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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org · दीपिका ले शिवनारायण दास उपाधि सरस्वती कण्ठाभरण । ई. 17 वीं शती । काव्यप्रकाश पर टीका । दीपिका दीपनम् ले राधारमणदास गोस्वामी वृंदावननिवासी। ई. 19 वीं शती (पूर्वार्ध) श्रीमद्भागवत की श्रीधरी व्याख्या को सरल बनाने हेतु लिखी गई टीका। श्रीधरी व्याख्या संक्षिप्त सी है। अतः कठिन है । इस लिये श्रीधरी के भावार्थ को सरल बनाने के लिये वृंदावन निवासी राधारमणदास गोस्वामी ने 'दीपिकादीपन' नामक टीका लिखी। किंतु इसे उन्होंने टीका न कहकर टिप्पणी कहा है। यह टीका पूरे भागवत पर न होकर कतिपय स्कंधों तक ही सीमित है इसमें एकादश स्कंध की व्याख्या सर्व तदनंतर प्रथम, द्वितीय, तृतीय एवं चतुर्थ ( 16 वें अध्याय के 20 वें श्लोक तक ) की तथा वेद-स्तुति की टीका लिखी गई है टीका बड़े विस्तार से की गई है। I प्रतीत होता है कि 1 प्रथम की गई है। 1 प्रस्तुत दीपिकादीपन के लेखक राधारमणदास चैतन्य महाप्रभु के मतानुयायी वैष्णव संत थे । इसी लिये एकादश स्कंध के आरंभ में ही चैतन्य अद्वैत नित्यानंद तथा षट्संदर्भ के प्रकाशक श्री गोपाल भट्ट की वंदना है । टीका के आरंभ में कोई मंगलाचरण नहीं। वह एकादश स्कंध के आरंभ में है, जिससे प्रतीत होता है कि एकादश स्कंध की टीका का प्रणयन सर्वप्रथम किया गया होगा। इसी एकादश स्कंध के आरंभ में टीकाकार ने अपने कुटुंबीय जनों का निर्देश किया है। दुन्दुम शाखा कृष्ण यजुर्वेद की एक नामशेष शाखा । दुःखोत्तरं सुखम्- ले. प्रा. एम. अहमद। मुंबई - निवासी । 'जामे उल्लिकायान" नामक फारसी कथासंग्रह का (जो अलफर्जबादषि नामक अरबी ग्रंथ का अनुवाद है) यह संस्कृत अनुवाद प्रा. अहमद ने किया है। इस में व्यास - वाल्मीकि के सुभाषित उद्धृत करते हुए कुछ अधिक कथाएं लिखी हैं। दुर्गभंजनम् (या स्मृतिदुर्गभंजनं ) - चंद्रशेखर शर्मा । नवद्वीप के वारेन्द्र ब्राह्मण । चार अध्यायों में, तिथि, मास दुर्गापूजा, उपवास इत्यादि धार्मिक कृत्यों के अधिकारी एवं प्रायश्चित्त आदि धर्मसंबंधी संदेहों को दूर करने का प्रयत्न इस ग्रंथ में हुआ है। दुर्ग ले- दुर्गसिंह । ई. 8 वीं शती। इन्होंने कातंत्र धातुपाठ पर एक वृत्ति लिखी थी जिसके उद्धरण व्याकरण शास्त्र के ग्रंथों में मिलते हैं। इस वृत्ति के महत्त्व के कारण कातंत्र - धातुपाठ "दुर्ग" नाम से प्रसिद्ध हो गया है। दुर्गम-संगमनी (या दुर्गसंगमनी) - ले- जीव गोस्वामी । ई. 16 वीं शती रूपगोस्वामी के भक्ति रसामृत सिंधु की यह टीका है। टीकाकार रूपगोस्वामी जी के भतीजे थे। दुर्गवधकाव्यम् - ले- गंगाधर कविराज । ई. 1798-1885 | 1 दुर्जन मुख - चपेटिका ले रामचंद्राश्रम । वल्लभ संप्रदाय की - १ मान्यतानुसार भागवत की महापुराणता के पक्ष में लिखित एक लघु-कलेवर ग्रंथ पूर्ववर्ती गंगाधरभट्ट द्वारा । लिखित'दुर्जन मुख - चपेटिका' की अपेक्षा, प्रस्तुत 'चपेटिका 'परिमाण में कम है। इसी प्रकार के अन्य 5 लघु ग्रंथों के साथ इसका प्रकाशन, 'सप्रकाश तत्त्वार्थ-दीप-निबंध' के द्वितीय प्रकरण के परिशिष्ट के रूप में मुंबई में ई. 1943 में किया गया है 1 दुर्बलबलम् (रूपक) ले- विद्याधरशास्त्री । रचना- सन् 1962 में चीन द्वारा तिब्बत पर आक्रमण की कथा । इसका नायक आनन्द काश्यप नामक बौद्ध है। अंकसंख्या- चार। दुर्गाक्रयाभेदविधानम् महाशैवतंत्र से गृहीत । श्लोक 924 | 13 उपदेशों में विभक्त । · Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दुर्गाचरित्रम् ले शिवदत्त त्रिपाठी। - । दुर्गातत्त्वम् ले रामवभट्ट (2) ले प्रज्ञाचक्षु गुलाबराव महाराज | सूत्रबद्ध ग्रंथ । दुर्गा - दकारादि- सहस्त्रनामस्तोत्रम् - कुलार्णवतंत्रांतर्गत । दुर्गानुग्रह (महाकाव्य) ले पुल्य उमामहेश्वर शास्त्री इसमें प्रथम 6 सर्गों में काशी के तुलाधार श्रेष्ठी का चरित्र, 7 से 9 सर्गो मे पुष्कर श्रेत्र के समाधि नामक वैश्य का चरित्र तथा आगे के सर्गों में विजयवाडा के धनाढ्य व्यापारी चुण्डरी वेंकटरेड्डी का चरित्र वर्णन है रेडी जी का चरित्र वर्णन कवि ने धनाशा से किया है। इस कवि की अन्य रचना आंध्र के विद्वान साधु वेल्लमकोण्ड रामराय का चरित्र वर्णन अश्वघाटी के 108 श्लोकों में है । दुर्गापंचांगम् - रुद्रयामल तंत्रान्तर्गत देवीरहस्य में उक्त देवी - भैरव संवादरूप | विषय - 1) दुर्गापूजाविधि 2) दुर्गापूजापद्धति 3 ( दुर्गासहस्रनाम, 4) दुर्गाकवच, 5 ) दुर्गास्तोत्र | दुर्गाप्रदीप - ले- नीलकण्ठ । पिता- रंगनाथ । श्लोक - 3000 1 विषय- तंत्रशास्त्र । दुर्गाभक्तितरंगिणी ( या दुर्गोत्सवपद्धति) - ले- प्रसिद्ध कवि विद्यापति उन्होंने मिथिलाधिपति भैरवसिंह (धीरसिंह के भाई) के संरक्षण में यह ग्रंथ रचा। तरंग-2। पहले में 32 श्लोकों द्वारा सामान्य रूप से देवीपूजाविधि वर्णित है तथा पूजा की तिथियां। दूसरे में दुर्गोत्सव का प्रतिपादन है। इस पुस्तक की सामग्री प्रायः देवीपुराण कालिकापुराण, भविष्यपुराण आदि पुराणों से संगृहीत है। गौड निबंध, शारदातिलक, शिल्पशास्त्र, शिवरहस्य आदि से भी उद्धरण लिये गये हैं। यह विद्यापति की अंतिमरचना है। (2) ले माधव । For Private and Personal Use Only दुर्गाभक्तिलहरी - ले- रघूत्तम तीर्थ । श्लोक- 1769 । विषयपरब्रह्म का भक्तों के उपर अनुग्रह करने के लिए दुर्गा आदि के रूप में शरीर कल्पन, ज्ञानियों को भी दुर्गा का ही सेवन और भजन करना चाहिये, देवीकीर्तन का माहात्म्य आदि । दुर्गाभ्युदयम् (रूपक) ले- छज्जूराम शास्त्री। सन् 1931 - संस्कृत वाङ्मय कोश ग्रंथ खण्ड / 139
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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