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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वर्णनों में विस्मयजनक साम्य है। संस्कृत साहित्य में श्लेष योजना की विशेषता उसकी सरलता में है और उसमें सभंग पदों का आधिक्य है। श्लेष-प्रिय होने के कारण शाब्दी क्रीडा के प्रति भट्टजी का ध्यान अधिक है। अतः वे कथा के इतिवृत्त की चिंता न कर श्लेष-योजना व वर्णन-बाहुल्य के द्वारा ही कवित्व का प्रदर्शन करते हैं। यह शाब्दी -क्रीडा सर्वत्र दिखाई पड़ती है। इसके प्रत्येक उच्छ्वास के अंतिम पद्य में "हरिचरणसरोज" शब्द प्रयुक्त है, अतः यह चम्पू "हरिचरण-सरोजांक" कहलाता है। नलचरितम् (नाटक)- ले, नीलकण्ठ दीक्षित। ई. 17 वीं शती। प्रथम अभिनय कांची में कामाक्षीपरिणय के अवसर पर। दस अंकों का यह नाटक, छठवें अंक के प्रारंभ तक ही उपलब्ध है। प्रधान रस शृंगार, वैदर्भी रीती। आवेश के क्षणों में स्त्री -पात्रों के मुख से भी संस्कृत उद्गार। विषयनल और दमयंती की प्रणयकथा। पाणिग्रहण के पश्चात् दमयन्ती पतिगृह में आती है। अंतिम अंक में मन्त्री व्यक्त करता है कि प्रतिनायक की पुष्कर के साथ मित्रता नल के लिए हानिकारक है। इसके आगे का अंश अप्राप्य है। नलदमयंतीयम् - ले- कालीपद तर्काचार्य। समय1888-1972। रचनाकाल- सन 1917। सारस्वत महोत्सव के अवसर पर संस्कृत छात्रों द्वारा अभिनीत। अंकसंख्या सात । इस नाटक में नृत्य-गीतों का प्रचुर प्रयोग, प्राकृत भाषा का समावेश तथा अत्यंत लम्बे संवाद तथा एकोक्तियां हैं। नलपाकदर्पण - विषय- पाकशास्त्र । चौखंबा संस्कृत पुस्तकालय (वाराणसी) द्वारा प्रकाशित । नलविजयम् (महानाटक) (अपर नाम- भैमीपरिणय) - ले- मण्डिकल रामशास्त्री। मैसूर से सन् 1914 में प्रकाशित । महाराज कृष्णराज के आदेश से कपिलाती पर, नवरात्र महोत्सव में अभिनीत । अंकसंख्या दस। नल-दमयंती के विवाह, वियोग तथा पुनर्मिलन की कथा। नलविलासम् - ले-पर्वणीकर सीताराम । ई. 18-19 वीं शती। नलविलासम् - ले- अहोबल नृसिंह। रचनाकाल- सन् 1760 ई। अंकसंख्या - छः। विषय- नलदमयंती की प्रणयकथा। नलानन्दम् (नाटक) - ले- जीवबुध। इ. 17 वीं शती। जगन्नाथ पंडितराज के वंशज । विषय- नल-दमयंती के विवाह की कथा। नल की चूत में पराजय होने के बाद, पुनर्मिलन तक का कथानक निबद्ध। अंकसंख्या- सात। नलाभ्युदयम् - ले- तंजौर नरेश रघुनाथ नायक। ई. 17 वीं शती। नलायनी चम्पू - ले- नारायण भट्टपाद । नलोदयम् - ले- रविदेव (टीकाकार रामर्षि के मतानुसार) श्लोकसंख्या- 2101 4 सों का लघु काव्य। कथावस्तुनलचरित्र। महाभारतीय मूल कथा पर विशेष ध्यान न देकर कवि यमकचातुरी के प्रदर्शन में व्यस्त दिखाई देता है। अनावश्यक लम्बे वर्णन तथा गेयता। इसका लेखक निश्चित रूप से ज्ञात नहीं है। कोई इसे कालिदासप्रणीत मानते हैं पर उसके ज्ञात काव्यों की तुलना में यह निम्न श्रेणी का है। नलोदय तथा राक्षसकाव्य का लेखक यमककवि कालिदास को ही मानते हैं। एक टीकाकार के मतानुसार राक्षसकाव्य वररुचि का है पर अन्य टीकाकार (विष्णु) नलोदय का कर्तृत्व वासुदेव को देता हैं। वासुदेव कृत त्रिपुरदहन और प्रस्तुत नलोदय का प्रारंभ समान श्लोकों से होता है। नलोदय के टीकाकार- (1) मल्लिनाथ, (2) प्रज्ञाकर मिश्र, (3) कृष्ण, (4) तिरुवेंकटसूरि (5) आदित्यसूरि, (6) हरिभट्ट, (7) नृसिंहशर्मा, (8) जीवानन्द, (9) केशवादित्य, (10) गणेश, (11) भरतसेन (12) मुकुन्दभट्ट, और (17) प्रभाकर मिश्र, (18) रामर्षि । राक्षसकाव्य के टीकाकार- (1) प्रेमधर, (2) शम्भु भास्कर, (3) कविराज (4) कृष्णचन्द्र, (5) उदयाकर मित्र, और (6) बालकृष्ण पायगुण्डे। नलचरित्र विषयक प्रमुख ग्रंथों की सूचि - (1) नलोदयरविदेव (यमककवि), (2) नलाभ्युदय-वामन भट्टबाण, (3) नलचम्पू (दमयंतीकथा)- त्रिविक्रमभट्ट (4) दमयंती-परिणयचक्रकवि, (5) राघवनैषधीय- हरदत्त, (6) अबोधाकरघनश्याम, (7) कलिविडम्बन-नारायण शास्त्री, (8) नलचरित्र नाटक- नीलकण्ठ, (9) नल-हरिश्चन्द्रीय- अज्ञात लेखक, (10) सहृदयानन्द- (15 सर्ग) ले- कृष्णानन्द, (11) उत्तरनैषधम्(16 सर्ग) ले- वन्दारु भट्ट। (श्रीहर्ष काव्य की कमी की पूर्ति, नैषधीयानुसार, विशेष काव्यगुणयुक्त रचना), (12) कल्याण-नैषधम्- (सात) सर्ग। (13) सारशतक- कृष्णराम, (14) आयनिषधम् ले- पं.ए.व्ही. नरसिंहचारी, मद्रास, (15) प्रतिनैषधम्- ले. विद्याधर और लक्ष्मण, ई. 16521 (16) मंजुलनैषधम् - नाटक, 7 अंक ले.- वेंकट रंगनाथ, विजगापट्टम्निवासी। (17) भैमीपरिणय- 10 अंक का नाटक, लेरामशास्त्री (मंडकल) (18) नलानन्द नाटक- 7 अंक, लेजीवबुध। (19) नलविलास- नाटक, (7 अंक) ले-रामचंद्र । (20) नलदमयंतीय ले- कालिपद तर्काचार्य, कलकत्ता। (12) अनर्घनलचरित महानाटकम्, ले- सुदर्शनाचार्य, पंचनद-निवासी। (22) नलभूमिपालरूपकम्- ले- अज्ञात। (23) दमयंतीकल्याणम्- 5 अंकों का नाटक ले- रंगनाथ। (24) दमयंतीपरिणय- 5 अंकों का नाटक, ले- नल्लन चक्रवर्ती शठगोपाचार्य। 18 वीं शती का उत्तरार्ध) इत्यादि । नवकण्डिकाश्राद्धसूत्रम्-(नामान्तर- श्राद्धकल्पसूत्र) - इस पर टीका है- (1) कर्ककृत श्राद्धकल्प, (2) कृष्णमिश्रकृत श्राद्धकाशिका। (3) अनन्तदेवकृत- शाद्धकल्पसूत्रपद्धति । नवकोटिः (शतकोटि:)-ले- रामशास्त्री । विषय- शैवसिद्धान्त । नव-गीताकुसुमांजलि - ले- सी. वेंकटरमण, प्रधान आचार्य संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड/153 For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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