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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org से किया है जो दक्षिणामुख था । यह भैरवस्तोत्र कहा गया है क्यों कि वक्ता भैरव हैं और उन्होंने अपना कथन तब आरंभ किया जब ब्रह्मा का मस्तकस्थित सिर काटकर अपने मस्तक पर रख लिया था। संख्या 7 करोड़ कही गई है। अर्थात् 7 करोड श्लोक हैं या शब्द इसका निश्चय नहीं । महादेवजी ने वाम दक्षिण इ. जो तंत्र और यामल कहे हैं, उनमें भिन्न-भिन्न विषय कहे हैं पर इसमें केवल ज्ञान का प्रतिपादन है I तत्त्वसंदर्भ-- श्रीमद्भागवत की टीका लेखक- जीव गोस्वामी। यह टीका भागवत का मार्मिक स्वरूप विश्लेषण प्रस्तुत करती है। इसमें भागवत की प्राचीन टीकाओं के अंतर्गत हनुमद्भाष्य, वासनाभाष्य, संबोधोक्ति, विद्वत्कामधेनु, तत्त्व-दीपिका, भावार्थ दीपिका, परमहंस - प्रिया तथा शुकहृदय नामक भागवत से संबंधित ग्रंथों का निर्देश किया गया है। तत्त्वसमास - ले. कपिल। सांख्यसूत्रकार से भिन्न व्यक्तित्व । तत्त्वसार ( 1 ) - ले. भट्पल्ली राखालदास । (2) ले. देवसेन । जैनाचार्य। ई. 10 वीं शती । तत्त्वसार ( नामान्तर - योगसार ) - आनन्दभैरव आनन्द भैरवी संवादरूप । पटल 10। यह तत्त्वसार अर्थात् योग का सार सब शास्त्रों में परमोत्तम तथा सब तन्त्रों में प्रधान माना जाता है। तत्त्वानन्दतरंगिणी - ले. पूर्णानन्द । उल्लास 7 । श्लोक 350 1 तत्त्वानुशासनम् ले. रामसेन। जैनाचार्य ई., 11 वीं शती । 259 पद्य। (1) ले. समन्तभद्र । जैनाचार्य। पिता- शांतिवर्मा ई. प्रथम शती । तत्त्वामृतरंगिणी - ले. कुलानन्दनाथ । श्रीनाथशिष्य । 7 तरंग । श्लोक 700 रचना 1660 शकाब्द में विषय- गुरुशिष्य लक्षण, जीव-चित्त संवाद छह आन्नायों का विवेचन, प्रकृति और पुरुष का अभेद निरूपण, आत्मविवेक इ. तत्त्वार्थचिन्तामणि ले. वसुगुप्त । तत्त्वार्थटीका ले. सिद्धसेन दिवाकर। ई. 5 वीं शती । तत्त्वार्थदीपनिबंध - ले. वल्लभाचार्य पुष्टिमार्ग के प्रवर्तक । इसमें शास्त्रार्थ, सर्व निर्णय तथा भागवतार्थ - प्रकरण और उनकी टोका है। तत्त्वार्थवार्तिकम् (सभाष्य) ले. अकलंकदेव जैनाचार्य ई. 8 वीं शती। टीकाग्रन्थ । तत्त्वार्थवृत्ति - श्रुतसागरसूरि । जैनाचार्य ई. 16 वीं शती । तत्त्वार्थवृत्तिपदविवरणम्- (सर्वार्थसिद्धिव्याख्या) ले. प्रभाचन्द्र जैनाचार्य । समय- ई. 8 वीं शती । (2) ई. 11 वीं शती। दो मान्यताएं । तत्त्वार्थवृत्ति (सर्वार्थसिद्धि) ले देवनन्दी पूज्यपाद जैनाचार्य माता श्रीदेवी पिता- माधवभट्ट । 1 120 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड तत्त्वार्थालोकवार्तिक शती। टीका ग्रंथ | I तत्त्वार्थसार ले. अमृतचंद्र सूरि। ई 9-10 वीं शती । जैनाचार्य । तत्त्वार्थसारदीपकले. सकलकीर्ति जैनाचार्य ई 14 वीं शती । पिता कर्णसिंह माता शोभा । अध्याय 12 तत्त्वार्थसूत्रम् (तत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् ) ले. उमास्वाति या उमास्वामी । जैन दर्शन के मगध निवासी आचार्य । इन्होंने प्रस्तुत ग्रंथ का प्रणयन विक्रम संवत् के प्रारंभ में किया था। इन्होंने स्वयं ही अपने इस ग्रंथ पर भाष्य लिखा है। यह जैन-दर्शन के मंतव्यों को प्रस्तुत करने वाला महत्त्वपूर्ण ग्रंथ है। इस ग्रंथ पर अनेक जैनाचार्यों ने वृत्तियों व भाष्यों की रचना की है इनमें पूज्यपाद देवनंदी, समंतभद्र, सिद्धसेन दिवाकर भट्ट अकलंक व विद्यानंदी प्रसिद्ध हैं। इस ग्रंथ का महत्त्व दोनों ही जैन संप्रदायों (श्वेतांबर दिगंबर) में समान है। इस ग्रंथ के प्रणेता उमास्वाति को दिगंबर जैनी उमास्वामी कहते हैं। इस ग्रंथ के द्वारा जैन सिद्धान्त सर्वप्रथम सूत्रबद्ध हुए। जीव, अजीव, आश्रव, बंध, संवर, निर्जरा और मोक्ष इन सात तत्त्वों का मार्मिक विवेचन इस ग्रंथ में है। For Private and Personal Use Only - - - 2) ले. बृहत्प्रभाचन्द्र। जैनाचार्य । यह ग्रंथ गृद्ध पिच्छाचार्य के तत्त्वार्थ पर आधारित है। तत्त्वार्थसूत्रवृत्ति - ले. भास्करनन्दी । जैनाचार्य । ई 14-15 वीं शती । तत्त्वोद्योत ले. मध्वाचार्य। ई 12-13 वीं शती विषयद्वैतमत का प्रतिपादन । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ले. विद्यानन्द । जैनाचार्य। ई 8-9 वीं - - 1 तथागतगुह्यकतंत्रम् (गुह्यसमाजतंत्रम्) मंजुश्रीमूलकल्प, सद्धर्मपुंडरीक आदि बौद्ध तांत्रिक ग्रंथों के पश्चात् रचित एक महत्त्वपूर्ण तांत्रिक ग्रंथ ईसा की चौथी शताब्दी के पहले इस ग्रंथ की निर्मिति हुई। इस ग्रंथ में शून्यवाद एवं विज्ञान के अधिष्ठान पर तांत्रिक बौद्धमत के स्वरूप का निर्धारण किया प्रतीत होता है। तदतीतमेवले. अन्नदाचरण तर्कचूडामणि (जन्म सन 1852) देशभक्तिपर काव्य । तनयो राजा भवति कथं मे ले. श्रीराम वेलणकर सुरभारती भोपाल से सन 1972 में प्रकाशित रेडिओ नाटक । पात्रसंख्या छह । गीतसंख्या चार विषय- जातककथा में वर्णित रानी धनपरा की स्वार्थपरता । तन्त्रकोष ले. वीरभद्र । विषय- अकार आदि मातृका वर्णों का यथायोग्य अर्थ । तन्त्रकौमुदी ले. देवनाथ ठक्कुर तर्कपंचानन । गोविन्द ठक्कर के पुत्र । ये कूचबिहार के राजा मल्लदेव नरनारायण के सभापण्डित थे। श्लोक- 2485 विषय तन्त्रशास्त्र का प्रामाण्यस्थापन दीक्षाकाल, कलावती दीक्षादिविधि, दीक्षित के
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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