रीपद्मनाभ के शंखतीर्थ में नायक माघस्नान करने बांधा जाता है और राम लंका में प्रवेश करते हैं। अष्टम हेतु जाते हैं। वहां विष्णु प्रकट होकर कहते हैं कि अन्य अंक को "वीरविलास" कहा गया है। इस अंक में राम-रावण राजाओं को जीतकर प्राप्त हुए धन से मेरे जीर्ण मन्दिर का का घमासान युद्ध वर्णित है। मेघनाद व कंभकर्ण मारे जाते नवीनीकरण करो। दिग्विजय के अनन्तर राजसूय विधि से मेरा हैं और रावण माया के द्वारा, सीता का कटा हुआ सिर राम अभिषेक करो। राज्यधुरा मैं वहन करूंगा, तुम मेरे युवराज की सेना के सम्मुख फेंक देता है पर वह अपने उद्देश्य में रहोगे। राजा दिग्विजय हेतु सज्ज होते हैं। कवि अभिनवकालिदास सफल नहीं हो पाता। नवम अंक में रावण का वध वर्णित (लेखक) वहां अपनी कविता सुनाकर राजा का उत्साह बढाते है। अंतिम दशम अंक "सानंदरघुनाथ" में सीता की अग्निपरीक्षा हैं। राजा कवि को पुरस्कार देता है। दिग्विजय के पश्चात् राजा और विजयी राम का पुष्पक विमान द्वारा अयोध्या को लौटना पद्मनाभ मन्दिर का नूतनीकरण करते हैं। पद्मनाभ पर अभिषेक वर्णित है। सभी अयोध्यावासी राम का स्वागत करते हैं तथा कर उन्हें चक्रवर्ती चिह्न धारण कराते हैं और सारा शासन राम का राज्याभिषेक किया जाता है। यह महानाटक नाट्यकला पद्मनाभ की मुद्रा से चलाकर स्वंय केवल युवराज बने रहते हैं। की दृष्टि से सफल नहीं है पर काव्य की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण बालराघवीयम् - ले.-शठगोपाचार्य । है। राम की अपेक्षा रावण से संबद्ध घटनाएं इसमें अधिक बालरामरसायनम् - ले.- कृष्णशास्त्री। हैं। ग्रंथ में स्रग्धरा व शार्दूलविक्रीडित छंदों का अधिक प्रयोग है। बालरामायण के टीकाकार हैं- 1) विद्यासागर और 2) बालरामायणम् - ले.- राजशेखर। यह 10 अंकों का लक्ष्मणसूरि। महानाटक है। कवि ने इस नाटक की रचना निर्भयराज के लिये की थी। इसकी रचना वाल्मीकीय रामकथा के आधार बालवासिष्ठम् - ले.-प्रज्ञाचक्षु गुलाबराव महाराज । विदर्भवासी। पर हुई है। सीता-स्वयंवर से लेकर राम के अयोध्या-प्रत्यागमन विषय- योगवासिष्ठ का परामर्श । तक की घटनाएं इस नाटक में समाविष्ट हैं। प्रथम अंक बालविधवा - ले.-श्रीमती लीला राव-दयाल। मुंबई निवासी। "प्रतिज्ञा-पौलस्त्य" में रावण के सीता स्वयंवर हेतु जनकपुर विषय- समाज से उपेक्षित तथा परिवार में पीडित बाल-विधवा जाने व सीता के साथ विवाह करने की प्रतिज्ञा का वर्णन के नायक अनूप से असफल प्रेम की रोचक कहानी। है। महाराज जनक से सीता को प्राप्त करने के लिये रावण बालविवाहहानिप्रकाश - ले.-रामस्वरूप । एटा निवासी। 1922 प्रार्थना करता है किंतु जनक द्वारा उसका प्रस्ताव अस्वीकृत में मुद्रित। किये जाने पर वह क्रुद्ध होकर चला जाता है। द्वितीय अंक बालशास्त्रिचरितम् - ले.- म.म.मा. गंगाधरशास्त्री। लेखक राम-रावणीय में रावणद्वारा अपने सेवक मायामय को परशुराम के गुरु का पद्यमय चरित्र । के पास भेजे जाने का वर्णन है। रावण का प्रस्ताव सुनते बालसंस्कृतम् - सन 1949 में मुंबई से वैद्य रामस्वरूप शास्त्री ही परशुराम क्रुद्ध होते हैं और उससे युद्ध करने हेतु उद्यत आयुर्वेदाचार्य के संपादकत्व में इस पत्र का प्रकाशन आरंभ 216/ संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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