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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथासप्तशती - हालकविकृत प्राकृत गाथासप्तशती का संस्कृतानुवाद । ले- श्रीभट्टमथुरानाथ शास्त्री। जयपुर-निवासी। गादाधरी - ले- गदाधर भट्टाचार्य। ई. 17 वीं शती। यह रघुनाथ शिरोमणिकृत तत्त्वचिंतामणि-दीधिति की व्याख्या है। विषय- नव्य न्यायदर्शन। गादाधरीकर्णिका - ले- कृष्णभट्ट आर्डे। गादाधरीपंचवादटीका - ले- रघुनाथशास्त्री। गान्धिचरितम् - ले- चारुदेवशास्त्री। गानस्तवमंजरी - ले- राधाकृष्णजी। गानामृतरंगिणी - ले- टी. नरसिंह अय्यंगार (अपरनाम कल्किसिंह) विविध विषयों पर लिखे गेय काव्यों का संग्रह। गान्धीविजयम् (नाटक) - ले- मथुराप्रसाद दीक्षित। सन 1910 तक गांधीजी के जीवन में आफ्रिकी तथा भारत में जो राजनैतिक घटनाएं हुईं उनका चित्रण हुआ है। अंकसंख्या दो। इसमें प्राकृत के स्थान पर हिन्दी का प्रयोग तथा बालोचित संस्कृत भाषा का प्रयोग हुआ है। नायक के रूप में गांधी और तिलक, मालवीय, राजेन्द्रप्रसाद, नेहरु, सरदार पटेल, तथा लार्ड इरविन, माऊंटबॅटन, क्रिप्स आदि विदेशीय पात्रों का भी। चित्रण है। गायकपारिजातम् - ले- शिंगराचार्य । गायकवाड-बंध - ले-वेदमूर्ति रामशास्त्री। ई. 19 वीं शती। विषय बडोदा के गायकवाड वंश के राजपुरुषों का चरित्र-चित्रण। गायत्रीकल्प - गायत्री के ध्यान, वर्ण, रूप, देवता, छन्द आवाहन, विसर्जन, माहात्म्य आदि का वर्णन, ब्रह्मा- नारद संवाद के रूप में हुआ है। गायत्रीकवचम् - नीलतन्त्र तथा आगमसंदर्भ के अन्तर्गत । शरीर के विभिन्न अंगों के रक्षार्थ वैदिक गायत्री के विभिन्न वर्णों का उपयोग बतलाया गया है। गायत्रीतन्त्रम् - पटल-9 और श्लोक- 195 हैं। गायत्रीमाहात्म्य, गायत्री का ध्यान, न्यास, गायत्रीहीन ब्राह्मण की निन्दा, यज्ञोपवीत-लक्षण, संध्यालक्षण, तिथियों के स्थान और मन्त्र, शुक्ल-कृष्ण पक्षों के ध्यान और मंत्र एवं गायत्री कवच का वर्णन है। गायत्रीपंचांगम् - विषय- (1) गायत्री-हृदय (2) रुद्रयामलतन्त्रोक्त गायत्रीरहस्यान्तर्गत-गायत्री नित्यपूजा- पद्धति (3) रुद्रयामलतंत्रोक्त गायत्रीरहस्यान्तर्गत गायत्रीसहस्रनाम (4) विश्वामित्रसंहितान्तर्गत गायत्रीकवच (5) विश्वामित्रकृत गायत्री स्तवराज। गायत्रीपद्धति - रूद्र यामलोक्त गायत्रीपूजा का सविस्तर विवरण और उपासकों के प्रातः कृत्यों में गायत्रीपूजा की विधि बतलायी गयी है। गायत्रीपुरश्चरणचन्द्रिका- ले- काशीनाथ। पिता-जयराम । श्लोक- 666। गायत्रीपुरश्चरणपद्धति - ले- गंगाधर। विश्वामित्रकल्प और वसिष्ठकल्प का स्मृतिशास्त्र के अनुसार साररूप प्रतिपादन हुआ है। गायत्रीपुरश्चरणविधि - श्लोक-2001 विषय- गायत्री-मंत्र के अक्षरों का अंग प्रत्यंग में न्यास, गायत्री मानसपूजा, गायत्रीशाप-विमोचन, गायत्री मंत्र के ब्रह्मास्त्र और आग्नेयास्त्र बनाने की विधि, गायत्री-जपविधि, उत्तरन्यासविधि आदि का वर्णन । गायत्रीब्रह्मकल्प - गायत्री की पूजा, न्यास, ध्यान, पुरश्चरण आदि की पद्धति और प्रयोग का सांगोपांग वर्णन है। यह ऋग्विधान के अंतर्गत है। गायत्रीब्राह्मणोल्लासतंत्रम् - कुल पटल-5। श्लोक- 8251 कामधेनुतंत्र में देव-देवी संवाद के रूप में प्रतिपादन। प्रथम पटल में ध्यान, जप, आदि गायत्री उपासकों के उपयोग की नाना विधियां हैं। द्वितीय में 'भू' आदि सप्त व्याहृतियों के अर्थ का निरूपण हुआ है। तृतीय में गायत्री के जपयोग का वर्णन है। चतुर्थ में गायत्री का आवाहन, यज्ञोपवीतनिर्माण आदि तथा पंचम में संध्योपासना आदि का वर्णन है। गायत्रीमाला - विषय- ब्रह्मा, विष्णु, रुद्र, महालक्ष्मी, नृसिंह, लक्ष्मण, कृष्ण, गोपाल, परशुराम, तुलसी, हनुमान्, गरुड, अग्नि, पृथ्वी, जल, आकाश, सूर्य, चंद्र, परमहस, पवन, हंस, गौरी और देवी के भेद से कुल 24 गायत्रियों का वर्णन । गायत्रीरहस्यम् - ले-व्यास परशुराम। अध्याय-10। विषयप्राणायामाभ्यास का आनन्द । संध्यार्थ के ध्यानानन्द का उदय, मार्जन, आचमन, अधमर्षण, अर्घ्यदान तथा शुद्धि के निर्धारण का आनन्द, गायत्री-उपासनाजन्य आनन्द का उदय। 24 मुद्राओं के तत्त्व, विचारानन्द का उदय आदि । गायत्रीस्तवराजस्तोत्रम् - ले-विश्वामित्र। विश्वामित्रसंहिता के अंतर्गत। गायत्रीहृदयम् - ले- वसिष्ठ-ब्रह्म संवादरूप। विषय-गायत्री की उत्पत्ति तथा गायत्री का अर्थ। गायत्री मंत्र के 3 लाख 60 हजार जप से तीर्थों के स्नान का तथा वेदाध्ययन का फल मिलता है, यह फलश्रुति बताई है। गायत्र्यर्चसंदीपिका - ले- भडोपनायक शिवराम भट्ट। पितामहजयरामभट्ट। पिता- काशीनाथ। विषय- उपासकों के प्रातःकृत्य एवं गायत्री देवी की पूजा। गायत्र्यष्टोत्तरशत- दिव्यनामामृत-स्तोत्रम् - यह स्तोत्र विश्वामित्ररामचंद्र संवाद रूप है। श्लोक- 42 | विषय गायत्री के 108 नामों का पाठ रोगमुक्ति तथा ऐश्वर्यवृद्धि के लिये बतलाया गया है। गालव ऋग्वेद की शाखा - गालव का दूसरा नाम ब्राभ्रव्य और निवास- पंचाल देश (अर्थात् आधुनिक रोहेलखंड के आसपास)। इस ऋषि ने ऋग्वेद का क्रमपाठ बनाया था। संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड 43 For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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