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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra । श्लोक- 3500 पटल- 32 प्रतिष्ठाविधिदर्पण ले. नरसिंह यज्वा श्लोक- 16001 । प्रतिष्ठाविवेक (1) ले. उमापति (2) ले शूलपाणि । प्रतिष्ठासारसंग्रह इसमें देवता प्रतिष्ठाविधि प्रतिपादित है। प्रतिष्ठासार- ले. बल्लालसेन । उनके दानसागर में इसका निर्देश है। - प्रतिष्ठासारदीपिका ले. पांडुरंग चितामणि टकले महाराष्ट्र में नासिक पंचवटी के निवासी। सन 1780-81 में लिखित । प्रतिष्ठासारसंग्रह ले. वसुनन्दी जैनाचार्य ई. 11-12 वीं शती प्रतिष्ठेन्दु - ले. त्र्यंम्बकभट्ट। (2) ले त्र्यंबक नारायण भाटे । प्रतिष्ठोद्योत (दिनकरोद्योत का अंश) ले. दिनकर एवं 1 उनके पुत्र विश्वेश्वर भट्ट (गागाभट्ट) । प्रतिसरबन्धप्रयोग विवाह एवं अन्य उत्सवावसर पर कलाई में बांधने के नियमों पर । प्रतिहारसूत्रम् - ले. कात्यायन । प्रतिकार ले. सहस्रबुद्धे । रचना- सन 1933 के लगभग । छत्रपति शिवाजी विषयक उपन्यास (2) ले - डा. कृष्णलाल नादान । दिल्ली निवासी। "भारती" 7-4 में प्रकाशित। एकांकी रूपक । अष्टावक्र की कथा । प्रतीताक्षरा - ले. नंदपंडित । ई. 16-17 वीं शती। मिताक्षरा की टीका। - - प्रतीत्यसमुत्पाद-हृदयम् ले नागार्जुन आर्या छंदों में विवेचन । विषय- बौद्धदर्शन । प्रत्नकम्रनंन्दिनी इस पत्रिका का प्रकाशन वाराणसी से सन 1867 में सत्यव्रत सामश्रमी के सम्पादकत्व में प्रारम्भ हुआ । प्रकाशक थे हरिश्चन्द्र शास्त्री इस पत्रिका का दूसरा नाम 'पूर्णमासिकी" था । प्रकाशन लगभग आठ वर्षो तक हुआ। इसमें सामवेद और उस पर टीका तथा उसके बंगला अनुवाद के अलावा धर्म पर अनेक निवन्ध प्रकाशित हुए मैक्समूलर ने इसमें प्रकाशित निबन्धों की सराहना की है। प्रत्यक्ष- शरीरम् (शरीरव्यवच्छेदशास्त्रम्) ले कविराज गणनाथ सेन। ई. 19-20 वीं शती । आधुनिक पद्धति के अनुसार शरीरविज्ञान का प्रतिपादन । www.kobatirth.org - - प्रत्यगालोकसारमंजरी - ले. कृष्णनाथ। प्रत्यंगिरापंचांगम् रुद्रयामलान्तर्गत उमा-महेश्वर संवाद रूप। विषय- 1) प्रत्यंगिरा की पूजा, कवच सहस्रनाम स्तोत्र आदि । प्रत्यंगिरा मन्त्रप्रयोग पैप्पलाद शाखीय श्लोक- 450 । प्रत्यंगिरा मंत्रोद्धार श्लोक- 1211 प्रत्यंगिरा - यन्त्रकल्प श्लोक- 300 । प्रत्यंगिरा विधानम् श्लोक 400 प्रत्यंगिरा सिद्धिमंत्रोद्धारले. चण्डोशूलपाणि श्लोक 111 | - · 202 / संस्कृत वाङ्मय कोश ग्रंथ खण्ड - प्रत्यंगिरासूक्तम् ले. कृष्णनाथ । व्याख्यासहित । प्रत्यंगिरास्तोत्रम् ले चण्डोपशूलपाणि विश्वसारोद्धारान्तर्गत। श्लोक- 951 - प्रत्यभिज्ञाविमर्शिनी (बृहती वृत्ति) विषय- काश्मीरीय प्रत्यभिज्ञा दर्शन । प्रत्यभिज्ञाहृदयम् प्रत्यभिज्ञादर्शन । प्रत्यवरोहणप्रयोग - - प्रदीप नारायणभट्ट के प्रयोगरत्न का अंश । ले. कैटभट्ट । ई. 10-11 वीं शती काव्यप्रकाश की सुप्रसिद्ध टीका । प्रदोषनिर्णय ले. विष्णुभट्ट पुरुषार्थचिन्तामणि से संगृहीत विषय- धर्मशास्त्र | Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - ले. आचार्य उत्पल । ले. क्षेमराज । विषय- काश्मीरीय प्रदोषपूजापद्धति - ले. वल्लभेन्द्र वासुदेवेन्द्र के शिष्य प्रद्युम्नचरितम् ले रामचंद्र पिता श्रीकृष्ण जैनसंप्रदायी। 17 वीं शती जैनपरम्परा के अनुसार प्रद्युम्र की कथा इस 18 सर्गो के काव्य में वर्णित है। (2) ले सोमकीर्ति । जैनाचार्य । ई. 16 वीं शती । For Private and Personal Use Only 1 प्रद्युम्न - विजयम् - ले. शङ्कर दीक्षित । ई. 18 वीं शती (काशीनिवासी) छत्रसाल के पौत्र तथा हृदयशाह के पुत्र सभासिंह के राज्यभिषेक के अवसर पर पर अभिनीत अपर नाम "वज्रनाभ - वध" । अंकसंख्या सात प्रमुख रस- शृङ्गार । पंचम अंक में सम्भोग का वर्णन। छल-छद्मों से परिपूर्ण वृत्ति - आरभटी । शैली अंलकारप्रचुर । संयुक्त अक्षरों का आनुप्रासिक प्रयोग विविध छन्दों का प्रयोग शार्दूलविक्रीडित कवि का प्रियतम छन्द है। लम्बे समास और अलंकारों की बहुलता है। कथावस्तु कश्यप और दिति का पुत्र, वज्रपुर का राजा वज्रनाभ, ब्रह्मा से वरदान पाकर उन्मत्त बन, सब को सताता है। कश्यप उसे अत्याचारों से परावृत्त करना चाहता है । रुक्मिणी कृष्ण से कहती है कि वज्रनाभ की कन्या प्रभावती प्रद्युम्न की पत्नी बनने योग्य है। इन्द्र प्रभावती के पास हंस-ऐसियों को भेजता है। हंसियों के मुख से प्रम की प्रशंसा सुन प्रभावती उससे मिलने को उत्सुक होती है। कृष्ण ने पहले ही प्रद्युम्न, गद तथा साम्ब को नट के वेष में वज्रपुर भेजा है। प्रद्युम्न का प्रभावती से गान्धर्व विवाह होता है। गद और साम्ब के विवाह प्रभावती की बहनों से होते हैं। नारद वज्रनाभ से कहता है कि प्रभावती प्रद्युन से गर्भवती है। वज्रनाभ प्रद्युम्र पर धावा बोलता है। कृष्ण प्रद्युम्न की सहायतार्थ आते हैं और वज्रनाभ को मारकर प्रभावती को पुत्रवधू बनाकर ले जाते हैं। प्रद्युम्नानन्दम् (नाटक) - ले. वेंकटाध्वरि । प्रद्योत 1 4100 ले. त्रिविक्रम प्रयोगमंजरी की व्याख्या । श्लोक21 पटल !
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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