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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जाते हैं। इसी बीच शंखचूड के साथ जीमूतवाहन के माता-पिता हुआ है। इसका सम्पादन डॉ. कालीकुमार-दत्त शास्त्री ने किया वहां पहुंचते हैं और शंखचूड गरुड को अपनी गलती बतलाता है तथा उन्होंने उसकी विद्वत्तापूर्ण भूमिका भी लिखी है। यह है। गरुड अत्यधिक पश्चात्ताप करते हुए आत्महत्या करना चाहते संस्करण दो पाण्डुलिपियों के आधार पर बनाया गया है जिसमें हैं पर जीमूतवाहन के उपदेश से भविष्य में हिंसा न करने एक तेलगु लिपि में तथा दूसरी नागरी लिपि में है तथा जो का संकल्प करते हैं। घायल होने के कारण जीमूतवाहन । लंदन की इण्डिया आफिस लायब्रेरी में सुरक्षित है। इसमें मृतप्राय हो जाता है अतः उसे स्वस्थ बनाने हेतु, गरुड अमृत तिथि का उल्लेख होता तो नाटक-परिभाषा के स्वतंत्र ग्रंथ के लेने चले जाते हैं। उसी समय देवी गौरी प्रकट होकर रूप में उल्लेख की परम्परा के स्रोत तथा समय का परिचय जीमूतवाहन को स्वस्थ बना देती है और वह विद्याधरों का मिल सकता था। चक्रवर्ती बना दिया जाता है। गरुड आकर अमृत की वर्षा इस संस्करण की एक विशेषता यह है कि इसमें इतिवृत्त, करते हैं और सभी सर्प जीवित हो उठते हैं। तब सभी संधि, सन्ध्यन्तर, भूषण तथा रूपक की प्रकारविषयक प्रायः आनंदित होते है और भरतवाक्य के बाद प्रस्तुत नाटक की 250 कारिकाएं भी सम्मिलित की गई हैं। समाप्ति होती है। नाट्यचूडामणि - ले- अष्टावधानी सोमनाथ। 7 अध्यायों का इस नाटक की नान्दी में बुद्ध का आवाहन तथा बुद्धचरित्र प्रबंध। विषय नारदमतानुसार गीत तथा नृत्य । की घटनाओं का नाटक में समावेश है केवल इनसे इस नाट्यपरिशिष्टम् - ले- कृष्णानंद वाचस्पति । नाटक को बौद्धमत प्रचारक नहीं मान सकते, अनुकम्पा तथा नाट्यांजनम् - ले- त्रिलोचनादित्य । अहिंसा की संकल्पना बुद्ध पूर्व है तथा गौरी-प्रवेश और अमृतवृष्टि यह भी पौराण धर्म की सूचक हैं। नाट्याध्याय - ले- अशोकमल्ल । ___टीका तथा टीकाकार- (1) आत्माराम, (2) एन.सी. नाट्यवेदागम - ले- तुलजराज (तुकोजी), तंजौरनरेश। विषय-नृत्य। कविरत्न, (3) शिव-राम, (4) श्रीनिवासाचार्य। (नागानन्दम् नामक एक लघु काव्य भी है। चन्द्रगोमिन् का लोकानंद नाट्यशास्त्र - ले- भरतमुनि। (नाटक), तथा अज्ञात लेखक का शान्तिचरित्र यह दोनों इसी भारतीय नाट्यकला की कल्पना नाट्यशास्त्र को छोडकर हेतु तथा प्रकार से लिखे नाटक हैं।) नहीं की जा सकती क्यों कि भारतीय नाट्यकला के स्वरूप, नागार्जुनतंत्रम् ले- ध्रुवपाल। तत्त्व तथा प्रकृति को समझाने के लिए नाट्यशास्त्र ही आलम्बन है। नाट्यकला के अनुषंगिक विषय यथा काव्य, संगीत, नृत्य, नागार्जुनीयम् - श्लोक-400 । इसमें 196 तांत्रिक प्रयोग हैं। शिल्प आदि का विस्तृत विवरण इस ग्रंथ में उपलब्ध है और नागार्जुनीययोगशतकम् - ले- ध्रुवपाल । भी इस विविधता ने इसे विश्वकोशसा बना दिया है। नाचिकेतसम् (महाकाव्य) - लेखक- काठमांडू (नेपाल) रोक्त नाट्यतत्त्वों के व्यवस्थित सूक्ष्म तथा तात्त्विक विवेचन के निवासी पं. कृष्णप्रसाद शर्मा घिमिरे। ई. 20 वीं शती। का प्रभाव संपूर्ण परिवर्ती नाट्यशास्त्रीय चिंतन परम्परा पर देखा कठोपनिषद् के नाचिकेत- आख्यान पर यह महाकाव्य लिखा । जा सकता है। चतुर्विध अभिनयसिद्धान्त, गीत एवं विद्यविधि, गया है। इसके लेखक कविरत्न एवं विद्यावारिधि इन उपाधियों पात्रों की विविध प्रकृति तथा भूमिका, रसनिष्पत्ति, रूपकों के से विभूषित हैं। आपकी 12 रचनाएं प्रकाशित हैं। संघटक तत्त्व आदि नाट्यविषयों का सांगोपांग विवरण देने नाडीपरीक्षा - (1) ले- गंगाधर कविराज। (1798-1885 वाला यह ग्रंथ नाट्यकला के प्रमाणभूत ग्रंथ के रूप में ई.)। (2) ले- गोविंदराम कविराज । प्रतिष्ठित हुआ है। नाडी-प्रकाश - ले- शंकर सेन। ___ इस ग्रंथ की 'भरतसूत्र' नाम से प्रसिद्धि इसके रचयिता नाटककथासंग्रह - ले-प्रा. व्ही. अनन्ताचार्य कोडंबकम्। के महत्त्व को सिद्ध करती है। नाट्यशास्त्र में भरत को ही नाटक-चंद्रिका - (1) ले- रूप गोस्वामी। सन 1492-1591 । नाट्यवेद का आचार्य बताया गया है। इन्होंने विभिन्न रूपकों इस ग्रंथ में भरत मुनि कृत नाट्यशास्त्र के आधार पर नाटक को मंच पर प्रस्तुत किया। परवर्ती नाट्यशास्त्रीय रचनाओं में के तत्त्वों का संक्षिप्त वर्णन है। हिंदी अनुवाद सहित प्रकाशित । भरतमुनि को ही नाट्यशास्त्र का प्रणेता बतलाया गया है। (2) ले- विश्वनाथ चक्रवर्ती। ई. 17 वीं शती। नाट्यशास्त्र दशरूपक अभिनयदर्पण, भावप्रकाशन, अभिनवभारती, नाटकविषयक ग्रंथ। लक्षणरत्नकोश तथा रसार्णवसुधाकर आदि रचनाओं में आचार्य नाटकपरिभाषा- (1) ले- श्रीरंगराज । विषय नाटक की रूढ भरत का उल्लेख नाट्याचार्य के रूप में बडी श्रद्धा से किया विधियों का विवरण। (2) नाटकपरिभाषा का एक सुन्दर गया है। अभिनेता सूत्रधार आदि अर्थो में भी "भरत" शब्द संस्करण संस्कृत साहित्य परिषद् कलकत्ता से 1967 में प्रकाशित का प्रयोग मिलने के कारण भरत के अस्तित्व का निषेध 156/ संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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