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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिनमें अनेक दार्शनिक तत्त्वों का विवेचन किया गया है। श्री. रामानुजाचार्य ने अपने श्रीभाष्य में इस संहिता के उद्धरण लिये हैं। पौष्करागम (या पौष्करतन्त्रम्)- यह शैवतन्त्र ज्ञानपाद, योगपाद, क्रियापाद, चर्यापाद नामक चार पादों में विभक्त है। विषय- प्रतिपदार्थनिर्णय, बिन्दुपटल, मायापटल, पशुपदार्थ, कालादिपंचक, पुंस्तत्त्व-प्रमाणाधिकार तथा तन्त्रोत्पत्ति। योगपाद और क्रियापाद का ही दूसरा नाम सर्वज्ञानोत्तरतन्त्र है एवं चर्यापाद का नाम मतंगपारमेश्वरतन्त्र है। प्रकरणआर्यवाचा - आर्य असंग। 11 परिच्छेद । बौद्धों के योगाचार संप्रदाय के व्यावहारिक तथा नैतिक तत्त्वों की यह विशद व्याख्या है। व्हेनत्सांग द्वारा इसका चीनी भाषा में अनुवाद संपन्न हुआ। प्रकाश - (1) आचार्य वल्लभ के अणु-भाष्य की मथुरानाथकृत टीका। (2) ले. वर्धमान। ई. 13 वीं शती। (3) प्रकाशः ले.- हलायुध । ई. 12 वीं शती। पिता-संकर्षण । प्रकाशिका - (1) ले. केशव काश्मीरी। ई. 13 वीं शती। निंबार्क संप्रदाय के आचार्य। दशोपनिषदों पर भाष्य, जिसमें केवल "मुण्डक" का भाष्य प्रकाशित हो चुका है। (2) ले. नृसिंहाश्रम। ई. 16 वीं शती। प्रकाशोदय - ले. शिवानन्द। विविध तन्त्रों में उपदिष्ट मुख्य-मुख्य सिद्धान्तों का संग्रह इस ग्रंथ में है। प्रकृति-सौन्दर्यम् (रूपक) - ले. मेधाव्रत शास्त्री (1893-1964) । रचना-सन 1901 में। वसन्तोत्सव में अभिनीत। अंकसंख्या-छः। नायक-राजा चन्द्रमौलि। नायक द्वारा मित्र चन्द्रवर्ण के साथ विमानयात्रा के प्रसंग में हिमालय, तपोवन तथा षड् ऋतुओं का वर्णन । प्रक्रियाकौमुदी - ले. रामचन्द्र। धर्मकीर्ति की रचना से अधिक विस्तृत। पाणिनि के सब सूत्रों का व्याख्यान इस में नहीं है। यह व्याकरण शास्त्र में प्रवेशार्थियों के लिये सरल ढंग की रचना है। लेखन का प्रयोजन शब्द- प्रक्रिया का ज्ञान कराना। प्रक्रियाकौमुदीप्रकाश (वृत्ति) - ले.श्रीकृष्ण (शेषकृष्ण) इसका एक हस्तलेख लन्दन में तथा एक बडौदा में विद्यमान है। टीका अत्यंत सरल है। इसके रचना काल तक प्रक्रियाकौमुदी में पर्याप्त प्रक्षेप हो चुके थे। इस ग्रन्थ में अनेक ग्रंथ तथा ग्रंथकार उद्धृत हैं। प्रक्रियाजन (टीका) - ले. वैद्यनाथ दीक्षित। प्रक्रियादीपिका - ले. अप्पन नैनार्य (वैष्णवदास), पाण्डुलिपि मद्रास में विद्यमान। प्रक्रियाप्रदीप - ले. चक्रपाणि दत्त । गुरु-वारेश्वर । यह रामचन्द्रकृत प्रक्रियाकौमुदी की व्याख्या है। इसी लेखक के प्रौढमनोरमा-खण्डन में इस व्याख्या का उल्लेख है। यह ग्रंथ अनुपलब्ध है। प्रक्रियामंजरी - ले. विद्यासागर मुनि । यह काशिका की टीका है। प्रक्रियारंजनम् - ले. विद्यानाथ दीक्षित । प्रक्रियाकौमुदी की टीका । प्रक्रियारत्नमणि - ले. धनेश्वर (धनेश) । विषय- व्याकरण। प्रक्रियावतार - ले. देवनंदी। ई. 5-6 वीं शती। प्रक्रियाव्याकृति (अपरनाम-प्रक्रियाप्रदीप) - ले. विश्वकर्माशास्त्री। यह प्रक्रियाकौमुदी की टीका है। प्रक्रियासंग्रह - ले. अभयचन्द्राचार्य। विषय- व्याकरण । प्रक्रियासर्वस्वम् - ले. नारायणभट्ट। 20 प्रकरण। इसमें अष्टाध्यायी के समग्र सूत्रों का समावेश हुआ है। प्रकरणों का विभाग तथा क्रम सिद्धान्तकौमुदी से भिन्न है। भोज के सरस्वती-कण्ठाभरण तथा वृत्ति से रचना में सहायता ली गई है। प्रचण्डचण्डिका-सहस्रनामस्तोत्रम् - विश्वसारतन्त्रान्तर्गत हर-गौरी संवाद रूप। प्रचण्डपाण्डवम् (बालभारत) - ले. राजशेखर। संक्षिप्तकथा- इस नाटक के मात्र दो अंक प्राप्त होते हैं। इसके प्रथम अंक में द्रौपदी स्वयंवर का वर्णन है। पाण्डव ब्राह्मण वेष में स्वयंवर में आते हैं। अर्जुन शर्त के अनुसार राधनामक मत्स्य को वेध कर द्रौपदी से विवाह करने का अधिकारी हो जाता है। तब सारे राजा उसका विरोध करते हैं। अर्जुन उन्हें युद्ध का आव्हान करता है। द्वितीय अंक में दुर्योधन और युधिष्ठिर के मध्य द्यूत होता है जिसमें युधिष्ठिर पराजित हो अपनी पत्नी द्रौपदी और भाइयों के साथ बारह वर्ष वनवास और एक वर्ष के अज्ञातवास के लिए प्रयाण करते है। इस नाटक में कुल बारह अथोपक्षेपक हैं। इनमें 2 विष्कम्भक और नौ चुलिकाएं हैं। प्रचण्डराहूदय - (नाटक) ले. धनश्याम (1700-1750 ईसवी)। तंजौर के अधिपति तुकोजी भोसले के मंत्री थे। पांच अंक। विषय- वेङ्कटनाथकृत वेदान्तदेशिक के विशिष्टाद्वैत का खण्डन । प्रबोधचन्द्रोदयम् के अनुकरण पर ही इस लाक्षणिक नाटक की रचना है। प्रचण्डानुरंजम् - (प्रहसन) - ले. घनश्याम । ई. 18 वीं शती। प्रजापतिचरितम् - ले. कृष्णकवि।। प्रजापतिस्मृति - ले. इस स्मृति के रचयिता प्रजापति कहे गये हैं। आनंदाश्रम-संग्रह में इस स्मृति के श्राद्ध विषयक 198 श्लोक प्राप्त होते हैं। इनमें अधिकांश श्लोक अनुष्टुप् हैं किंतु यत्र-तत्र इंद्रवज्रा, उपजाति, वसंततिलका व स्रग्धरा छंद भी प्रयुक्त हुए हैं। "बौधायन धर्मसूत्र' में प्रजापति के सूत्र प्राप्त होते हैं। "मिताक्षरा" व अपरार्क ने भी प्रजापति के श्लोक उद्धृत किये हैं। "मिताक्षरा' के एक उद्धरण में प्रजापतिस्मृति के अनुसार परिव्राजकों के 4 भेद वर्णित हैंकुटीचक, बहूदक, हंस व परमहंस। प्रजापति ने अपनी इस 198 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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