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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कई विद्वानों का मत है की यह 6 अध्यायों का है। ज्ञात होता है कि ग्रंथकार बौद्ध होने से वैदिकी स्वरप्रक्रिया इसमें नहीं है। चामुण्डा (नाटक) - ले. व्यासराज शास्त्री। ई. 20 वीं शती। चिन्ताद्रि पेट, मद्रास से प्रकाशित। कथावस्तु उत्पाद्य और हास्यप्रधान, अंकसंख्या चार । कथासार - एक विधवा लन्दन से डॉकटर बन आती है, परंतु ग्रामवासी उसका तिरस्कार करते हैं। इन विरोधियों के नेता की बहू जब बीमार होती है, तब वही विधवा उसे स्वस्थ बनाती है। अन्त में वे ही विरोधी उसे साधुवाद देते हैं। चारायणी शाखा (कृष्णयजुर्वेदीय) - चारायणीयों का एक मन्त्रार्षाध्याय मिलता है। उसके अनुसार निम्नलिखित बातों का पता चलता है। (1) चारायणीय संहिता का विभाग अनुवाकों और स्थानकों में था। (2) चारायणीय संहिता में वाक्यानुवाक्या ऋचाएं चालीसवें स्थानक के अन्त में एकत्र पढी गई थीं। (3) चारायणीय संहिता में कहीं तो काठक संहिता का क्रम था और कहीं मैत्रायणीय संहिता का था। (4) चारायणीयसंहिता के कई पाठ काठक में नहीं और कई मैत्रायणीय में नहीं हैं। (5) चारायणीय संहिता के अन्त में अश्वमेधादि का पाठ था। चारुचरितचर्चा - ले-आचार्य रमेशचंद्र शुक्ल, आचार्य संस्कृत विभाग, वार्ष्णेय कॉलेज, अलीगढ (उ.प्र.)। 480 पृष्ठों के इस ग्रंथ में मनु याज्ञवल्क्य से लेकर आधुनिक युग के आंबेडकर-गोलवलंकर तक हुए 101 महानुभावावों के व्यक्तित्त्व का प्रसन्न गद्य शैली में लिखे हुए संक्षिप्त लघुनिबंधों में परिचय दिया है। संस्कृत वाङ्मय में इस प्रकार का यह पहला ही प्रयास है। प्राप्ति-स्थान- वाणीपरिषद् आर-6, उत्तमनगर वाणीविहार, नई दिल्ली-1100591 चारुचर्या - ले-क्षेमेन्द्र। ई. 11 वीं शती। पिता-प्रकाशेन्द्र।। श्लोक संख्या-45001 चारुदत्तम् (प्रकरण) - ले-भास। इस प्रकरण का नायक चारुदत्त वणिक् तथा नायिका वसंतसेना वेश्या है। प्रकरण के लक्षण के अनुसार इसमें 10 अंक होना चाहिए जब कि इसमें 4 अंक ही प्राप्त होते हैं। अतः इस प्रकरण को अपूर्ण माना गया है। संक्षिप्त कथा : इस प्रकरण की कथा चार अंकों में विभक्त है। इसके प्रथम अंक में शकार द्वारा पीछा किये जाने पर गणिका वसंतसेना शकार से बचने के लिए अचानक चारुदत्त के घर में छुप जाती है। वसंतसेना अपना हार चारुदत्त के पास रख कर जाती है। विदूषक उसे पहुंचाने वाला है। द्वितीय अंक में वसंतसेना जुए में पराजित संवाहक को, विजेताओं को धन देकर मुक्त करती है और उसे धारुदत्त के पास भेज देती है; तभी चेट से हाथी की घटना एवं चारुदत्त द्वारा चेट को प्रावारक देने की घटना सुन कर चारुदत्त को देखती है। तृतीय अंक में सज्जलक चारुदत्त के घर से वसंतसेना के सुवर्णहार को चुरा कर ले जाता है। चारुदत्त इससे दुःखी होकर हार के बदले अपनी पत्नी की मोती की माला विदूषक के हाथ वसंतसेना के पास भेजता है। चतुर्थ अंक में सजलक अपनी प्रेमिका मदनिका को वसंतसेना से मुक्त कराने के लिए चोरी किया गया हार ले कर वसंतसेना के घर जाता है। किन्तु मदनिका हार को पहचान लेती है और सज्जलक को हार लौटाने के लिए कहती है। उतने में विदूषक आकर चारुदत्त द्वारा प्रेषित माला वसंतसेना को देता है। सज्जलक से हार ले कर वसंतसेना सज्जलक के साथ मदनिका को बिदा करती है और चारुदत्त से मिलने के लिए जाती है। इस प्रकरण में एक ही अर्थोपक्षेक (चूलिका) का प्रयोग हुआ है। इस चूलिका का स्थान प्रस्तावना के अन्तर्गत है। चार्वाक-ताण्डवम् - ले-डॉ. वीरेन्द्रकुमार भट्टाचार्य । अंकसंख्याआठ। विषय-षड्दर्शनों के प्रवर्तकों से चार्वाक का विवाद । चालुक्यचरितम् - ले-परवस्तु लक्ष्मीनरसिंह स्वामी। मद्रास निवासी। दक्षिण भारत के चालुक्यवंशीय पुरुषों का चरित्र तथा शिलालेखों एवं ताम्रपटों से प्राप्त घटनाओं का काव्यमय निवेदन इस ग्रंथ का विषय है। चिकित्साकौमुदी - ले-धन्वतरि। विषय-वैद्यकशास्त्र । चिकित्सादर्शनम् - ले-धन्वन्तरि । चिकित्सामृतम् - ले-गोपालदास। ई. 16 वीं शती। विषयआयुर्विज्ञान। चिकित्सा-रत्नावली - ले-कविचन्द्र। ई. 17 वीं शती । विषय-वैद्यकशास्त्र। चिकित्सारत्नम् - ले-जगन्नाथ दत्त। ई. 19 वीं शती। विषय-आयुर्वेदिक चिकित्सापद्धति । चिकित्सासारसंग्रह - (1) ले-धन्वंतरि (2) ले-बंगसेन। ई. 11 वीं शती। (3) ले-चक्रपाणि। ई. 11 वीं शती। (4) ले-कालीचरण वैद्य। ई. 19 वीं शती। इन ग्रंथों का विषय है : आयुर्वेदिक चिकित्सापद्धति । चिकित्सासोपान - सन् 1898 में कलकत्ता से संस्कृत-हिन्दी में प्रकाशित इस मासिक पत्रिका के सम्पादक रामशास्त्री वैद्य थे। चिंचिणीमतसारसमुच्चय - 12 पटलों में पूर्ण। तांत्रिकों का चिंचिणीमत सिद्धनाथ ने स्थापित किया था। इसका संबंध वामाचार, पश्चिम क्रम से है। चित्तरूपम् - ले-रुद्रराम। चित्तप्रदीप - ले-वासुदेव। काश्मीरी पंडित। चित्तविशुद्धिप्रकरणम् (नामान्तर चित्तावरणविशोधनम्) - ले-बौद्ध पंडित आर्यदेव। विषय-ब्राह्मणों के कर्मकाण्ड की आलोचना तथा अन्य तांत्रिक बातों का वर्णन । चित्तवृत्तिकल्याण - ले-भूमिनाथ (नल्ला) दीक्षित । ई. 17-18 शती। संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड / 107 For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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