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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra जयाजी प्रबंध कवि- श्रीबाळशास्त्री गर्दे समय 19 वीं शती का उत्तरार्ध । कवि ने इस काव्य में ग्वालियर नरेश श्री जयाजीवराव सिंधिया के जीवन का तथा तत्कालीन समाज का सजीव चित्रण किया है। प्रस्तुत काव्य में 33 अध्याय तथा 2498 पद्य हैं। इस रचना की एकमात्र उपलब्ध पाण्डुलिपि सिंधिया प्राच्यशोध संस्थान, उज्जैन में है। ( क्र. 3550) अप्रकाशित । जलद (अथर्वशाखा ) अथर्व परिशिष्ट में (2-5) जलदों की निन्दा मिलती है। यही एकमात्र इस शाखा के अस्तित्व का प्रमाण उपलब्ध है । जलयात्राविधि ले. ब्रह्मजिनदास जैनाचार्य। ई. 15-16 वीं शती । www.kobatirth.org - जल्पकल्पतरु ले. गंगाधर कविराज। समय- 1798-1885 ई. । यह आयुर्वेद की चरक संहिता की व्याख्या है। जलशास्त्रम् प्रा. हरिदास मित्र ने अपनी ग्रंथसूची में प्रस्तुत विषय पर निम्नलिखित संस्कृत ग्रंथों का उल्लेख किया है जलागल, जलागलयंत्र, जलाशयोत्सर्ग, जलाशायोत्सर्गतत्त्व, जलाशयोत्सर्गपद्धति, जलाशयोत्सर्ग प्रमाणदर्शन, जलाशयोत्सर्गप्रयोग, जलाशयोत्सर्गविधि जलाशयारामोत्सर्ग, जलाशयारामोत्सर्गमयूख, तडागप्रतिष्ठा, तडागउत्सर्ग और कूपादिजलस्थान लक्षण वास्तुरवाकर में जलाशयों पर स्वतंत्र अध्याय लिखा गया है। जलालशास्त्रम् श्री. व्ही. रामस्वामी शास्त्री एण्ड सन्स ने तेलगु अनुवाद सहित इसका प्रकाशन मद्रास में किया है। विषय- शिल्पशास्त्र के अन्तर्गत । जरासन्ध-वधम् (रूपक) ले ताम्पूरन। ई. 19 वीं शती । केरलवासी । - जर्मनी - काव्यम् ले. श्यामकुमार टैगोर । सन 1913 में लिपझिग से प्रकाशित । जर्नल ऑफ दि केरल यूनिर्वसिटी ओरियन्टल मेन्युस्क्रिप्ट लायब्रेरी यह पत्रिका सन 1954 से त्रिवेन्द्रम में प्रकाशित हो रही है। इसके प्रधान सम्पादक के. राघवन् पिल्लई थे । इसमें स्तोत्र, चम्पू, नाटक आदि प्राचीन और अर्वाचीन ग्रंथों का प्रकाशन किया गया है। - 8 जर्नल ऑफ दि श्री वेंकटेश्वर यूनिर्वसिटी ओरियन्टल इन्स्टिट्यूट श्री. टी. ए. पुरुषोत्तम महाभाग के सम्पादकत्व में 1958 से इस पत्रिका का प्रकाशन प्रारंभ हुआ। इसमें गुरुरामकवि विरचित सुभद्राधनंजय नाटक, टी. वेंकटाचार्य का उपन्यास 'रसस्यन्द' आदि उल्लेखनीय रचनाओं का प्रकाशन हुआ है। जवाहरतरंगिणी (भारतरत्नशतकम्) - ले. डॉ. श्री. भा. वर्णेकर नागपुर निवासी भारतरत्न पंडित जवाहरलाल नेहरू के जीवन का इस खंडकाव्य में काव्यात्मक पद्धति से वर्णन किया है। लेखक के अंग्रेजी गद्यानुवाद सहित प्रकाशित । पंडित नेहरू ने इस काव्य को पढ कर अपना अभिप्राय लेखक को पत्ररूप में निवेदन किया था । श्लोकसंध्या 102 जवाहरवसन्तसाम्राज्यम् - कवि जयराम शास्त्री, साहित्यचार्य 1 सर्ग 7 श्लोक- 400। दिल्ली के परिसर का वसन्त वर्णन, पं. नेहरू की पचदीपूर्ति वर्ष (ई. 1950) में प्रकाशित I जंहागीरचरितम् ले. रुद्रकवि । राजा नारायणशाह (16-17 वीं शताब्दी) के आश्रित दण्डी के दशकुमारचरितम् की पद्धति का अनुसरण कर कवि ने जहांगीर का चरित्र वर्णन किया है। जगदीशी ले. जगदीश भट्टाचार्य । ई. 17 वीं शती । तत्त्वचिन्तामणि- दीधिति प्रकाशिका नामक प्रस्तुत लेखक का ग्रंथ 'जागदीशी' नाम से प्रख्यात है। विषय- न्यायशास्त्र । जागरणम् कवि शिवकरण शर्मा। गीतिकाव्यसंग्रह । भारतीनिकेतन, फतेहपुर (उ. प्र. ) से प्रकाशित । जातकपद्धति ले. केशव । विषय- ज्योतिषशास्त्र । जातकमाला (बोधिसत्त्वावदानमाला) बौद्ध जातकों को लोकप्रिय बनाने का महत्त्वपूर्ण कार्य करने वाले आर्यशूर इस ग्रंथ के रचयिता हैं। इनका समय तृतीय या चतुर्थ शताब्दी है । "जातकमाला" की ख्याति, भारत के बाहर भी बौद्ध देशों मे थी। 34 जातकों में से 14 जातकों का चीनी अनुवाद 690 से 1127 ई. के मध्य में हुआ था । इत्सिंग के यात्रा - विवरण के अनुसार, 7 वीं शताब्दी में इसका प्रचार बहुत हो चुका था । अजंता की दीवारों पा "जातकमाला" के 3 जातकों (शांतिवादी, मैत्रीबल व शिविजातक) के चित्र अंकित हैं। इन चित्रों का समय 5 वीं शताब्दी है। "जातकमाला" के 20 जातकों का हिंदी रूपांतर सूर्यनारायण चौधरी ने किया है। धर्मकीर्ति तथा अन्य एक अज्ञात टीकाकार की व्याख्याएं तिब्बती भाषा में उपलब्ध हैं। पाश्चात्य विद्वानों द्वारा अनेक संस्करण तथा अनुवाद हुए है। - - For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir M जानकीगीतम् - ले. स्वामी हर्याचार्य। गालवाश्रम (गलतागादी) के पीठाधिपति यह काव्य रसिक रामोपासक संप्रदाय का परमप्रिय उपासना ग्रंथ है। जानकीचरित्रामृतम् ले. श्रीराम सनेही दास वैष्णव कवि । रचनाकाल 1950 ई. और प्रकाशनकाल 1957 में है। यह महाकाव्य 108 अध्यायों में विभक्त है। इसमें सीता के जन्म से लेकर विवाह तक की कथा वर्णित है। संपूर्ण काव्य संवादात्मक शैली में रचित है। जानकी-परिणयम् (नाटक) - ले. रामभद्र दीक्षित । रचनाकाल सन 1680 ई. । कुभकोणं के निवासी । सात अंको के इस नाटक में राम के मिथिला प्रस्थान से राज्याभिषेक तक की घटनाओं का चित्रण है। राम के मार्ग में बाधा डालने के - संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड / 113
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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