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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तलवकार आरण्यक (अथवा जैमिनीय उपनिषद) (सामवेदीय) - इस में चार अध्याय और उनके 145 खण्ड हैं। खण्डसंख्या में यत्र तंत्र विभिन्नता दीखती है। चौथे अध्याय के 10 वे अनुवाक से प्रसिद्ध केनोपनिषद् का आरम्भ होता है और उसी अध्याय के चार खण्डों में ही उसकी समाप्ति होती है। ब्राह्मण के समान आरण्यक भाग का संकलन भी जैमिनि और तलवकार ने ही किया होगा। तलवकार ब्राह्मणम् - (जैमिनीय ब्राह्मण) सामवेदीय। इसके तीन भागों में कुल मिलाकर 1182 खण्ड हैं। इस ब्राह्मण के वाक्य, ताण्ड्य, षड्विंश, शतपथ, और तैत्तिरीय संहिता के वाक्यों से बहुधा मिलते हैं। इस ब्राह्मण का संकलन कृष्णद्वैपायन वेदव्यास के शिष्य सुप्रसिद्ध सामवेदाचार्य जैमिनि और उनके शिष्य तलवकार का किया हुआ है। कर्नाटक में इसका अधिक प्रचार है। संपादन- जैमिनीय आर्षेय ब्राह्मण- सम्पादक ए.सी. बनेंल, मंगलोर, सन 1878 । तलस्पर्शिनी - ले-वाधुलवंशोत्पन्न वीर राघवाचार्य। भवभूतिकृत उत्तररामचरितम् नाटक की टीका। ताजकपद्धति - ले- केशव दैवज्ञ। विषय- ज्योतिःशास्त्र । ताजिकनीलकण्ठी - ले- नीलकंठ। जन्म ई. 1561। फारसी ज्योतिष के आधार पर रचित फलितज्योतिष संबंधी एक महत्त्वपूर्ण ग्रंथ। इसमें 3 तंत्र हैं- संज्ञातत्र. वर्षतंत्र, व प्रश्रतंत्र । इसमें इक्कबाल, इंदुबार, इत्थशाल, इशराफ, नक्त, यमया, मणऊ, कंबूल, गैरकंबूल, खल्लासर, रद्द, यूपाली, कुत्ध, दुत्थोत्थदवीर, तुंबी, रकुत्थ, एवं युरफा आदि सोलह योग अरबी ज्योतिष से ही गृहीत हैं। ताटंकप्रतिष्ठामहोत्सवचम्पू - ले- कविरत्न पंचपागेशशास्त्री। ताण्ड्य-ब्राह्मण (पंचविंश ब्राह्मण) - इसे तांड्य महाब्राह्मण भी कहा जाता है। इसका संबंध 'सामवेद' की तांडि-शाखा से है। इसी लिये इसका नाम तांड्य है। इसमें 25 अध्याय हैं। इसलिये इसे 'पंचविंश' भी कहते हैं। विशालकाय होने के कारण इसकी संज्ञा 'महाब्राह्मण' है। इसमें यज्ञ के विविध रूपों का प्रतिपादन किया गया है जिसमें एक दिन से लेकर सहस्रों वर्षों तक समाप्त होने वाले यज्ञ वर्णित हैं। प्रारंभिक तीन अध्यायों में त्रिवृत, पंचदश, सप्तदश आदि स्तोमों की विष्टुतिया विस्तारपूर्वक वर्णित हैं व चतुर्थ एवं पंचम अध्यायों में 'गवामयन' का वर्णन किया गया है। षष्ठ अध्याय में ज्योतिष्टोम, उक्थ व अतिरात्र का वर्णन है। सप्तम से नवम अध्याय में प्रातःसवन, माध्यंदिन सवन, सायंसवन व रात्रि-पूजा की विधियां कथित हैं। 10 वें से 15 वें अध्याय तक द्वादशाह यागों का विधान है। इनमें दिन से प्रारंभ कर 10 वें दिन तक के विधानों व सामों का वर्णन है। 16 वें से 19 वें अध्याय तक अनेक प्रकार के एकाह यज्ञ वर्णित हैं। 20 वे में 22 वें अध्याय तक अहीन यज्ञों का विवरण है। 23 वें से 25 वें अध्याय तक सत्रों का वर्णन किया गया है। इस ब्राह्मण का मुख्य विषय है साम व सोम यागों का वर्णन। कहीं कहीं सामों की स्तुति व महत्त्व-प्रदर्शन के लिये मनोरंजक आख्यान भी दिये गये हैं तथा यज्ञ के विषय से संबद्ध विभिन्न ब्रह्मवादियों के अनेक मतों का भी उल्लेख किया गया है। शतपथ ब्राह्मण के समान ही ताण्ड्य और भाराल्लवियों का ब्राह्मणस्वर था। इसका प्रकाशन (क) बिब्लोथिका इंडिका (कलकत्ता) में 1869-74 ई. में हुआ था, जिसका संपादन आनंदचंद्र वेदांत-वागीश ने किया था। (ख) सायण भाष्य सहित चौखंबा विद्याभवन वाराणसी से प्रकाशित । (ग) डा. कैलेण्ड द्वारा आंग्ल-अनुवाद विब्लोथिका कलकत्ता से, 1932 ई. में विशिष्ट भूमिका के साथ प्रकाशित । तातार्यवैभवप्रकाश - कवि- रामानुजदास। इसमें कुम्भघाणम् के लक्ष्मीकुमारताताचार्य नामक सत्पुरुष का चरित्र वर्णित है। तात्पर्यचंन्द्रिका -ले- व्यासराय (व्यासतीर्थ) यह सूत्र-प्रस्थान का ग्रंथ है और केवल 'चन्द्रिका' के नाम से भी जाना जाता है। इसके प्रणेता माध्व-मत की गुरु-परंपरा में 14 वें गुरु थे जो द्वैत-संप्रदाय के 'मुनित्रय' में समाविष्ट होते है। तर्क तथा युक्तियों के आधार पर ब्राह्मण-सूत्रों के दार्शनिक तत्त्वों की मीमांसा इस ग्रंथ की विशेषता है, और द्वैत-मत की पुष्टि के निमित्त शंकर, भास्कर तथा रामानुज के भाष्यों की तुलनात्मक आलेचना प्रस्तुत ग्रंथ में की गई है जो गंभीर एवं अपूर्व है। इसमें द्वैत-सिद्धांत ही ब्रह्मसूत्रों का अंतिम सिद्धांत निश्चित किया गया है। 2. ले- शिवचिदानन्द। सच्चिदानन्द शिवाभिनव नृसिंहभारती के शिष्य। श्लोक 9501 तात्पर्यटीका - ले-उंबेक। भवभूति और उंबेक में कुछ विद्वान् अभेद मानते हैं। तात्पर्यदीपिका - 1. ले- सुदर्शन व्यास भट्टाचार्य। ई. 14 वीं शती। पिता- विश्वजयी। 2. ले- सनातन गोस्वामी। ई. 15-16 वीं शती। यह मेघदूत की व्याख्या है। 3. लेमाधवाचार्य। ई. 13 वीं शती। स्कन्दपुराण के तांत्रिक विषयों पर टीका। तानतनु - ले- डॉ. रमा चौधुरी। विषय- प्रख्यात गायक तानसेन का जीवन-चरित्र । तान्त्रिककृत्यविशेषपद्धति - इसमें पशुदानविधि, शिवाबलिप्रकार, कुमारीपूजा, पंचतत्त्वशोधन तथा पात्रवन्दन इत्यादि तांत्रिक विधियों की पद्धतियां वर्णित हैं। तान्त्रिक-पूजा-पद्धति - (1) श्लोक- 2501 विषय तांत्रिक सन्ध्याविधि, वैष्णवाचमनविधि, करन्यास और अंगन्यास, शरीर के भीतर स्थित चतुर्दलपद्म में व, श, ष, स, आदि चार वों का न्यास, सब अंग प्रत्यंगों में मातृकान्यास, छह अंगों में केशव-कीर्ति आदि देवतायुगल का न्यास, फिर वहीं पर प्राणादि, सत्यादि तत्त्वों का न्यास, प्राणायाम, देवतापीठ न्यास, 124 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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