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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कहते हैं। वह चतुर्भुज है। उसकी दो दाहिनी भुजाओं में वज्र व शत्रु की जिह्वा है। उसका सौंदर्य अनुपम है। वह उदित सूर्य के समान तेजःपूर्ण है। वह सुवर्ण के सिंहासन पर अधिष्ठित है। पीतांबरा देवी का (तंत्रशास्त्रानुसार) यंत्र अंकित कर उसकी भी पूजा की जाती है। यंत्र का अंकन इस प्रकार किया जाना चाहिये- पहले षट्कोण अंकित किया जाये। उसके चारों और 3 मंडल खींचे जायें। षट्कोण के मध्य भाग में देवी का आवाहन किया जाये। फिर देवी के 8 नामों (ब्राह्मी, माहेश्वरी, कौमारी, वैष्णवी, वाराही, नारसिंही, चामुंडा व महालक्ष्मी) का उच्चार करते हुए उसकी प्रार्थना की जाये। सोलह पंखुड़ियों के कमल में बगला, स्तंभिनी, जूंभिणी प्रभृति 16 देवियों का ध्यान किया जाये। षट्कोण के 6 खानों में डाकिनी, राकिनी, काकिनी, शाकिनी, हाकिनी नामक रौद्र देवियों का आवाहन अथवा स्मरण किया जाये। प्रस्तुत उपनिषद् में बताया गया है कि पीतांबरादेवी एवं उसके यंत्र की पूजा करने वाले साधक को 36 अस्त्रों की प्राप्ति होती है। पीतासपर्याविधि - इस में बगलामुखी की पूजा विस्तार से प्रतिपादित है। पीयूषपत्रिका - सन 1931 में नाडियाद (गुजरात) से हीरालाल शास्त्री पंचोली और हरिशंकर शास्त्री के संपादकत्व में इसका प्रकाशन आरंभ हुआ। इसका वार्षिक मूल्य तीन रु. था। इसके संरक्षक गोस्वामी अनिरुद्धाचार्य थे। यह एक दर्शन-प्रधान पत्रिका थी जिसमें मीमांसा, न्याय, सांख्य, वेदान्त आदि दर्शनों के कतिपय प्रमुख ग्रंथों का प्रकाशन हुआ। इसमें अन्तिम कुछ पृष्ठों में हिन्दी रचनाएं तथा श्रीकृष्णलीला के रंगीन चित्र भी छापा करते थे। तीन वर्षों के बाद इस पत्रिका का प्रकाशन स्थगित हो गया। इसके कुछ अंकों में शोध निबंध भी मिलते हैं। पीयूषरत्नमहोदधि - ले- अकुलेन्द्रनाथ । पीयूषलहरी (अपरनाम गंगालहरी) - ले- जगन्नाथ पण्डितराज। ई. 16-17 वीं शती। पिता- पेरुभट्ट। मातामहालक्ष्मी। विषय- गंगानदी की स्मृति। पीयूषवर्षिणी - सन 1890 में फरुखाबाद से गौरीशंकर वैद्य के सम्पादकत्व में प्रकाशित इस पत्रिका में आयुर्वेद सम्बधी सरल निबन्ध प्रकाशित हुआ करते थे। पुण्याहवाचनप्रयोग - ले- पुरुषोत्तम । पुत्रक्रमदीपिका - ले- रामभद्र। विषय- बारह प्रकार के पुत्रों के दायाधिकार एवं रिक्थ।। पुत्रप्रतिग्रहप्रयोग - ले- शौनक। पुत्रस्वीकारनिरूपणम् - ले- रामपंडित। पिता- विश्वेश्वर । वत्सगोत्री। ई. 15 वीं शती। पुत्रीकरणमीमांसा - ले- नन्दपण्डित। विषय- दत्तकविधान। पुनरुन्मेष - ले- डॉ. वेंकटराम राघवन्। सन 1960 में नई दिल्ली में ग्रीष्म नाटकोत्सव में अभिनीत। नूतन विधा का प्रेक्षणक (ओपेरा) । कथासार- भारतीय पुरातन संस्कृति का कोई विदेशी उपासक दक्षिण भारत के विद्याराम ग्राम में पहुंचता है। वहां उसे पुरानी ताडपत्र-पोथियां फेंकने वाला ब्राह्मण, पटवारी बना हुआ और वीणा को उपेक्षित रखने वाला एक संगीतज्ञ का वंशज मिलता है। चोलवंशीय राजा के देवालय की दीवालों पर उत्कीर्ण अक्षर नष्टप्राय दीखते हैं। उसी देवालय से मूर्तियां उखाड कर विदेश भेजने वाला चोर दीखता है और सुन्दरी युवती कन्या को शहर जाकर फिल्मों में काम करने को उकसाने वाली, दारिद्र से ग्रस्त एक बुढिया दीखती है। आगंतुक उन ताडपत्रों को खरीदता है, पटवारी को गायन-कला के प्रति प्रेरित करता है, चोर को धमका कर भगाता है और उस युवती के लिए आचार्य की व्यवस्था करके भारमाता के उज्ज्वल पुनरुन्मेश की कामना करता है। पुनरुपनयनप्रयोग - ले- दिवाकर। पिता- महादेव। विषयअभक्ष्य भोजन करने पर ब्राह्मण का पुनरुपनयन । पुनर्मिलन - कवि -तपेश्वरसिंह । वकील, गया निवासी। विषयराधा-माधव का पुनर्मिलन। पुनर्विवाहमीमांसा - ले- बालकृष्ण । पुनःसंधानम् - विषय- गृह्य अग्नि की पुनः स्थापना । पुरंजनचरितम् (नाटक) - ले- कृष्णदत्त। 1775 ई. तक सुप्रसिद्ध। विदर्भ संशोधन मण्डल ग्रंथमाला क्र. 16 में सन 1961 में नागपुर से प्रकाशित। नागपुर के भोसले राजा के प्रधान मंत्री देवाजीपंत के वेंकटेश मन्दिर के द्वार पर प्रथम अभिनय। प्रधान उपजीव्य भागवत पुराण, जिसमें उत्पाद्य कथा का जोड दिया है। यह अध्यात्मप्रधान प्रतीक नाटक है, परन्तु प्रतीक तत्त्व गौण है। लोकोक्तियां तथा प्राकृत के स्थान पर मैथिली भाषा का प्रयोग किया है। कथासार- नायक राजा पुरंजन अपने सचिव के साथ ऐसा नगर ढूंढने निकले है, जिसमें वे बस सकें। नवद्वार वाले एक नगर में, जिसका गोप्ता प्रजागर नागराज है, बसकर वे महायोगी अविज्ञातलक्षण को ढूंढते है। नगरस्वामिनी पुरंजनी से उनका प्रणय होता है। नायक मृगया हेतु पंचप्रस्थावन में धूमते हैं। विरहसन्तप्त नायिका भी साथ चलती है। पुरंजन को विलास और मृगया में लिप्त जानकर चण्डवेग जरा और भय के साथ उस पर हमला करता है। पुरंजन हारकर भाग जाता है। तत्पश्चात् वह स्त्री रूप में परिणत होकर विदर्भ के राजकुमार मलयध्वज से विवाह करता है। अविज्ञातलक्षण इस अवस्था से उसे बचाने हेतु कामधेनु से सहायता लेता है। संयोगवश मलयध्वज से वियुक्त होने पर स्त्रीरूप पुरंजन आत्मदाह करने को उद्यत होता है, तब कामधेनु उसे बचा कर शेषाद्रि पर ले जाती है, जहां संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड / 193 For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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