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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्लोक 250। विषय- श्रीविद्या की पूजाविधि । त्रिपुरसुन्दरीपद्धति - 1) ले. शिवरामभट्ट , 2) विद्यानंद, 3) आत्मानंद। श्लोक 725। 18 पद्धतियां पूर्ण हैं। त्रिपुरसुन्दरीपूजनम् - ले. श्रीकर । त्रिपुरसुन्दरीपूजापद्धति - ले. शंकरानन्दनाथ। श्लोक 480। त्रिपुरसुन्दरीपूजार्चनक्रमपद्धति - ले. पूजानन्द । श्लोक 600 । त्रिपुरसुन्दरीपूजाविधि - ले. भास्करराय। श्लोक 600। त्रिपुरसुन्दरीमानस-पूजा-स्तोत्रम् - ले. सामराज दीक्षित । मथुरानिवासी। त्रिपुरसुन्दरीमालामन्त्रपंचदशकम् - श्लोक- 800। त्रिपुरसुन्दरीवरिवस्याविधि - ले. भासुरानन्दनाथ । श्लोक-350। त्रिपुरसुन्दरीसंकोचाचाररत्नावली - ले. कृष्णभट्ट । श्लोक 200 । त्रिपुरसुन्दरीस्तवराज - ले. भट्ट मथुरानाथ शास्त्री। त्रिपुरसुन्दरीस्तोत्रम् - इसमें तीन स्तोत्र और एक कवच है। स्तोत्र रुद्रयामलान्तर्गत शिवकृत और कवच रुद्रयामलान्तर्गत उमा-महेश्वर- संवादरूप है। कवच का नाम त्रैलोक्यमोहन है जो महापातकों का विनाशक है। उसके पाठ से शस्त्राघात का भय नहीं रहता और चिरायुष्य प्राप्त होता है ऐसा कहा है। त्रिपुरसुन्दर्यर्चनपद्धति - ले.काशीनाथ। भडोपनामक जयराम भट्ट का पुत्र । इसमें दक्षिणामूर्तिसंहिता में उक्त महात्रिपुरसुन्दरी-पूजा प्रतिपादित है। त्रिपुराकल्प - ले. आदिनाथ आनन्दभैरव। यह शाक्त आगम 16 पटलों में पूर्ण है। विषय- मंत्रोद्धार, अनुष्ठान, चक्रपूजा, न्यास, चक्रन्यास, ध्यान, आत्मपूजा, पूजामण्डल में दीक्षा, चक्रपूजा का क्रम, षोडशारपूजा, पूजाद्रव्य-निरूपण, मुद्रानिरूपण, जपयज्ञ इ.। त्रिपुराजपहोमविधि - वामकेश्वर तन्त्र से गृहीत । त्रिपुरान्तकशिवपूजा- लिंगार्चन तंत्रान्तर्गत । त्रिपुरातापिनी उपनिषद् - अथर्ववेद से संबद्ध माना हुआ यह एक नव्य उपनिषद्। इसके 5 छोटे भाग हैं और प्रत्येक भाग उपनिषद् कहलाता है। इस उपनिषद् का विषय है त्रिपुरा देवी की तांत्रिक उपासना। इसमें त्रिपुरादेवी का स्वरूप, शिवशक्ति के मिलन से जगत् की उत्पत्ति, देवी का ध्यान, उसे संतुष्ट करने हेतु कहे जाने वाले मंत्र, शिव-शक्तिविषयक विविध विद्या, देवीचक्र, मुद्रा आदि विषयों की चर्चा है। अंतिम भाग में तत्त्वज्ञान के अनुसार ब्रह्म का वर्णन किया गया है और बतलाया गया है कि शब्दब्रह्म में प्रावीण्य प्राप्त करने वाला व्यक्ति परब्रह्म की ओर जाता है। त्रिपुरापूजापद्धति - त्रिपुरा देवी की पूजा विस्तार से प्रतिपादित । बहुत से स्तोत्र विभिन्न तन्त्र ग्रंथों से इसमें उद्धृत हैं। सौभाग्य कवच वामकेश्वरतन्त्र से, अन्नपूर्णेश्वरी पंचाशिका-कल्पवल्ली रुद्रयामल से, राजराजेश्वरीध्यान रुद्रयामल से उद्धृत है। त्रिपुरार्चनपद्धति - 1. ले. शिवराम। नामान्तर -त्रिकूटार्चन पद्धति। 2. ले. कैवल्यानन्द। श्लोक 1462 । त्रिपुरारहस्यम् - माहात्म्य-खण्ड श्लोक- 5200। त्रिपुरार्चनमंजरी - ले. केशवानन्द। श्लोक 3701 त्रिपुरार्चनरहस्यम् - ब्रह्मानन्द । ज्ञानार्णवान्तर्गत दक्षिणामूर्तिसंहिता के अनुसार। श्लोक 10501 विषय- ब्राह्म मुहूर्त में देशिक का कर्तव्य, गुरु-राजा, अजपाजप स्नान, तर्पण, त्रिपुरायजन, त्रिपुरापूजा की पद्धति, उसमें गणेशपूजा की पद्धति, उसमें गणेश-न्यास, योगिनीन्यास आदि विविध न्यासों का निरूपण, चक्रसिंहासन के उपर स्थित सुन्दरी की पूजा का प्रयोजन है। हठयोगप्रदीपिका के टीकाकार ब्रह्मानन्द ही इस के लेखक हैं। त्रिपुराचरित्रम् - ले. विमलानन्दनाथ। श्लोक 800। त्रिपुरार्णवचन्द्रिका - ले. रामलिंग। त्रिपुरावरिवस्याविधि - ले. कैवल्याश्रम । त्रिपुरासहस्रनामस्तोत्रम् - महामन्त्रमानसोल्लासान्तर्गत । हर-कार्तिकेय संवादरूप। श्लोक 200। त्रिपुरासारतन्त्र - (नामान्तर -श्रीसारतन्त्रम्)शिव-पार्वती संवादरूप। पटल 101 विषय- दशमहाविद्या, महामन्त्र, मन्त्रों के अर्थ, पूजा की विधि, गुरुद्वारा प्रदत्त मंत्र के गोपन की विधि। योग का उदय,षट्कर्मों (मारण, मोहन आदि) के साधन का प्रकार, अन्तर्याग इ.।। त्रिपुरासारसमुच्चय - ले. नागभट्ट अथवा भट्टनाग। श्लोक 900। इस पर गोविन्दशर्मा कृत पदार्थादर्शनामक 1135 श्लोकों की टीका है। दूसरी टीका है सम्प्रदार्थदीपिका। त्रिपुरासिद्धान्त - श्रीविद्यान्तर्गत। उमा-महेश्वर-संवादरूप। त्रिपुराषोडशीतन्त्रम् - श्लोक 25001 त्रिपुरास्तोत्रम् - ले. सामराज दीक्षित । त्रिपुरोपनिषद् - ऋग्वेद से संबंधित माना हुआ एक नव्य उपनिषद्। तद्नुसार स्थूल सूक्ष्म व कारण इन तीनों शरीरों में वास करने वाली चिच्छक्ति ही त्रिपुरादेवी है और कर्म, उपासना एवं ज्ञान की सहायता से साधक अपने हृदय में उनका साक्षात्कार कर सकता है। पंच मकारों से योनिपूजा करने पर परम सुख की प्राप्ति होती है इस शाक्तमत को गौण माना है। इसमें स्पष्ट रूप से कहा गया है कि निष्काम साधकों को ही श्रीविद्या की सिद्धि होती है, सकाम साधकों की कभी भी नहीं। देवी की निःस्वार्थ पूजा करने से किस प्रकार मोक्ष की प्राप्ति हुआ करती है यह भी उपनिषद् में बताया है। त्रिबिल्वदलचंपू - ले. व्ही. एस.रामस्वामी शास्त्री। मदुरै में वकील। विषय- प्रवास में देखे हुए विभिन्न तीर्थक्षेत्रों तथा विश्वविद्यालयों का वर्णन । 128 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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